पानी के लिए ऐसा संघर्ष आपने नहीं देखा होगा, बूंद-बूंद जमा कर बुझती है ग्रामीणों की प्यास
Latehar News कुछ महीने से चुआंड़ी का पानी इंसान और जानवर दोनो पी रहे हैं। चापाकल खराब होने की जानकारी जल सहिया को दर्जनो बार दिया गया है। गांव की महिलाएं कहती हैं कि चापाकल बनवाने का कई बार मुखिया से भी अनुरोध कर चुके हैं
लातेहार, जागरण संवाददाता। महुआडांड़ प्रखंड के चंपा पंचायत में प्रखंड मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ की चोटी पर स्थित बोड़ाकोना डीपाखोरी गांव के लोग चुआंड़ी का पानी पीने को विवश हैं। यह गांव एस एच 9 महुआडांड़ रांची पथ के किनारे स्थित है। इस गांव मे 48 आदिवासी परिवार के घर हैं। गांव का एकमात्र चापाकल पिछले तीन महीने से खराब पड़ा है।
पहाड़ी चुआ पानी पीने को मजबूर ग्रामीण
मजबूर होकर सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण तीन महीनों से पहाड़ी चुआं का पानी पीने को मजबूर हैं। कुछ महीने से चुआंड़ी का पानी इंसान और जानवर दोनो पी रहे हैं। चापाकल खराब होने की जानकारी जल सहिया को दर्जनो बार दिया गया है। गांव की महिलाएं कहती हैं कि चापाकल बनवाने का कई बार मुखिया से भी अनुरोध कर चुके हैं लेकिन आश्वासन ही दिया जाता है। अंजू काशी, मीरा देवी, फुलेश्वरी देवी, पूनम देवी, सिदवा देवी ने बताया कि हम पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं।
पानी के लिए संघर्ष
पहाड़ से सौ मीटर नीचे उतरकर चुआड़ी से पानी लाना पड़ता है। आज कल इसी को पी रहे हैं। जब चापाकल दुरूस्त था तो चापाकल से पानी पीते थे एवं इस चुआड़ी का उपयोग हमलोग कपड़ा धोने, नहाने और जानवर को पानी पिलाने के लिए करते हैं। गांव के प्रधान तरूण बड़ाईक ने बताया कि डीपाखोरी के लिए एकमात्र चापाकल है। इस चापाकल को बनाने के लिए लिखित आवेदन दिया गया है पर अभी तक कोई सुनवाई नही हुआ है। आज चुआड़ी से पानी मिल रहा है, लेकिन दो महीने बाद यह चुआंड़ी भी सूख जाएगी। गर्मी के दिन आते ही पानी की भारी किल्लत होगी।