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निर्मल कुमार बेसरा 7 हजार खर्च कर जीता था पहला चुनाव

सिमडेगा विधान सभा चुनाव जीतने के लिए अब जहां लाखों रुपये प्रत्याशी खर्च कर रहे हैं। वहीं य

By JagranEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 11:14 PM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 11:14 PM (IST)
निर्मल कुमार बेसरा 7 हजार खर्च कर जीता था पहला चुनाव

सिमडेगा : विधान सभा चुनाव जीतने के लिए अब जहां लाखों रुपये प्रत्याशी खर्च कर रहे हैं। वहीं यह भी अचरज की ही बात है कि सन

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1977 में जनता पार्टी से पहली बार सिमडेगा विधान सभा सीट से चुनाव लड़ने वाले निर्मल कुमार बेसरा महज 7 हजार रुपये खर्च कर जीत हासिल की थी। उन्होंने 1980 में भी महज 10 हजार रुपये खर्च कर चुनाव जीता था। निर्मल कुमार बेसरा 1995 तक कुल 18वर्ष लगातार विधायक के लिए निर्वाचित होते रहे। विदित हो कि निर्मल कुमार बेसरा जेपी आंदोलन के दौरान ही अपने ग्रेजुकेशन की पढ़ाई

छोड़कर राजनीतिक समर में कूद पड़े और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।वे संयुक्त बिहार में मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के कार्यकाल के दौरान पहली बार विधायक बने, और इसके बाद वे रामसुंदर दास, चंद्रशेखर सिंह, बिन्देश्वरी दूबे,भगवत झा आजाद, सत्येन्द्र नारायण सिंह व लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान भी विधायक के रूप में बिहार विधान सभा की सदन में बैठे। सन 1995 में उन्हें सिमडेगा विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2009 व 2014 में में पुन: भाजपा की प्रत्याशी विमला प्रधान विधायक बनीं। हालांकि हार मिलने के बाद भी निर्मल कुमार बेसरा लगातार राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहे। वे कमोबेश हर बड़े मंच पर मुस्कुराते-खिलखिलाते नजर आ ही जाते हैं। इस बार भाजपा ने जब उनके पुत्र श्रद्धानंद बेसरा को टिकट दिया है। इस चुनाव में भी

वे बड़े उत्साह व उमंग के साथ जुटे हैं। सबसे रोचक यह कि निर्मल कुमार बेसरा में युवा काल के मित्र भी उनका खूब साथ व सहयोग दे रहे हैं।हालांकि कि इस चुनाव में जीत किसे मिलेगी यह तो कहना मुश्किल है। पर लोगों का मानना है कि निर्मल कुमार बेसरा शुरू से अब तक जिदादिल व रोचक इंसान रहे हैं। इधर निर्मल कुमार बेसरा ने बातचीत के दौरान बताया कि अब चुनाव पैसा का हो गया है। पहले न तो वाहन था न कोई अन्य व्यवस्था। साइकिल ही प्रचार का सबसे सुलभ व टिकाऊ साधन होता था। वे अपने सहयोगियों

के साथ साईकिल से ही प्रचार-प्रसार के लिए निकल जाते थे।रास्ते में जलपान के लिए चना गुड़, सत्तू-चूड़ा आदि होते थे। हालांकि तब ये मुश्किल आम थी कि दौरा कम ही क्षेत्र में हो पाता था। जबकि उस जमाने में आमने-सामने का संवाद ही अधिक कारगर होता था।


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