युवा मन को खूब भा रहा क्लासिकल डांस, बहुरंगी नृत्य विधाओं के हैं दीवाने
वेस्टर्न डास की जुदा शैलियों से इतर क्लासिकल डांस में युवा रुचि ले रहे हैं।
राची : कुछ समय पहले तक भले ही लोगों का रुझान वेस्टर्न डास की ओर बढ़ा था लेकिन अब फिर से क्लासिकल की ओर वापसी हो रही है। अब ज्यादातर युवा और बच्चे क्लासिकल डास सीखने आते हैं। यह कहना है डास क्लासेज में डास का प्रशिक्षण देने वाली कोरियोग्राफर नंदिता का।
शहर के युवाओं और बच्चों में डास सीखने का जुनून है। शाम होते ही डास क्लासेस बच्चे पहुंचकर नृत्य कला प्रशिक्षण ले रहे हैं। अधिकाश बच्चे तो क्लासिकल सीखने में लगे हैं। सेमी क्लासिकल जैसी विधा की ओर भी बच्चों और युवाओं का रुझान है। मन की भावनाओं को डास के द्वारा व्यक्त किया जाता है
वैसे तो डास सभी को बहुत अच्छा लगता है, लेकिन यह एक ऐसी कला है जो देखने में सरल लगती है लेकिन असल में बहुत कठिन होती है। जिसमें अपने मनोभावों को अभिव्यक्त किया जाता है। डास मतलब केवल हाथ-पाव चलाना या हाथ-पाव इधर-उधर घुमाना ही नहीं है, बल्कि सही तरीके से, सही सलीके से, सही मनोभावों के साथ उसे अभिव्यक्त करना ही डास का असली उद्देश्य होता है।
यह हैं प्रचलित डास विधाएं
गरबा
कत्थक
भरतनाट्यम
कथकली
युवाओं में है क्रेज
नृत्य में रुचि रखने वाले युवा क्लासिकल डास के दीवाने हैं। ऐसे में कई युवा कपल इंडियन क्लासिकल डास सीखने आते हैं। इस विधा के तहत भारतीय फिल्मों पर आधारित डास होता है। बहुत से युवा सेमी क्लासिकल भी सीख रहे हैं, इसमें क्लासिकल के साथ बॉलिवुड के स्टेप्स सिखाए जाते हैं।
हर उम्र वर्ग के लोग सीख रहे हैं डास
क्लासिकल डास की क्लास में 4 साल के बच्चों से लेकर 30 वर्ष तक की महिलाएं देखी जा सकती हैं। हालाकी अगर आप इसमें कोर्स करना चाहते हैं तो इसके लिए आपकी उम्र 10 साल या इससे ज्यादा होना चाहिए।
राजधानी में अनुभवी गुरु नृत्य की बारीकिया सिखा रहे हैं। शहर के युवाओं और बच्चों में डास सीखने का जुनून है। अधिकतर बच्चे तो क्लासिकल सीखने में लगे हैं। बच्चे इसे फीस देकर सीख सकते हैं। किसी डास एकेडमी में हर महीने के पाच सौ जबकि किसी एकेडमी में हजार रुपए तक लगते हैं।
कथक में भी ले रहे रुचि
कथक सीखने में युवा और बच्चे विशेष रुचि दिखा रहे हैं, हालाकि इसे सीखने में समय ज्यादा लगता है। पेरेंट्स भी अपने बच्चों को कथक सिखा रहे हैं। बच्चों को हर तरह का डास सीखना चाहिए। इससे वे अलग-अलग डास के तरीके को समझ सकें, यह कहना है भारती गुप्ता का जो एक 12 साल की बच्ची की मा हैं।
परंपराओं से जोड़ता है शास्त्रीय नृत्य
आजकल वेस्टर्न कल्चर का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पैरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे अपनी परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहे। शास्त्रीय नृत्य इसका सशक्त जरिया है।
फिट रखने के लिए भी इससे जुड़ रहीं लड़किया
महिलाएं और लड़किया खुद को फिट रखने के लिए भी शास्त्रीय नृत्य सीखती हैं। बहुत से बच्चे भी ज्यादातर क्लासिकल ही सीखते हैं। डास फिट रहने का एक बेहतरीन जरिया है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
डास में कॅरियर बनाने के साथ मनोरंजन करते हुए स्वस्थ रहा जा सकता है। डास जरूर सीखना चाहिए, यह जीवन में आत्मविश्वास जगाती है। क्लासिकल नृत्य हमारी संस्कृती का हिस्सा हैं और बच्चों की इसमें रूचि देख कर खुशी मिलती है। भरतनाट्यम दक्षिण भारत का डास फॉर्म है।
नंदिता सानयाल, भरतनाट्यम डास प्रशिक्षक
क्या कहते हैं युवा
क्लासिकल डास सीखना वेस्टर्न डास फॉर्म सीखने से ज्यादा कठिन है लेकिन जितनी संतुष्टी मुझे क्लासिकल डास कर के मिलती है उतनी वेस्टर्न से नहीं मिलती।अंजली, बरियातू
मैं तीन महीने से कथक सीख रही हूं और इससे मुझे बहुत ही उर्जावान महसूस होता है। क्लासिकल डास बहुत कुछ सिखा देती है। अनुशासित रह कर कैसे जिंदगी में आगे बढ़ सकते हैं यह डास हमें सिखाता है।
वंदना, रानी बागान