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Weekly News Roundup Ranchi: एक बंगला चाहिए न्यारा... जिद पर अड़े विधायकजी

Jharkhand. नजरें किसी बड़े पद पर है। कैबिनेट की बची हुई एक सीट मिल जाए तो बल्ले-बल्ले। यह सपना विधायक के रिश्ते-नातेदारों का भी है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 09:53 AM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 05:21 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: एक बंगला चाहिए न्यारा... जिद पर अड़े विधायकजी
Weekly News Roundup Ranchi: एक बंगला चाहिए न्यारा... जिद पर अड़े विधायकजी

रांची, [आनंद मिश्र]। Weekly News Roundup पलामू वाले एनसीपी विधायक की झोली में दो टर्म बाद खुशियां आई हैं। पहले झारखंड में उनका काफी रुतबा हुआ करता था। इस बार पुराना रुतबा तो नहीं मिला, लेकिन इसके प्रयास में जरूर हैं। समर्थन भी दे दिया है। पहुंच-पैरवी का भी सहारा ले रहे हैं। नजरें किसी बड़े पद पर है। कैबिनेट की बची हुई एक सीट मिल जाए तो बल्ले-बल्ले।

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यह सपना विधायक के रिश्ते-नातेदारों का भी है। इसी रुतबे का सपना पाले उनके अनुज की नजर मंत्रियों वाले एक बड़े बंगले पर थी। देखने भी पहुंच गए थे। पसंद भी था। लेकिन आवंटन हुआ तो निराशा हाथ लगी। हाथ लगा साधारण सा आवास। वह भी प्राइम लोकेशन से दूर। बताया जा रहा है कि वे खुश नहीं हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि कितने माननीयों का तो बंगला ही छिन गया। लेकिन वे अभी भी इस जिद पर कायम हैं कि एक बंगला चाहिए न्यारा...।

राजनीति का केजरीवाल फार्मूला

राजनीति में हिट है, वही फिट है और हिट तो इन दिनों अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक फार्मूला ही है। हैट्रिक लगा दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाले केजरीवाल का फार्मूला हमारे युवा मुख्यमंत्री को भी रास आ गया है। बस उसी लीक को आधार बना बिना किसी से कुछ कहे आगे बढ़ चले हैं। तीन सूत्री फार्मूले पर अमल भी शुरू हो चुका है। शीर्ष नेताओं पर तीखी टिप्पणी से परहेज।

जनता को मुफ्त बिजली का तोहफा। सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को निजी क्षेत्र की श्रेणी में खड़ा करना। जनता को बस इतना दे दो तो वह सिर माथे पर बिठाती है। तो भइया संकेत मिल चुके है, बहुत हो चुकी बिहारी स्टाइल में राजनीति अब तो यहां दिल्ली फार्मूले पर काम होगा। झारखंड वालों ने दिल्ली की दिल्लगी से बहुत सबक लिया है। अब संजीदगी से सीखने का वक्त आ गया है।

नेतृत्व का संकट

विधानसभा चुनाव के बाद से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी झारखंड में नेतृत्व संकट से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव हारने के बाद से तकरीबन एकांतवास पर चले गए हैं और अपने केंद्रीय मंत्री पर देश की समस्याओं का बोझ आन पड़ा है। अब झारखंड कौन संभाले? मुश्किल बड़ी है। पिछले डेढ़ दशक से कमल दल में सिर्फ फालोअर्स की संख्या बढ़ी है, नेता पैदा ही नहीं हो रहे हैं।

इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए आलाकमान ने नेता आयात करने का निर्णय लिया है। बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी समेत इंपोर्ट किए जा रहें हैं। आयात शुल्क भी उन्हें और उनके कुबने को सम्मानजनक पद देकर चुकाया जाएगा। हालांकि प्रत्यक्ष में इसे घर वापसी का नाम दिया जा रहा है। घर वापसी में महज कुछ ही घंटे बचे हैं। खुद अमित शाह इसे अंजाम देने आ रहे हैं।

अब किसकी बारी

झारखंड में भ्रष्टाचारी आफत में हैं। इतनी तेज कार्रवाई तो पहले हुई ही नहीं थी। पता नहीं कब किसका नंबर आ जाए। रासबिहारी सिंह अरसे से जमे हुए थे। इनकी तूती बोलती थी सरकार में। नप गए। ऐसे कई छोटे-बड़े मगरमच्छ अभी भी खुलकर तालाब में उधम मचा रहे हैं। ठेकेदार तो पनाह मांगते हैं इनसे। ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको इस सिंडिकेट ने ठगा नहीं। सबको खुश रखकर खुद मलाई मारना इनकी आदत जो है।

अधिकारियों के दर पर सुबह-शाम हाजिरी बजाकर इन लोगों ने इतना इकट्ठा कर लिया है कि समेटते नहीं बनेगा। देर-सवेर ये धर लिए जाएंगे तो खौफ बढ़ेगा बेइमानों में। अब चुनौती यह है कि सिर्फ बात तक बात न रहे, ये सलाखों के पीछे जाएं तो बात बने। बेचारे छोटे तो बहुत पकड़े गए थोक में, लेकिन बड़ों पर हाथ डाले बगैर तालाब का पानी साफ नहीं होने वाला है।


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