कम बजट के पंडाल, आस्था का बड़ा केंद्र
पूजा तो पूजा होती है चाहे वह महल के अंदर हो या झोपड़े में। श्रद्धा इसमें मुख्य है। इस बार भी शहर में माता दुर्गे की पूजा 22 स्थानों और ग्रामीण क्षेत्र में दो स्थानों पर प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही है।
जासं, चक्रधरपुर : पूजा तो पूजा होती है, चाहे वह महल के अंदर हो या झोपड़े में। श्रद्धा इसमें मुख्य है। इस बार भी शहर में माता दुर्गे की पूजा 22 स्थानों और ग्रामीण क्षेत्र में दो स्थानों पर प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही है। इस बार निर्देशों के मुताबिक भारी तामझाम व रंग बिरंगी रोशनी नहीं है। इसके बावजूद कुछ समितियों ने आकर्षक पंडालों का निर्माण कराया है। कोरोना काल में भी कहीं ग्लैमर का रंग चढ़ा, तो कहीं पुरानी परंपरा के अनुरूप ही सादगी व अडंबर विहीन श्रद्धा बरकरार है। नगर के कई पूजा पंडालों में दुर्गोत्सव के आयोजन का भारी भरकम खर्च होता रहा है। जबकि आस्था व श्रद्धा का केन्द्र बने पुराने पूजा पंडालों का बजट मात्र 40 से 50 हजार रुपये ही रहता है। सभी जगह माता भगवती की पूजा की जा रही है। शहर के शीतला मंदिर दुर्गा पूजा समिति, कपड़ा पट्टी दुर्गा पूजा, न्यू बस स्टैंड समिति और पोर्टर खोली दुर्गापूजा समिति चुनिदा ऐसे नाम हैं, जो पंडालों के भव्य निर्माण और आकर्षक विद्युत सज्जा के लिए जाने जाते हैं। कोरोना काल में इन पंडालों के बजट में भारी कमी आई है। शीतला मंदिर पूजा समिति का पंडाल भव्यता के लिए पूरे जिले में जाना जाता रहा है। लेकिन इस वर्ष सरकारी निर्देशों का ध्यान रखा गया है। काली मंदिर, शौण्डिक धर्मशाला, बंगाली एसोसिएशन, पुराना बस्ती आदि पूजा समितियां कम बजट में पूजा का आयोजन करती रही हैं। बावजूद ये समितियां श्रद्धालुओं के आस्था की केन्द्र बिन्दु रही हैं।