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एजुकेशन में कब आएंगे अच्छे दिन?

आज 18 और 23 साल की उम्र के करीब 27 मिलियन युवा देश के करीब 36000 कॉलेजों और 610 यूनिवर्सिटीज में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में मैनपॉवर को ट्रेन किया जा रहा है, ताकि वह हर सेक्टर में काम कर सकें।

By Edited By: Published: Mon, 21 Jul 2014 04:26 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jul 2014 04:26 PM (IST)
एजुकेशन में कब आएंगे अच्छे दिन?

आज 18 और 23 साल की उम्र के करीब 27 मिलियन युवा देश के करीब 36000 कॉलेजों और 610 यूनिवर्सिटीज में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में मैनपॉवर को ट्रेन किया जा रहा है, ताकि वह हर सेक्टर में काम कर सकें। लेकिन कंपनियों को कॉलेज या यूनिवर्सिटी से निकलने वाले ग्रेजुएट्स में वह स्किल नहीं मिल पा रहा, जिससे उन्हें नौकरी दी जा सके। नैसकॉम और मेरिटट्रैक के एक सर्वे के अनुसार, आज इंडस्ट्री में बीटेक, एमबीए जैसे प्रोफेशनल कोर्स करने वाले सिर्फ एक चौथाई युवाओं को ही रोजगार मिल सका है। आखिर उच्च शिक्षा व्यवस्था में कहां हैं कमियां? किस तरह के सुधार की है गुंजाइश, जानते हैं शिक्षाविदों से..

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भारतीय स्टूडेंट्स का जो़ड़ नहीं

इलाहाबाद स्थित भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान ( ट्रिपलआइटी) के निदेशक प्रो. एस. विश्वास कहते हैं, दुनिया के टॉप टेन कॉलेजों में भारत के कॉलेजेज या यूनिवर्सिटीज के शामिल न होने को मैं दूसरा मामला मानता हूं। इसका आधार कहीं से हमारी शिक्षा पद्धति में कमी नहीं है। टॉप टेन में वैसे कॉलेज लिए जाते हैं, जहां एक ही परिसर में छात्रों को इंजीनियरिंग, कला, विज्ञान, चिकित्सा, खेल आदि की पढ़ाई व प्रैक्टिकल की सुविधा मिलती है। विदेशों में इसका काफी प्रचलन है, लेकिन भारत में इंजीनियरिंग, मेडिकल, आ‌र्ट्स, साइंस के अलग-अलग कॉलेजेज हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, चीन जैसे देशों की तुलना में भारत के सरकारी कॉलेजों में संसाधनों का भी नितांत अभाव है। बावजूद इसके शिक्षा के क्षेत्र में चल रही स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हमें शीर्ष के कॉलेजों में शामिल होने के लिए अग्रसारित कर रही है। हम जहां भी हैं, दूसरों से कई गुना बेहतर हैं। हम बच्चों को जो शिक्षा देते हैं, वह उसका विशेषज्ञ बनकर निकलता है। उसका कोई जोड़ नहीं रहता।

स्कूल से हो स्किल डेवलपमेंट

जम्मू के शेरे कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी (स्कॉस्ट) के कीट विज्ञान विभाग के प्रो. डीपी अबरोल कहते हैं, हम युवाओं को सक्षम बनाने की बजाय अक्षम डिग्री धारक बना रहे हैं। उन्हें हुनरमंद बनाना समय की मांग है। इसकी शुरूआत स्कूल स्तर पर होनी चाहिए। छोटे-मोटे स्किल डेवलपमेंट कोर्स मैट्रिक स्तर पर ही अनिवार्य कर दिए जाने चाहिए। वहीं, प्रोफेशनल कोसरें में अंतिम सेमेस्टर अनिवार्य रूप से स्किल अर्थात प्रशिक्षण आधारित कर दिया जाना चाहिए ताकि युवा किताबी ज्ञान के साथ व्यवहार में भी अपने पेशे की जरूरतों को समझें।

ह्यूंमन रिसोर्स की ग्रूमिंग

हमारे पास क्वालिटी ब्रेन नहीं, बल्कि स्टूडेंट्स और टीचर्स में मोटिवेशन की कमी है। हम अपने मानव संसाधन को ग्रूम करने में असफल रहे हैं। पहले हमें क्वालिटी और कमिटेड शिक्षकों की जमात खड़ी करनी होगी। ये कहना है, पटना स्थित चन्द्रगुप्त इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ. वी मुकुंद दास का। वे कहते हैं, इंडिया में रिसर्च के लिए फंड तथा स्पेशलाइज्ड इंस्टीट्यूट बनाने होंगे। इसमें सरकार की भूमिका अहम होगी। अगर सरकार में इच्छाशक्ति हो, तो पूरे एजुकेशन सिस्टम की सतत् निगरानी और मूल्यांकन होनी चाहिए। हर क्षेत्र की डिमांड और सप्लाई की एनालिसिस होनी चाहिए ताकि स्टूडेंट्स तक इसकी जानकारी पहुंचे। इंटरमीडिएट के बाद स्टूडेंट्स को हर स्तर पर अलग-अलग फील्ड्स के लिए स्पेशलाइच्ड ट्रेनिंग की व्यवस्था होनी चाहिए, जो ग्रेजुएशन के समकक्ष हो। जब हम इनमें सफलता हासिल कर लेंगे, तो हमारे स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी दुनिया के टॉप शिक्षण संस्थानों में अपना स्थान जरूर बना पाएंगे।

प्रोजेक्टम बेस्ड हो अध्ययन

मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति और एचबीटीआइ कानपुर के पूर्व प्रोफेसर ओंकार सिंह का कहना है कि हमारे युवा चाहे ट्रेडिशनल एजुकेशन वाले हों या फिर टेक्निकल, वे हायर एजुकेशन में अच्छा परफॉरमेंस करते हैं, लेकिन बात जब इंडस्ट्रियल स्किल की होती है, तो वे बैकफुट पर आ जाते हैं। इसलिए भारत में प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग की जरूरत है। यूथ को उसके रुझान वाले क्षेत्र में विशेषज्ञता दिलाई जानी चाहिए। इस पर भी सोचने की जरूरत है कि समाज कार्य विभाग में कार्यरत शिक्षकों में क्यों कोई समाज सेवी नहीं है? पर्यावरण विभाग में क्यों कोई पर्यावरणविद् नहीं है? इसलिए शिक्षा व्यवस्था में व्यावहारिक बदलावों की आज बड़ी जरूरत है।

इनपुट : इलाहाबाद से लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी, जम्मू से योगिता यादव, पटना से सुमिता जायसवाल और गोरखपुर से क्षितिज पांडेय।


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