हो को द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिला, लेकिन लाभ नहीं : मथुरा
जागरण संवाददाता चक्रधरपुर आदिवासी हो समाज चक्रधरपुर ने सोमवार को ओत गुरु कोल लाको बो
जागरण संवाददाता, चक्रधरपुर : आदिवासी हो समाज चक्रधरपुर ने सोमवार को ओत गुरु कोल लाको बोदरा की 34वीं दिरी दुल सुनुम (पुण्यतिथि) आदिवासी मित्र मंडल पोटका, चक्रधरपुर में मनाया। इस अवसर पर दियुरी लिटा सिंह जामुदा ने आदिवासी परंपरा अनुसार पूजापाठ कर ओत गुरु के बीड़ दिरी (गाड़ा हुआ पत्थर) पर श्रद्धांजलि दी गई। गुरु कोल लाको बोदरा हो समाज के वारंग क्षिति लिपि के जनक हैं। इन्होंने वारंग क्षिति लिपि का विकास एवं समाज को जागरूक करने के लिए आदि संस्कृति विज्ञान संस्थान जोड़ापोखर झींकपानी में एक कमेटी बनाकर प्रचार प्रसार किया। वारंग क्षितिलिपि के जनक होने के साथ ही शिक्षा एवं ओझा गुनी के क्षेत्र में भी अहम योगदान के कारण हो समाज ने उन्हें ओत गुरु (जगत जनक) की उपाधि दी। मौके पर मथुरा गागराई ने कहा कि लाको बोदरा के परिश्रम को सरकार नजर अंदाज कर रही है, जो हो समाज के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। आज भी हो समाज के लोगों को सरकारी योजना से दूर रखा गया है। सरकार ने हो भाषा को द्वितीय राज्य भाषा का दर्जा तो दे दिया, लेकिन ना तो सरकार ने शिक्षकों की बहाली की और ना ही हो भाषा की किताबें प्रकाशित करवाने का काम किया। मौके पर आदिवासी हो समाज युवा महासभा केंद्रीय समिति के सदस्य श्रीराम सामड, चक्रधरपुर अनुमंडल सचिव मथुरा गागराई, मुचिया सामड़, नंदी कोड़ा, मानकी मानकी मुंडा संघ कोल्हान पोड़ाहाट अंचल कमेटी चक्रधरपुर सह केरा पीड़ मानकी सिद्देश्वर सामड, सचिव सह बाईहातु मुंडा माधो केराई, हो भाषा के शिक्षक मांगता पुरती, टाटा राम सामड़, सरिता बोदरा, शांति बांकिरा, मारतोम दोराई, मरकोन्दो सामड़, हिसि केराई, लक्ष्मण बोयपाई, कुंवर सामड़, रामधन हासदा, मरियम होनहागा, चांदमुनी डांगिल, सुनीता चाम्पिया एवं काफी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।