सुविधाओं के इंतजार में बाईलोर के ग्रामीण
परिवार संख्या लगभग 60 जनसंख्या 600 के आसपास। भोगौलिक दृष्टि से सुदूर जंगल क्षेत्र। जीविकोपार्जन की बात करें तो प्रकृति पर ही निर्भर। जी हां दातुन पत्ता कंद मूल जलवान लकड़ी बेचकर के साथ-साथ दूसरे के यहां मजदूरी और होटलों में काम करके अपने परिवार की जीविका चलाने वाले गौड़दिघिया गांव के बाईलोर टोला के ग्रामीणों का यह छोटा सा परिचय है।
बिशाल गोप, जगन्नाथपुर : परिवार संख्या लगभग 60, जनसंख्या 600 के आसपास। भोगौलिक दृष्टि से सुदूर जंगल क्षेत्र। जीविकोपार्जन की बात करें तो प्रकृति पर ही निर्भर। जी हां, दातुन, पत्ता, कंद मूल, जलवान लकड़ी बेचकर के साथ-साथ दूसरे के यहां मजदूरी और होटलों में काम करके अपने परिवार की जीविका चलाने वाले गौड़दिघिया गांव के बाईलोर टोला के ग्रामीणों का यह छोटा सा परिचय है। परिचय छोटा है पर इनके दुख: दर्द छोटे नहीं हैं। बाईलोर टोला आज भी समस्याओं की गुलामी कर रहा। यूं कहे कि यहां के पूर्वजों व वर्तमान ग्रामीणों को अंग्रेजों से तो आजादी मिली पर मौलिक अधिकारों से आज भी गुलाम बने हुए है। बाईलोर ही नहीं जगन्नाथपुर प्रखंड क्षेत्र में ऐसे कई छोटे-छोटे टोले हैं जहां मौलिक सुविधाओं से ग्रामीण वंचित पड़े हुए हैं। बाईलोर एक उदाहरण है। यहां के ग्रामीण वर्षो से विकास की राह देखते आ रहे हैं। विकास की तस्वीर यहां मात्र शौचालय के रूप में दिखती है। यहां आंगनबाड़ी तो पर जच्चा-बच्चा कार्ड सहित अन्य सुविधाओं की कमी है। विद्यालय तो है पर विलय हो चुके हैं। सड़क तो है पर वह अपनी जर्जरता पर रो रही है। अब बात करते है बाईलोर में क्या नहीं है। यहां की सबसे बड़ी समस्या बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार है। जिस कारण ग्रामीण इस आधुनिक भारत में आखेट युग में जीने को मजबूर हैं।
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मनरेगा से यहां योजनाएं चलाई जाएंगी। शिविर लगाकर यहां बेरोजगारों का जाब कार्ड भी बनाया गया है। जल्दी ही बिजली की समस्या भी दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
- चंदन प्रसाद, बीडीओ, जगन्नाथपुर।