डेढ़ माह बाद हॉस्टल से बाहर रखा कदम
कोटा के राजीव गांधीनगर में फंसी दीपाक्षी रविवार की रात घर लौट आयी। इसके बाद परिजनों ने राहत की सांस ली। डॉ. किरणमाला के क्लिनिक के समीप रहनेवाले व वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग दुमका में पदस्थापित दुखा मंडल की बेटी दीपाक्षी पिछले साल जून में 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद मेडिकल की कोचिग करने के लिए कोटा गयी थी।
साहिबगंज : कोटा के राजीव गांधीनगर में फंसी दीपाक्षी रविवार की रात घर लौट आई। इसके बाद परिजनों ने राहत की सांस ली। डॉ. किरणमाला के क्लिनिक के समीप रहनेवाले व वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग दुमका में पदस्थापित दुखा मंडल की बेटी दीपाक्षी पिछले साल जून में मेडिकल की कोचिग करने के लिए कोटा गई थी। उसका पाठ्यक्रम पूरा हो गया था। मई में परीक्षा होनेवाली थी। उसने कोटा ही सेंटर दे दिया था। इसलिए वहां रुकी हुई थी। इसी दौरान लॉकडाउन की घोषणा हो गई। दीपाक्षी ने बताया कि वह हॉस्टल के जिस कमरे में रहती थी उसमें उत्तर प्रदेश की एक और छात्रा रहती थी। लॉकडाउन घोषित होने के बाद चली गई। वहां की सरकार ने उसे लेने के लिए बस भेजा था। इसके बाद वह कमरे में अकेली बच गई। खाने-पीने की कोई समस्या नहीं थी। वहां मन भी नहीं लग रहा था। हॉस्टल संचालक ने सभी को सेल्फ क्वारंटाइन में रहने को कहा। इसके बाद वह केवल खाना खाने के लिए मेस तक जाती थी। बताया कि पूरे डेढ़ माह के बाद दो मई को हॉस्टल के बाहर कदम रखा। दीपाक्षी ने बताया कि एक-एक कर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों के बच्चे चले गए। केवल झारखंड व बिहार के ही बच्चे वहां बच गए थे। इससे अपनी सरकार पर कोफ्त भी होती थी। वहां फंसे बच्चे लगातार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ट्वीट कर रहे थे लेकिन कहीं से उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही थी। इधर मां-पिताजी परेशान थे। हर रोज मां-पिताजी से फोन पर बात होती थी। कमरे में अकेली रहती थी। पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था। ऐसे में मोबाइल में देश में हो रही घटनाओं पर नजर गड़ाए रहती थी। बताया कि एक मई को सूचना मिली कि हमलोगों के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ट्रेन भेज रहे हैं तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि बस में यात्रा करने से उल्टी होने लगती थी। तुरंत पैकिग शुरू की। दो मई को ऑटो बुक कर स्टेशन पहुंची। वहां स्वास्थ्य जांच के बाद ट्रेन में बैठी। स्टेशन पर मौजूद रेलकर्मियों ने काफी सहयोग किया। केवल ऑटो व कूली का भाड़ा स्वयं देना पड़ा। एलेन कोचिग वाले खाने का पैकेट व पानी का पैकेट दे गए। बताया कि धनबाद रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद यहां पहुंचने तक अधिकारियों ने काफी सहयोग किया। दीपाक्षी ने बताया कि वह अपना सामान लेकर आ गई है। उसने अपना सेंटर भी बदलकर झारखंड कर दिया है। अब यहीं रहकर परीक्षा देगी। उसने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व जिले के अधिकारियों को धन्यवाद दिया।