वनोत्पाद की हो मार्केटिंग तो मिलेगी वैश्विक पहचान, खुलेंगे रोजगार के द्वार
सारंडा इम्यूनिटी बूस्टर ड्रिक्स को ईको विकास समिति करमपदा के द्वारा तैयार किया गया है। इसके लिए सारंडा वन प्रमंडल की ओर से हाल ही में करमपदा में औषधि केंद्र खोला गया है।
जागरण संवाददाता, चाईबासा : सारंडा इम्यूनिटी बूस्टर ड्रिक्स को ईको विकास समिति, करमपदा के द्वारा तैयार किया गया है। इसके लिए सारंडा वन प्रमंडल की ओर से हाल ही में करमपदा में औषधि केंद्र खोला गया है। इको विकास समिति, करमपदा के सदस्यों को सारंडा वन प्रमंडल की ओर से काढ़ा बनाने का बकायदा प्रशिक्षण दिया गया है। सारंडा में विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। अर्जुन की छाल, तुलसी, गिलोय, अमरूद पत्ता, लौंग, दालचीनी, अदरक, नींबू ,काली मिर्च व गुड़ मिलाकर एक आयुर्वेदिक आधारित पेय पदार्थ तैयार किया है जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में लाभदायक है। सारंडा के जंगलों में कई ऐसे बहुमूल्य जड़ी-बूटी है, जिसे अगर मार्केटिंग की जाए तो यह वैश्विक स्तर पर पहचान बना सकती है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
सारंडा का काढ़ा इम्यूनिटी बूस्टर ड्रिक्स धन्वंतरि आयुर्वेदिक शोध संस्थान पंचकर्म विज्ञान चिकित्सालय के निदेशक सह प्रधान चिकित्सक डॉ मधुसूदन मिश्रा की देखरेख में बनाया है। करमपदा की ईको विकास समिति के इस कार्य से प्रेरणा लेकर अन्य वन समितियां भी इस तरफ अब सोचने लगी हैं। वन समितियों को वन विभाग से उम्मीदें लगी हैं। इनका कहना है कि अगर औषधीय पेय पदार्थ का दायरा बढ़ता है और बाजार मिलता है तो निश्चित रूप से यहां की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। खासकर सारंडा के आसपास बसे 20 से ज्यादा बड़े गांवों के युवा मार्केटिग का नया फंडा शुरू कर सारंडा के काढ़ा को ब्रांड के तौर पर उतारने आगे आयेंगे। हालांकि इसके लिए वन विभाग को उन्हें प्रेरित करना होगा।
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सारंडा इम्युनिटी बूस्टर का वृहद स्तर पर उत्पादन करने की जरूरत : विजय होनहागा
ईको विकास समिति, थलकोबाद के अध्यक्ष विजय होनहागा कहते हैं इम्यूनिटी बूस्टर से होने वाली आय से ग्रामीणों का उत्थन किया जाए और जल्द ही इसमें और लोगों को जोड़ वृहद स्तर पर उत्पादन किया जाए। उन्होंने बताया कि जल्द ही हमलोग तुलसी व गिलोय की पौधरोपण भी करेंगे ताकि इन संसाधन की कमी ना हो। उन्होंने बताया कि कोरोना से उत्पन हुई बेरो•ागारी में इस इम्यूनिटी बूस्टर को बनाकर आíथक संकट से निजात पाया जा रहा है। जब बाजार में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले अन्य उत्पाद बिक सकते हैं तो फिर सारंडा का हर्बल पेय क्यों नहीं। सरकार को इस बारे में विचार करना चाहिए।
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खनिज व नक्सलवाद से थी सारंडा की पहचान, अब काढ़ा चर्चा में : बुधराम
थोलकोबाद के ही बुधराम होनहागा ने इसे भविष्य के लिए बढ़यिा पहल बताते हुए कहा कि सारंडा जंगल में वनोत्पाद की कमी नहीं है। अगर इन वनोत्पाद की सही तरीके से मार्केटिग की जाये तो यहां के लोगों की दिशा व दशा बदल सकती है। सारंडा वन प्रमंडल की ओर से तैयार किया गया इम्युनिटी बूस्टर कोरोना काल में बेहतरीन नवाचार है। हमारा यह इलाका पहले खनिज व नक्सलवाद के लिए ही जाना जाता था। अब सारंडा के काढ़ा के लिए भी जाना जा रहा है। इस उत्पाद का ट्रेड लाइसेंस लेना अभी बाकी है। इसके बाद ही इसका व्यवसायिक इस्तेमाल हो सकेगा और आय का स्त्रोत बनेगा। इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी आगे आना होगा। सरकार के साथ मिलकर इसकी ब्रांडिग की योजना बनानी होगी। हम लोग भी अपने स्तर से आसपास के लोगों को इस तरह के काम के लिए आगे आने को प्रेरित करेंगे।
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औषधीय पौधों की खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने की जरूरत : ईश्वर नायक
नोवामुंडी की महुदी पंचायत के किसान मित्र ईश्वर नायक कहते हैं
जंगल है तो वनौषधि है। सारंडा जंगल हमेशा से ही यहां के लोगों का एक सघन वन क्षेत्र रहा है। यहां के जंगलों में निवास करने वाले लोग प्राचीन काल से ही आजीविका और स्वास्थ्य के लिये वनों और वनौषधियों पर निर्भर रहे हैं। यह परंपरा अभी भी जारी है। मेरा मानना है कि आयुर्वेदिक दवा युक्त औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सबसे पहले किसानों को प्रशिक्षण देना जरूरी है। प्रशिक्षण के बाद उन्हें पूंजी की जरूरत पड़ेगी।उसके बाद उपयुक्त जमीन होना चाहिए। राज्य सरकार से इस तरह की सरकारी व्यवस्था मुहैया कराई जाती है तो किसान पौधे उगाने में आगे बढ़ेंगे। अभी भी जंगलों को उजड़ने से बचाकर अप्राकृतिक जीवन से उत्पन्न असाध्य रोगों से मानव मात्र को बचाया जा सकता है। जड़ी-बूटियों और वनौषधियों के मामले में इतना धनी होने के बावजूद झारखंड में इसे बचाने और इसके जरिये रोजगार के सृजन की कोई नीति नहीं बनाई गई है।
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औषधीय खेती को बढ़ावा दे सरकार तो बनेगी बात : दुंबी बालमुचू
लखनसाई के किसान मित्र दुंबी बालमुचू का कहना है कि
प्रदेश में जंगलों के वनोत्पाद को बढ़ावा देने के लिए औषधीय खेती को प्रथमिकता मिलनी चाहिए। लोग इसे काढ़े के रूप में तैयार कर असाध्य रोग के लिए प्रयोग कर सकते हैं।इसे तैयार करना आसान भी है। कम खर्च या तो निशुल्क भी प्राप्त किया जा सकता है। औषधीय गुण वाले खेती से
किसानों को आसानी से रोजगार मिल जाएगा और असाध्य रोग का उपचार भी हो जाएगा। मुझे लगता है कि जंगलों से प्राप्त होने वाले औषधीय गुण वाले पौधे की खेती के लिए योजना शुरू होना चाहिए। इस तरह की योजना शुरू होने से निश्चित ही कृषक मित्र खेती की ओर झुकने लगेंगे। इस औषधीय गुण वाले पौधे से आम जनजीवन तक सुलभता से पहुंच जाएगी। इसे बेचने के लिए भी समुचित व्यवस्था उपलब्ध करना होगा।