यूरिक एसिड के दुष्प्रभाव से निजात दिलाएगा यह सरसों
जागरण संवाददाता साहिबगंज साहिबगंज में जिला कृषि विज्ञान केंद्र बायोफोर्टिफाइड सरसों से
जागरण संवाददाता, साहिबगंज : साहिबगंज में जिला कृषि विज्ञान केंद्र बायोफोर्टिफाइड सरसों से यूरिक एसिड से होने वाली बीमारियों से निजात दिलाने का प्रयास करेगा। यहां की 20 हेक्टेयर जमीन पर भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र दिल्ली से विकसित पूसा सरसों 30 प्रभेद की खेती की जा रही है। 50 किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
दरअसल, जिले में फिलहाल जिस सरसों की खेती होती है, उसमें यूरिक एसिड की मात्रा 30 से 40 फीसद तक होती है। यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती है। बायोफोर्टिफाइड सरसों में 0.2 फीसद ही यूरिक एसिड रहेगा। मधुमेह, जोड़ों का दर्द दूर करने में भी यह मददगार होगा। फिलहाल जिले में लगभग 15 हजार हेक्टेयर में सरसों की खेती हो रही है। नई किस्म के सरसों की उपज भी अधिक होगी। किसानों को बायोफोर्टिफाइड सरसों की खेती के लिए केवीके तकनीकी रूप से भी सहयोग कर रहा है। इसकी खेती के लिए जैविक खाद के प्रयोग के लिए भी जानकारी दे रहा है, ताकि किसानों का जीवन स्वस्थ व खुशहाल हो सके। सरसों की खेती राजमहल की पहाड़ियों की मध्य ऊपरी जमीन से लेकर गंगा के किनारे के अलावा दियारा क्षेत्रों में भी हो रही है। जिले के किसान खुद से उपजाए सरसों के तेल का प्रयोग खाने और लगाने में ज्यादा करते हैं। ---------------------
जिले में इस साल 20 हेक्टेयर में बायोफोर्टिफाइड सरसों की खेती केविके की ओर से कराई जा रही है। आने वाले साल में पूरी जमीन पर बॉयो फोर्टिफाइड सरसों की खेती किसान करेंगे तो उन्हें मधुमेह सहित कालेस्ट्राल जनित बीमारी ट्राइग्लेसराइड से निजात मिलेगी। बॉयोफोर्टिफड सरसों की उपज क्षमता भी अधिक है। इससे किसानों को कम लागत पर ज्यादा मुनाफा होगा।
डा. अमृत कुमार झा, प्रधान वैज्ञानिक, केवीके, साहिबगंज