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मातृभाषाओं की उन्नति के लिए कार्य करना होगा

रांची जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग राची में मातृभाषा दिवस मनाया गया। मौके पर मुख्य अतिथि रा

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Feb 2019 07:29 AM (IST)Updated: Fri, 22 Feb 2019 07:29 AM (IST)
मातृभाषाओं की उन्नति के लिए कार्य करना होगा
मातृभाषाओं की उन्नति के लिए कार्य करना होगा

रांची : जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग राची में मातृभाषा दिवस मनाया गया। मौके पर मुख्य अतिथि, राची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि मातृभाषाओं के उत्थान के लिए संख्या बल की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसे संरक्षित करना है तो एक व्यक्ति ही काफी है। उन्होंने कहा कि हमारी मातृ भाषाओं को सामाजिक संरक्षण प्राप्त नहीं होगा तो हमारा सबकुछ समाप्त हो जाएगा। पूरी दुनिया में झारखंडी संस्कृति एक मॉडल है। उन्होंने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के माध्यम से ही आज पूरी दूनिया में राची विश्वविद्यालय की पहचान है। त्रिवेणी नाथ साहु ने आदिवासी और सदानी भाषाओं के विकास क्रम को रेखाकित करते हुए कहा कि मातृ भाषा ही एक ऐसा माध्यम है, जो सर्वागीण विकास का रास्ता खोलता है। प्राध्यापक डॉ. उमेश नंद तिवारी ने कहा कि मातृ भाषा किसी भी समुदाय का प्राण तत्व होता है। यही भाषा तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नागपुरी भाषा की सहायक प्राध्यापिका डॉ. पूनम सिंह चौहान ने नागपुरी भाषा के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मातृ भाषा माता के दूध के समान मीठा और दुर्लभ है। खोरठा भाषा के सहायक प्राध्यापक डॉ. दिनेश कुमार दिनमणि ने कहा कि मातृ भाषाओं के आगे मातृ विशेषण लगा हुआ है। इस कारण मातृ भाषा अपने आप में भावनापूर्ण व महत्वपूर्ण है। पंचपरगनिया भाषा के सहायक प्राध्यापक रमाकात महतो ने समाज में मातृभाषा की प्रासंगिकता को रेखाकित करते हुए कहा कि मातृ भाषाओं में हमारा संस्कृति और संस्कार का समावेश होता है। हमें अपनी भाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है। कुरमाली भाषा के सहायक प्राध्यापक डॉ. उपेंद्र कुमार ने कहा कि मांय-माटी बचेगा तभी हम और हमारा अस्तित्व बचेगा। खड़िया भाषा के सहायक प्राध्यापक अबनेजर टेटे ने कहा कि अपनी मातृ भाषाओं को बचाने के लिए हमें एकजुट होना होगा। हो भाषा के सहायक प्राध्यापक गुरुचरण पूर्ति ने हो भाषा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चलना ही नृत्य और बोलना ही गीत है। मानव की उत्पत्ति के साथ ही भाषा अस्तित्व में आया। यह हमारी मां है, वात्सल्य है। इसके बिना हमारा विकास संभव नहीं। मुंडारी भाषा के सहायक प्राध्यापक करम सिंह मुंडा ने कहा कि वर्तमान में हमारा साहित्य काफी समृद्ध अवस्था में है। इसे और अधिक समृद्ध करने की आवश्यकता है। विकास उरांव ने कहा कि हमारी मातृ भाषाओं के विकास में ईसाई मिशनरियों व अंग्रेजों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। शकुंतला बेसरा ने कहा कि मातृ भाषाएं हमारी आत्मा है। हमें अपनी भाषा में बातचीत करनी चाहिए। डॉ. राकेश किरण द्वारा संपादित पुस्तक, कुरमाली भाषा की गीतों व कविताओं पर केन्द्रित जीबन फूल का लोकार्पण किया गया। मौके पर डॉ. अशोक कुमार बड़ाईक ने स्वागत गान तथा नरेन्द्र कुमार दास ने ओजपूर्ण कविता का पाठ किया। मंच संचालन डॉ. राकेश किरण और डॉ. सरस्वती गागराई ने जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दमयंती सिंकु ने किया। इस अवसर पर मुख्य रुप से प्राध्यापक डॉ. हरि उरांव, डॉ. एच. एन. सिंह. एच आर डी सी के निदेशक डॉ. अशोक कुमार चौधरी, संजय मिश्रा, अभिजीत दत्ता, बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ. अंजु कुमारी साहु, डॉ. निरंजन कुमार, मुंशी कुमार, राधिका उराँव, जयप्रकाश उरांव, डॉ. अहिल्या कुमारी, रीता कुमारी, राम कुमार, विजय कुमार साहु आदि मौजूद थे।

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