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महावीर स्वामी का मना जन्मकल्याण महोत्सव,निकली शोभायात्रा

सिमडेगा शहर के जैन भवन में डॉ. पद्मराज जी महाराज के सान्निध्य में तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्मोत्सव मनाया गया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 09:20 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 07:00 AM (IST)
महावीर स्वामी का मना जन्मकल्याण महोत्सव,निकली शोभायात्रा
महावीर स्वामी का मना जन्मकल्याण महोत्सव,निकली शोभायात्रा

सिमडेगा : शहर के जैन भवन में डॉ. पद्मराज जी महाराज के सान्निध्य में तीर्थंकर महावीर स्वामी जी का 2618 वां जन्म कल्याणक महोत्सव धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ। प्रात: 10 बजे से आयोजित समारोह में सामूहिक प्रार्थना और महावीर चालीसा का पाठ किया गया। सभा में डॉ. पद्मराज जी महाराज ने प्रभु के जन्म का विवरण सुनाते हुए कहा तीर्थंकर महावीर का अवतरण प्रकृति की अद्भुत घटना है। जब धरती का पुण्य उत्कर्ष पर होता है तब किसी महापुरुष का आगमन होता है। महावीर का असली नाम वर्धमान था और अपने अद्भुत पराक्रम एवं वीरता के कारण वे देव प्रदत्त महावीर नाम से विख्यात हुए। उन्होंने कहा कि व‌र्द्धमान महावीर ने 12 साल तक मौन और कठिन तपस्या के साथ अप्रतिकार की साधना की। इस दौरान उन्होंने देव, मनुष्य एवं पशुओं द्वारा प्रदत्त तरह-तरह के कष्ट झेले।42 वर्ष की उम्र में उन्हें, ऋजुबालिका नदी के तट पर, गोदुह आसन में'केवलज्ञान'प्रकट हुआ। केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया। आम जनता के द्वारा व्यवहृत अर्धमागधी प्राकृत भाषा में वे उपदेश देने लगे ताकि जनता उसे भलीभांति समझ सके।

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भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक बल दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका को लेकर चतुर्विध संघ की स्थापना की। उन्होंने कहा- जो जिस अधिकार का हो, वह उसी वर्ग में आकर सम्यक्त्व पाने के लिए आगे बढ़े। जीवन का लक्ष्य है समता पाना। धीरे-धीरे संघ उन्नति करने लगा। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया। उन्होंने व्यवहार में अहिसा, विचार में अनेकान्तवाद और वचन में स्याद्वाद को शामिल करने का निर्देश दिया। वे कर्मवाद और पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म के स्पष्ट समर्थक थे। उनकी शिष्य सम्पदा में 14,000 साधु, 36,000 साध्वियां एवं लाखों श्रावक-श्राविकाएं थीं। उन्होंने आगार और अणगार के रूप धर्म के दो मार्गों का उपदेश दिया। उनके प्रथम शिष्य इंद्रभूति गौतम और शिष्या चनदनबाला थीं।

भगवान महावीर ने 72 वर्ष की अवस्था में ईसापूर्व 527 में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक अमावस्या (दीपावली) की मध्यरात्रि में निर्वाण प्राप्त किया। इसी की स्मृति में प्रतिवर्ष घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।

उन्होंने कहा था संसार के सभी छोटे-बड़े जीव तुम्हारी ही तरह हैं, अत: किसीको कष्ट मत दो। जब तुम किसीको जीवन नहीं दे सकते हो तो तुम्हे मारने का भी कोई अधिकार नहीं है। उनका आदर्श वाक्य था मित्ती में सव्व भूएसु'सब भूतों अर्थात प्राणियों से मेरी मैत्री है। सभा में गुरुमां के द्वारा विभिन्न आयोजन करवाया गया।कार्यक्रम को सफल बनाने में गुरुमां, रेखा जैन, सारिका जैन, ज्योति जैन, ममता जैन, रीना जैन, अशोक जैन प्रधान, गुलाब जैन, उमा जैन, कौशल रोहिल्ला, योगेंद्र रोहिल्ला, विजय मित्तल, पवन जैन आदि का उल्लेखनीय योगदान रहा। शाम में निकली शोभायात्रा

सिमडेगा:महावीर स्वामी जी का 2618 वां जन्म कल्याणक महामहोत्सव के तहत बुधवार की संध्या में विशाल शोभायात्रा निकाली गई। इस मौके पर जैन मुनि डॉ.पद्मराज जी के अलावे बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी शामिल हुए। इस दौरान महावीर के जयकारे लगाए गए।


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