भोजन-पानी की तलाश में आक्रामक हुए हाथी-भालू, ले रहे इंसानों की जान
गर्मी से इन्सान ही नहीं जानवर भी बेहाल। जंगल में झरने और दूसरे जल स्रोत सूखने से भालू और हाथी आबादी का रुख कर रहे हैं। आक्रामक जानवरों के हमले में कई लोग जान गंवा चुके हैं।
सिमडेगा, [वाचस्पति मिश्र]। झारखंड में भीषण गर्मी पड़ रही है। जलस्रोत सूख रहे हैं, खाने पर भी संकट है। इंसान के साथ जानवर पानी के लिए व्याकुल हैं। खाना-पानी की तलाश में हाथी और भालू जैसे जानवर आक्रामक होकर इंसानी बस्तियों पर लगातार हमले कर रहे हैं। सिमडेगा में पिछले कुछ हफ्तों में हाथियों और भालुओं के हमले में दो लोगों की मौत हुई है। कई लोग घायल हुए हैं।
- सिमडेगा में ग्रामीणों पर बोल रहे हमला, दो की ली जान, कई को किया घायल
- महुआ का नशा भी बना रहा उतावला, मिट्टी के घरों में सेंध लगा खा जाते धान
कई एकड़ फसल बर्बाद हुई तो हाथियों ने कई के आशियाने ढाहे हैं। यह हाल प्रदेश के सिमडेगा का ही नहीं पलामू, सिंहभूम, खूंटी और कई जिलों का है। जानवरों से बचने के लिए जंगल के आसपास के गांव के लोग रतजगा कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि गर्मी से इन्सान ही नहीं, जानवर भी बेहाल हो गए हैं। जंगल में झरने और दूसरे जल स्रोत सूखने के चलते ही भालू और हाथी आबादी का रुख कर रहे हैं। इन आक्रामक जानवरों के हमले से अपनी जान बचाने के लिए ग्रामीण भागे फिर रहे हैं ।
महुआ और धान भी बड़ी वजह
पानी की कमी तो है ही। जानकार बताते हैं कि महुआ भी जानवरों को उतावला बना रहा है। सिमडेगा के बड़े इलाके में महुआ उपजता है। घर-घर में लोग महुआ से शराब बनाते हैं। इसकी गंध से हाथी खिंचे चले आते हैं। जिन घरों में महुआ से शराब बनती है वहां हाथियों का आक्रमण ज्यादा होता है। इसी दौरान चावल की भी उपज होती है। कच्चे मकानों में हाथी इस तरीके से सुराख पैदा करते हैं मानों किसी एक्सपर्ट चोर ने सेंधमारी की हो। धान की कोठी वाले हिस्से में ही मिट्टी की दीवार को तोड़कर धान-चावल चट कर जाते हैं। सिमडेगा में अगात धान की फसल होती है। इसी के बाद महुआ फलता है। ऐसे में हाथियों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं। सिमडेगा का वन क्षेत्र एक ओर गुमला के पालकोट आश्रयणी से जुड़ता है तो दूसरी ओर इसकी सीमा सारंडा जंगल, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ से भी सटा हुआ है। इसी कारण यहां छत्तीसगढ़, ओडिशा और सारंडा से हाथी आते हैं।
बना लिया ठिकाना
जिले के कुरडेग एवं बोलबा प्रखंड में तो हाथियों ने स्थायी तौर पर ही अपना ठिकाना बना लिया है। वहीं कोलेबिरा एवं पाकरटांड़ क्षेत्र में भालु अक्सर देखे जाते हैं। महुआ चुनने जाने वालों को अपना निशाना बनाते हैं।
रतजगा या पक्का मकान होता है ठौर
हाथियों व भालुओं के आक्रामक होने से वन क्षेत्र के करीब रहने वाले लोग डरे रहते हैं। पहाड़ों व जंगलों से घिरी बस्तियों में लोग सालों भर इनके आतंक से खौफजदा रहते हैं। हाथियों की गतिविधियां बढ़ती हैं तो डर से लोग रात जागकर बिताते हैं या पक्के मकान की छत पर शरण लेते हैं।
बांकुड़ा से आता है हाथी भगाओ दल
हाथियों का आक्रमण बढ़ता है तो उसे भगाने के लिए अक्सर पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा से हाथी भगाओ दस्ता बुलाया जाता है। उनके द्वारा समूह में मशाल जलाकर हाथियों को क्षेत्र से भगाया जाता है। कई बार ग्रामीण भी समूह बनाकर हाथियों को भगाते हैं। कई बार यह जोखिम भरा साबित होता है जब हाथी डर के बदले पलटवार करते हैं।
वनों में बढ़ा मानव दखल और महुआ बना रहा आक्रामक : डीएफओ
हाथियों व भालुओं के आक्रामक होने के मसले पर डीएफओ प्रवेश अग्रवाल कहते हैं कि जंगल में आदमी का दखल बढ़ रहा है। भोजन सामग्री में कमी आई है। गर्मी में जलस्रोत सूख गए हैं। हाथियों को भगाने के लिए लोग आग जलाते हैं या पटाखे फोड़ते हैं, इससे भी हाथी भड़क कर बस्तियों पर हमला बोलते हैं। उन्होंने कहा कि हाथियों का पसंदीदा भोजन बांस के पौधे हैं। जंगलों में उन्हें प्रचुर मात्रा में भोजन मिल जाए इसके लिए बांस के पौधे लगाए जा रहे हैं।
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