एजुकेशन में कब आएंगे अच्छे दिन?
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी और सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद वर्ल्ड क्लास एजुकेशन के मोर्चे पर भारत काफी पीछे है, जबकि दुनिया के कई छोटे देश (जैसे-फिनलैंड, जापान, सिंगापुर आदि) काफी आगे हैं। आखिर कब आएंगे एजुकेशन में अच्छे दिन, जानते हैं एक्सपर्ट्स से.. एक तरफ कॉलेजेज-यूनिवर्सिटीज से हर साल निकलने व
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी और सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद वर्ल्ड क्लास एजुकेशन के मोर्चे पर भारत काफी पीछे है, जबकि दुनिया के कई छोटे देश (जैसे-फिनलैंड, जापान, सिंगापुर आदि) काफी आगे हैं। आखिर कब आएंगे एजुकेशन में अच्छे दिन, जानते हैं एक्सपर्ट्स से..
एक तरफ कॉलेजेज-यूनिवर्सिटीज से हर साल निकलने वाले लाखों युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं, तो दूसरी ओर मार्केट और इंडस्ट्री को स्किल्ड लोग नहीं मिल पा रहे। क्या हम अपने बच्चों को मोटी-मोटी पोथियां ही रटाते रहेंगे या बदलते वक्त के साथ शिक्षा की व्यावहारिक जरूरतों पर भी ध्यान देंगे? हम कब तक सालों से चले आ रहे अनुपयोगी और निरर्थक पैटर्न को ढोते रहेंगे? आज हायर एजुकेशन की क्वालिटी इंप्रूव करने के साथ-साथ उसे मार्केट-इंडस्ट्री से जोड़ने की भी जरूरत है, ताकि अपने प्रैक्टिकल नॉलेज के साथ युवाओं को उनकी पसंद की जॉब मिल सके। इसके अलावा, निचले लेवल पर भी युवाओं को हुनरमंद बनाने की जरूरत है, ताकि छोटे-छोटे कामों के लिए भी ट्रेंड/स्किल्ड लोग मिल सकें। इंडिया के एजुकेशन सिस्टम को समृद्ध और उपयोगी बनाने पर एक्सपर्ट्स के विचार..
क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस
डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति और सीएसजेएम यूनिवर्सिटी कानपुर के पूर्व कुलपति प्रो. अशोक कुमार कहते हैं कि देश के सामने शिक्षा की उपलब्धता बढ़ाना एक चुनौती है, लेकिन इससे भी बड़ा चैलेंज शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना है। सरकार सिर्फ संस्थानों की संख्या और नामांकन दर बढ़ाने पर जोर दे रही है। गुणवत्ता उसकी प्राथमिकता में नहीं है। आलम यह है कि आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों की गुणवत्ता भी पहले के मुकाबले कम हुई है। ऐसे में संस्थानों को डिग्री की फैक्ट्री में तब्दील करने की बजाय इंडस्ट्री बेस्ड एजुकेशन और ट्रेनिंग दिए जाने पर जोर देना होगा। स्वायत्तता और पाठ्यक्रम में बदलाव पर फोकस करना होगा। आज यूनिवर्सिटीज का अधिकांश समय प्रशासनिक कार्यो में ही बीत जाता है।
रोजगारपरक शिक्षा की दरकार
एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की जरूरत से पूरी तरह इत्तफाक रखने वाले आइआइटी कानपुर के पूर्व निदेशक प्रोफेसर कृपाशंकर का भी मानना है कि अब रोजगारपरक शिक्षा की जरूरत है। पाठ्यक्रम तैयार करने से पहले इस बात का ख्याल रखना जरूरी है। क्योंकि कॉलेजों की पढ़ाई व कंपनियों में काम करने के तरीकों में गहरी खाई बन चुकी है, जिसे पाटने की आवश्यकता है। वहीं, एचबीटीआई के पूर्व निदेशक प्रो. जेएसपी राय की नजर में प्रायोगिक अध्ययन, पढ़ाई की एक मजबूत कड़ी होती है। लेकिन समय के साथ इसका प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है। योग्य शिक्षकों की कमी छात्रों को कक्षाओं से दूर कर रही है। क्योंकि जो शिक्षक छात्रों को पढ़ाने के लिए गेस्ट लेक्चरर के रूप में आते हैं, उनमें से कइयों का स्तर स्टूडेंट्स की तुलना में कम होता है।
टैलेंट को करें प्रोत्साहित
यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ.यशपाल शर्मा कहते हैं, हमारे देश के युवा कोरियन या चाइनीज यूनिवर्सिटी में बेहतर परफॉर्म कर रहे हैं। नासा जैसे बड़े संस्थानों में कमाल दिखा रहे हैं, इसके बावजूद खुद अपने देश में काबिल युवाओं के न होने की बात होती है। सुनने में अविश्वसनीय-सा लगता है। दूसरी ओर, हकीकत यह है कि भारत में लोग खुद के खर्चे से ही शोध, अनुसंधान में जुटे हैं, जबकि इसकी जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए। जब तक हम अपनी प्रतिभाओं को खुद प्रोत्साहित नहीं करेंगे, तब तक माहौल बदलने वाला नहीं है।
..अगले अंक में जारी
इनपुट : गोरखपुर से क्षितिज पांडेय, कानपुर से प्रवीण शर्मा, जम्मू से योगिता यादव और पटना से सुमिता जायसवाल