क्या अब झारखंड में भी किन्नरों को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल करेगी हेमंत सरकार
ओडिशा और बिहार सरकार ने किन्नरों को पुलिस में बहाल करने का आदेश दे रखा है। यह दोनों राज्य झारखंड के पड़ोसी हैं। ओडिशा के ताजा फैसले के बाद अब झारखंड में भी किन्नरों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। उन्हें लगने लगा है कि सरकार कोई पहल जरूर करेगी।
रांची (जागरण संवाददाता)। किन्नर यानी थर्ड जेंडर के प्रति अब समाज और सरकारों का नजरिया तेजी से बदल रहा है। हालांकि समाज व कई राज्यों में यह बदलाव अभी परवान नहीं चढ़ पाया है। लेकिन ओडिशा सरकार की पहल अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणास्रोत साबित हो सकती है। ओडिशा में राज्य सरकार ने पुलिस विभाग में किन्नरों की नियुक्ति की तैयारी तेज कर दी है। वहां सरकार ने 477 इंस्पेक्टर पद के लिए इसी शनिवार को बकायदा विज्ञापन भी निकाल दिया है। इसी माह 22 जून से 15 जुलाई तक आवेदन करने का मौका दिया गया है। इस पद के लिए किन्नर भी आवेदन करेंगे। ओडिशा सरकार के इस निर्णय का किन्नर संघ ने वहां स्वागत किया है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के प्रति आभार प्रकट किया है। किन्नरों की नेता मीरा परिडा ने कहा कि इससे किन्नरों के प्रति लोगों का सम्मान बढ़ेगा। उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर मिलेगा। इसके लिए नवीन पटनायक सरकार की जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सदैव हर वर्ग के लोगों के हित के लिए कार्य कर रहे हैं। सरकार के इस निर्णय से किन्नरों में खुशी है। 477 इंस्पेक्टर के अलावा 244 सिपाही पद के लिए भी राज्य सरकार की तरफ से विज्ञप्ति प्रकाशित की गई है। इसमें भी किन्नरों के लिए अवसर है। उन्होंने किन्नरों से तुरंत आवेदन करने की अपील की है।
झारखंड में भी एक दिन के लिए जज बनाई गई थी कल्पना अल्पेश सोनी
मालूम हो कि झारखंड में भी समय समय पर राज्य सरकार के स्तर पर किन्नरों को भी मुख्यधारा से जोडऩे की पहल होती रही है। इसी वर्ष अप्रैल की दस तारीख को रांची में प्रतीकात्मक रूप से एकदिन के लिए किन्नर अमृता अल्पेश सोनी राष्ट्रीय लोक अदालत में मुकदमों की सुनवाई के लिए जज बनाई गई थीं। मूलरूप से महाराष्ट्र की रहने वाली अमृता अल्पेश सोनी राजधानी रांची में ट्राई इंडिया स्वयंसेवी संगठन में बतौर स्वास्थ्य निदेशक के रूप काम करती हैं। वह रांची के अशोक नगर में रहती हैं। इस खबर से राजधानी समेत झारखंड में रहने वाले सभी किन्नरों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। इस मौके पर अमृता अल्पेश सोनी ने कहा था कि पहले न्याय मांगना पड़ता था अब दूसरों की मदद कर गर्व महसूस होता है। इसके अलावा भी सरकार ने कुछ वर्ष पूर्व किन्नरों को सरकारी राशन मुहैया कराने की कवायद शुरू की थी। लेकिन इन कवायदों के बावजूद अभी झारखंड में किन्नरों के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। यहां भी समय समय पर किन्नर अपने हक की मांग के लिए आवाज उठाते रहे हैं। सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस कार्ययोजना की घोषणा यहां नहीं की गई है।
बिहार सरकार भी पुलिस की बहाली में दे चुकी है आरक्षण
उधर, पड़ोसी राज्य बिहार में इसी वर्ष करीब 40 हजार किन्नरों ने हाई कोर्ट में एक मुकदमा दायर कर हक दिलाने की गुहार लगाई थी। बाद में नीतीश सरकार ने पहल करते हुए राज्य में किन्नरों को पुलिस बहाली में आरक्षण देने की घोषणा भी कर दी थी। सरकार ने खुद कोर्ट में इसकी जानकारी दी थी। सरकार ने हलफनामा के जरिए कोर्ट को बताया था कि राज्य में किन्नरों की आबादी के आधार पर पुलिस बहाली में उनका आरक्षण कोटा तय कर दिया गया है। इस कोटा के अनुसार राज्य के हर जिले में कम से कम एक किन्नर दारोगा तथा चार सिपाहियों की बहाली तय कर दी गई है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ कर रही थी। किन्नरों के आरक्षण देने के लिए वीरा यादव ने जनहित याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कार्रवाई रिपोर्ट पेश की थी। बताया था कि राज्य में किन्नरों की आबादी कुल आबादी का 0.039 फीसद है।
झारखंड के सात जिलों में इस समय हैं 3500 किन्नर
बहरहाल, ओडिशा और बिहार दोनों ही झारखंड के पड़ोसी राज्य हैं। इन दोनों राज्यों की सरकारें अक्सर जो फैसला लेती हैं, झारखंड सरकार भी उस दिशा में कदम बढ़ाती है। इसके कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। ऐसे में अब यह चर्चा यहां आम है कि क्या झारखंड सरकार भी पुलिस सहित अन्य बहालियों में किन्नरों को आरक्षण दे सकती है। हालांकि इस बारे में अभी कैबिनेट या सरकार स्तर से कोई बात नहीं कही गई है, लेकिन जनता में चर्चा जारी है। यदि सरकार कोई पहल करती है तो यह सराहनीय कदम होगा। मालूम हो कि ट्रांसजेंडर उत्थान सीबीओ झारखंड के सात जिलों पश्चिम सिंंहभूम, सरायकेला खरसावां, पूर्वी सिंंहभूम, गिरिडीह, रांची, रामगढ़ और धनबाद में काम करता है। यहां करीब 3500 ट्रांसजेंडर हैं।