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World Soil Day 2020: खाद के ज्‍यादा प्रयोग से बीमार हो रही झारखंड की मिट्टी, मृदा प्रबंधन से बनेगा भविष्य

Jharkhand Latest News मृदा प्रबंधन के अभाव और अत्यधिक खाद के इस्तेमाल से राज्य की मिट्टी खऱाब हो रही है। किसान अधिक फसल की इच्छा से ज्यादा से ज्यादा यूरिया और डीएपी का इस्तेमाल खेत में करते हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 07:26 AM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 07:34 AM (IST)
World Soil Day 2020: खाद के ज्‍यादा प्रयोग से बीमार हो रही झारखंड की मिट्टी, मृदा प्रबंधन से बनेगा भविष्य
राज्‍य के 18 जिलों की मिट्टी की हालत खराब पाई गई है।

रांची, जासं। हर वर्ष 5 दिसंबर को दुनिया भर में विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य किसानो एवं आमलोगों को मिट्टी की महत्ता के बारे में जागरूक करना है, ताकि पर्यावरण को बचाते हुए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा इस वर्ष की थीम “मिट्टी को जीवित रखें–मिट्टी की जैव विविधता का संरक्षण करें” रखा गया है। हाल ही में बिरसा कृषि विश्‍वविद्यालय के द्वारा झारखंड के 18 जिलों में किए गए शोध में मिट्टी की हालत काफी खऱाब पाई गई है।

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मृदा प्रबंधन के अभाव और अत्यधिक खाद के इस्तेमाल से राज्य की मिट्टी खऱाब हो रही है। किसान अधिक फसल की इच्छा से ज्यादा से ज्यादा यूरिया और डीएपी का इस्तेमाल खेत में करते हैं। मगर फिर भी उन्हें बेहतर फसल प्राप्त नहीं होती है। राज्य की मिट्टी में 35 प्रतिशत तक माइक्रो न्यूट्रएंट की कमी पाई गई है। वहीं सुदूर आदिवासी गांवों में मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर पाया गया है। कारण यह कि आदिवासी समाज के लोग आज भी पारंपरिक और जैविक खेती करते हैं।

साथ ही जल-जंगल और जमीन के संरक्षण के लिए सजग हैं। राज्य के सबसे बड़े कृषि विवि के कुलपति डाॅ. ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि मिट्टी ही जीवन का आधार और अंतिम पड़ाव है। मानव का 95 प्रतिशत भोजन मिट्टी से प्राप्त होता है। दुनिया में 50 हजार प्रकार के मिट्टी पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिक खेती के तौर-तरीकों और वातावरण में हुए बदलाव का असर मिट्टी और पानी दोनों पर पड़ा है। इसका मुख्य कारण किसानों द्वारा रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाईयों का ज्यादा इस्तेमाल करना है।

वर्तमान में राज्य की मिट्टी का 33 प्रतिशत भाग पहले से ही बंजर होने के कगार पर पहुंच चुका है। झारखंड में भूमि का कटाव बहुत बड़ी समस्या है। हम अपने फायदे के लिए करीब 70 प्रतिशत जंगल विलुप्त कर चुके हैं। ऐसे में मृदा प्रबंधन पर काम करना जरूरी है। डाॅ. ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि हाल के दिनों में परंपरागत खेती की उपेक्षा, जैविक खेती एवं हरी खाद के प्रयोग में कमी से मिट्टी के जैविक गुणों में कमी देखी जा रही है। ऐसे में मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में गिरावट आई है। यह प्रदूषण का शिकार हो रही है।

पंजाब जैसे राज्य में मिट्टी का अधिक दोहन एवं रासायनिक उर्वरकों के अधिकाधिक प्रयोग के कारण आम लोग कैंसर जैसे रोग से पीड़ित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण किसानों और आम लोगों में मिट्टी संरक्षण एवं मिट्टी स्वास्थ्य प्रबंधन सबंधी जानकारियों का आभाव है। हमारा जीवन जल, जंगल और जमीन से जुड़ा है। उन्होंने विश्व बैंक आइसीएआर प्रायोजित एवं समेकित कृषि प्रणाली आधारित कास्ट परियोजना में वैज्ञानिकों को मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार, मिट्टी एवं जल संरक्षण तथा कृषि वानिकी पर प्राथमिकता देने की जरूरत बताया है।

कैसे संरक्षित होगी मिट्टी

⦁    मिट्टी जांच के आधार पर अनुशंसित खाद की मात्रा के अनुसार ही खेती करें।

⦁    जैविक खेती को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए

⦁    जैविक, जीवाणु एवं हरित खाद का अधिकाधिक उपयोग

⦁    फसल चक्र को अपनाना

⦁    संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करना है।

⦁    खेती में पलवार का उपयोग करना

⦁    मेड़ बंदी करना है जिससे खेत की मिट्टी खेत में रहे

⦁    मृदा संरक्षण के उपाय करना

⦁    जैविक बाड़ के रूप मे टेप्रोसिया, ग्लारिसिडिया, बहुवर्षी अरहर, सुबबूल इत्यादि का उपयोग


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