चिरिया माइंस में मजदूरों पर लटकी छंटनी की तलवार
तीन साल बाद एक बार फिर से एशिया के सबसे बड़े लौह अयस्क खदानों में शुमार नवरत्न कंपनी सेल यानी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चिरिया माइंस में मजदूरों की छंटनी का मामला गरमा गया है।
राहुल हेम्ब्रोम, चक्रधरपुर : तीन साल बाद एक बार फिर से एशिया के सबसे बड़े लौह अयस्क खदानों में शुमार नवरत्न कंपनी सेल यानी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चिरिया माइंस में मजदूरों की छंटनी का मामला गरमा गया है। छंटनी का जिन्न निकलने के साथ ही माइंस में कार्यरत श्रमिकों एवं उनके परिवार पर बेरोजगारी एवं रोजी-रोटी पर संकट मंडराने लगा है। पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोविड 19 कोरोना से जूझ रही है। लोगों के समक्ष बेकारी और बेरोजगारी मुंह बाए खड़ी है। ऐसी विकट स्थिति से जूझ रहे लोगों के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार रोजगार सृजन कराने पर जोर दे रही है। विडंबना देखिए कि चिरिया माइंस में अपनी जिंदगी बिता देने वाले मजदूर काम से निकाले जा रहे हैं। ऐसे में सरकारी उपक्रम इस कंपनी में ठेका प्रबंधक की नीतियों से मजदूरों के साथ ही विभिन्न यूनियनों के साथ ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों में भी आक्रोश व्याप्त है। 2017 में हुई थी 250 मजदूरों की छंटनी
जानकारी के मुताबिक इससे पहले वर्ष 2017 में भी चिरिया माइंस में मजदूरों की छंटनी का खेल चला था। तब ठेका कंपनी ने माइंस में कार्यरत मजदूरों का फिटनेस टेस्ट कराया और अनफिट बताकर कुल 741 में 250 मजदूरों पर छंटनी की तलवार चला दी। अब माइंस में 291 मजदूर कार्यरत हैं। अबकी बार भी ठेका कंपनी एनएसपीएल नारायणी संस प्राइवेट लिमिटेड ने मजदूरों को नियमों का हवाला देकर अनफिट बताकर छंटनी करने संबंधी नोटिस माइंस प्रबंधन को थमाया है।
इस बार मजदूरों की छंटनी रोकने की चुनौती, यूनियन-नेता हुए एकजुट
वर्ष 2017 में चिरिया माइंस में छंटनी रोकने को लेकर खूब राजनीति चली। यूनियनों ने एकजुटता दिखाई। सांसद, विधायक के साथ ही जनप्रतनिधि भी आगे आए। मामला लेबर कमिश्नर तक पहुंचा। लेकिन किसी ने मजदूरों की छंटनी पर रोक नहीं लगाई। इस बार भी यही सब हो रहा है। झारखंड की कैबिनेट मंत्री सह स्थानीय विधायक जोबा माझी, सांसद गीता कोड़ा के साथ ही सभी यूनियन इंटक, भारतीय मजदूर संघ, जेएमएसएस आदि के नेता माइंस में मजदूरों की छंटनी के विरूद्ध गोलबंद हुए हैं। लेकिन मजदूरों एवं उनके परिवार की नींद अभी भी उड़ी हुई है कि क्या ये सभी उन्हें बेरोजगार होने से बचा पाएंगे। सवाल यह भी है कि पिछली बार की तरह क्या इस बार भी छंटनी की समस्या का हल नहीं निकल पाएगा और श्रमिकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।