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World Cancer Day 2021: दर्द की कलम से लिख दी किताब 'थैंक्यू कैंसर', पढ़ें अरुण मिश्रा की कैंसर से जंग की कहानी

World Cancer Day 2021 अरुण मिश्रा करते हैं कि कैंसर ने उन्हें जीवन की कई सच्चाईयों से अवगत कराया। इसलिए काफी सोच समझकर उन्होंने किताब का नाम थैंक्यू कैंसर दिया है। अगले कुछ माह में इसका प्रकाशन हो जाएगा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 03 Feb 2021 07:37 PM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2021 02:36 PM (IST)
World Cancer Day 2021: दर्द की कलम से लिख दी किताब 'थैंक्यू कैंसर', पढ़ें अरुण मिश्रा की कैंसर से जंग की कहानी
झुमरी तिलैया के अरुण मिश्रा की आने वाली पुस्तक का कवरपेज।

कोडरमा, [अनूप कुमार]। World Cancer Day 2021 पिछले करीब ढाई वर्षों से कैंसर की जंग लड़ते हुए झुमरीतिलैया निवासी शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी व बुद्धिजीवी अरुण मिश्रा ने 150 पन्नों की एक किताब ही लिख डाली। थैंक्यू कैंसर, नाम से लिखी इस किताब की पांडुलिपि तैयार हो चुकी है। अरुण मिश्रा बताते हैं कि अगले कुछ माह में इसका प्रकाशन हो जाएगा। कवरपेज का डिजाइन भी इन्होंने खुद ही किया है। किताब इनके जीवन पर आधारित है।

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इसमें इन्होंने चिकित्सीय जांच में अपने अंदर प्रोस्टेट कैंसर पाए जाने से लेकर इसके इलाज में हुई असहनीय पीड़ा को स्वजनों व इष्ट मित्रों के सहयोग से कैसे सहा, उस दौर क्या-क्या चुनौतियां सामने आई, इन चुनौतियों व बीमारी से मुकाबला के लिए खुद को कैसे तैयार किया, बीमारी के बावजूद बीमार नहीं दिखने और 8-10 घंटे अपना काम करने के लिए क्या-क्या जतन करने पड़े, बीमारी के दौरान दूसरे कैंसर पीड़ि‍तों के सहयोग के लिए कैसे आगे बढ़े, जैसे पलों को संजोया है।

अरुण मिश्रा कहते हैं कि कैंसर ने उन्हें जीवन की कई सच्चाईयों से अवगत कराया। इसलिए काफी सोच समझकर उन्होंने किताब का नाम थैंक्यू कैंसर दिया है। वर्ष 2018 में अरुण मिश्रा प्रोस्टेट कैंसर से ग्रसित हुए थे। अबतक इन्होंने 15 डोज कीमोथेरेपी और करीब 15 डोज हार्मोन थेरेपी की ली है। जीवन के 61 बसंत देख चुके अरुण मिश्रा कहते हैं- यदि हमारे जीवन में कैंसर नहीं आता तो जीवन की सच्चाई व जीवन जीने के तरीकों के बहुत सारे पहलुओं से अनजान रह जाता। जीवन में पहले कभी साहित्य से नाता नहीं रहा। लेकिन बीमारी ने इसके काफी करीब ला दिया। नतीजा यह है कि आज 150 पन्नों का किताब लिख पाया।

इस दौर में दर्जनों कविताएं लिख डाली। अस्पताल में जब कठिन दौर से गुजर रहा था, तब अमेरिकी राइटर लुईस हे की आत्मकथा पर आधारित एक पुस्तक ने मेरे जीवन में बड़ा सकारात्मक प्रभाव डाला। इस लेखिका के जीवन में 26 वर्ष की उम्र में कैंसर आया और दो वर्ष पूर्व 91 वर्ष की उम्र में उनकी मौत हुई। यह किताब विपरीत परिस्थितियों से लड़ने के लिए काफी प्रेरणादायी रही। इन्होंने उम्मीद जताई है कि उनकी किताब भी कैंसर पीड़‍ितो को बीमारी से लड़ने के लिए प्रेरणादायी होगी।


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