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गणतंत्र दिवस पर मिली खुशी की सौगात

छोटे से गांव बीरबांस से आने वाली 63 वर्षीय छुटनी देवी का नाम सामाजिक क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने को लेकर पद्मश्री पुरस्कार के लिए घोषित किया गया। जिले में पूर्व से ही डायन कुप्रथा से संघर्ष के लिए आइकॉन बनी छुटनी देवी को इसकी खबर मिलते ही उनकी बूढ़ी आंखों में एक नई सी ऊर्जा और जीवन संघर्ष का परिणाम दिखने लगा..

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Jan 2021 08:10 AM (IST)Updated: Thu, 28 Jan 2021 08:10 AM (IST)
गणतंत्र दिवस पर मिली खुशी की सौगात
गणतंत्र दिवस पर मिली खुशी की सौगात

जागरण संवाददाता, सरायकेला : छोटे से गांव बीरबांस से आने वाली 63 वर्षीय छुटनी देवी का नाम सामाजिक क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने को लेकर पद्मश्री पुरस्कार के लिए घोषित किया गया। जिले में पूर्व से ही डायन कुप्रथा से संघर्ष के लिए आइकॉन बनी छुटनी देवी को इसकी खबर मिलते ही उनकी बूढ़ी आंखों में एक नई सी ऊर्जा और जीवन संघर्ष का परिणाम दिखने लगा। खुद को डायन के कलंक से मुक्त कराने के बाद वर्ष 2000 से समाज में डायन कुप्रथा से जारी छुटनी देवी के संघर्ष को वास्तविक पुरस्कार प्राप्त होने के बाद परिवार सहित गांव में भी खुशी की लहर दौड़ पड़ी। जानें छुटनी देवी के जीवन संघर्ष को :

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छुटनी देवी की शादी वर्ष 1979 में गम्हरिया प्रखंड के महताईनडीह गांव निवासी धनंजय महतो के साथ हुई थी। जिसके बाद उनको तीन पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। शादी के लगभग 12 वर्षों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। वर्ष 1991 से शुरू हुआ छुटनी देवी के संघर्ष का दौर। जब उनके अपनों ने ही उन पर डायन होने का आरोप लगा दिया। घर में उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा। छुटनी देवी बताती हैं कि इस दौरान सभी का रवैया बदल चुका था। सभी उसे नफरत की नजर से देख रहे थे। उनका घर से निकलना तक मुश्किल हो गया था। अपनों से ही हार गई छुटनी देवी को ससुराल में कई दिनों तक भूखा प्यासा रहना पड़ा था। नए जीवन की शुरुआत की हिम्मत के साथ : भारी प्रताड़ना के बीच ससुराल से निकलकर छुटनी देवी बीरबांस गांव पहुंचकर छुटनी ने एक झोपड़ी में अपने बच्चों के साथ नए जीवन की शुरुआत की। खुद अनपढ़ रहते हुए अपने बच्चों को शिक्षित बनाने का बीड़ा उठाया। जिसका परिणाम है कि आज उनका बड़ा बेटा अशोक कुमार महतो मैट्रिक पास कर कंपनी में सुपरवाइजर के पद पर है। मझला बेटा अतुल चंद्र महतो ग्रेजुएशन करके पारा शिक्षक के रूप में कार्यरत है। और छोटा बेटा अर्जुन महतो बीएससी बीएड की पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश करते हुए मनरेगा कर्मी पंचायत स्वयंसेवक के रूप में कार्यरत है। वही एकमात्र बेटी केशोवती महतो भी मैट्रिक तक शिक्षा दीक्षा पूरी कर सुखमय वैवाहिक जीवन जी रही है। खुद डायन का कलंक झेल चुकी छुटनी देवी ने समाज को इस कलंक से मुक्त कराने के लिए फ्री लीगल एड कमिटी नामक संस्था के साथ जुड़कर संकल्प के साथ अभियान चलाया। और डायन कुप्रथा से पीड़ित स्त्री और पुरुषों की आवाज बनकर दिन रात काम करने लगी। तब से लेकर आज तक उन्होंने तकरीबन 120 स्त्री एवं पुरुषों को डायन के कलंक से मुक्त करा कर उनके जिदगी को रोशन करने का काम किया है। छुटनी को वहां के लोग पहले डायन कहकर बुलाते थे, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। लोग छुटनी का लोहा मानते हैं। पुलिस प्रशासन की भी उसे अब सहयोग मिलता है। छुटनी तीसरी कक्षा तक ही पढ़ी है। लेकिन वह हिदी, ओड़िया और बांगला अच्छा बोल लेती है। पड़ोस की बेटी बीमार होने पर लगा था डायन का आरोप : दो सितंबर 1995 की बात है। तब पड़ोस की एक बेटी बीमार थी। तब लोगों को आशंका हुई थी छुटनी ने ही टोना-टोटका कर दिया होगा। इसके बाद गांव में पंचायत बुलाई गई थी। भरी पंचायत में उसे डायन करार दिया गया था। तब पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना भी उसपर लगाया था। 21वीं सदी की मदर इंडिया है मेरी मां : छुटनी के बेटा ने कहा कि उसकी मां 21वीं सदी की मदर इंडिया है। मां के संघर्षों को नहीं भूल सकता। मां ने अपने बच्चों को इसलिए पढ़ाया ताकि समाज की कुप्रथा को समाप्त करने में हम अपनी मां का सहयोग कर सकें। महिलाओं को समाज में समान रूप से अधिकार दिलाने और डायन कुप्रथा से समाज को मुक्त करने के लिए संकल्प के साथ संघर्ष का प्रारंभ किए थे। जिसे आगे भी जारी रखा जाएगा। पद्मश्री सम्मान मेरे जीवन का अनमोल उपहार है।

- छुटनी देवी, सामाजिक सेवा के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान के लिए घोषित।


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