देवोत्थान एकादशी पर पूजे गए भगवान श्रीहरि
सरायकेला समेत जिले भर में देवोत्थान एकादशी पर विशेष पूजा अर्चना के कार्यक्रम किए गए। मंदिरों के पट भक्तों के लिए खुले। भगवान ने चतुर्मास शयन के बाद अपने भक्तों को दर्शन दिए। हालांकि पूरे पूजा कार्यक्रम में कोविड-19 का प्रभाव बना रहा..
जासं, सरायकेला : सरायकेला समेत जिले भर में देवोत्थान एकादशी पर विशेष पूजा अर्चना के कार्यक्रम किए गए। मंदिरों के पट भक्तों के लिए खुले। भगवान ने चतुर्मास शयन के बाद अपने भक्तों को दर्शन दिए। हालांकि पूरे पूजा कार्यक्रम में कोविड-19 का प्रभाव बना रहा। जहां मंदिरों के पुजारी सहित बुद्धिजीवी भक्तगण भी मंदिर आए भक्तों को कोविड-19 से सुरक्षित पूजा करने के लिए जागरूक करते हुए देखे गए। सरायकेला स्थित प्राचीन जगन्नाथ श्री मंदिर में पुजारी पंडित ब्रह्मानंद महापात्र द्वारा तथा श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में पंडित बृज मोहन शर्मा द्वारा मंत्रोच्चार के बीच पूजा संपन्न कराई गई। इधर देवोत्थान या देवउठनी एकादशी के साथ क्षेत्र में मांगलिक कार्यक्रमों का भी शुभारंभ हो गया।
पंचक स्नान का हुआ शुभारंभ : पवित्र कार्तिक मास का पालन करने वाले श्रद्धालुओं द्वारा देवोत्थान एकादशी के साथ पंचक स्नान का शुभारंभ किया गया। अगले पांच दिनों पूर्णिमा तिथि तक चलने वाले उक्त पंचक स्नान के तहत श्रद्धालु तड़के प्रात: स्थानीय खरकाई नदी में स्नान कर भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना करते हुए तुलसी स्थान पर जल अर्पण किया। सुख समृद्ध जीवन की मंगलकामना करते हुए जरूरतमंदों को दान भी किया गया। मान्यता है कि संपूर्ण कार्तिक मास या फिर पंचक स्नान का पालन करने से पापों का नाश होता है।
तुलसी-शालिग्राम विवाह : देवोत्थान एकादशी पर विभिन्न मंदिरों एवं घरों में भी देर शाम तुलसी शालिग्राम विवाह का आयोजन किया गया। जिसमें धार्मिक परंपरा के साथ तुलसी और श्रीहरि विष्णु स्वरूप शालिग्राम का विवाह संपन्न कराया गया।
देवोत्थान एकादशी पर मंदिरों में उमड़ी भक्तों की भीड़ : पवित्र देवोत्थान एकादशी पर बुधवार को मंदिरों में विशेष विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की गई। चार माह निद्रा में रहने के बाद बुधवार को देवोत्थान एकादशी पर जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु नींद से जागे, इस कारण विशेष पूजा-अर्चना की गई। मंदिरों में पूजा के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। खरसावां के जगन्नाथ मंदिर, हरि मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर व हरिभंजा के जगन्नाथ मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की। देवोत्थान एकादशी के साथ ही चतुर्मास की समाप्त हुई। हिन्दू धर्मावलंबियों के शुभ मांगलिक कार्य भी अब शुरू हो जाएंगे। धार्मिक मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की उपासना करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस कारण बड़ी संख्या देवोत्थान एकादशी के दिन लोग पूजा-अर्चना करने मंदिरों में पहुंचते हैं और उपवास रखते हैं। देवोत्थान एकादशी में शंख ध्वनि के साथ भगवान श्रीहरि विष्णु से संबंधित कथाओं का पाठ किया गया। कई स्थानों पर भगवान सत्यनारायण व्रत कथा का भी आयोजन किया गया। देवोत्थान एकादशी पर खरसावां के विभिन्न स्थानों पर तुलसी विवाह के व्रत का भी पालन किया गया। तुलसी व श्रीहरि विष्णु के विवाह के रश्म को पूरा किया गया। कोविड-19 के कारण मंदिरों में श्रद्धालु शारीरिक दूरी बनाकर पहुंचे थे।