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झारखंड के गांधी: आदिवासियों के लिए छोड़ दिया सिला वस्त्र पहनना

जनजातीय समाज के समेकित विकास के लिए प्रतिबद्ध भगत भगच ने आदिवासियों के बीच काम करने के लिए वेश ही नहीं नाम तक बदल डाला।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 10:32 AM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 10:51 AM (IST)
झारखंड के गांधी: आदिवासियों के लिए छोड़ दिया सिला वस्त्र पहनना
झारखंड के गांधी: आदिवासियों के लिए छोड़ दिया सिला वस्त्र पहनना

रांची, संजय कुमार। महात्मा गांधी ने गरीबों की दुर्दशा देख सादगी धारण कर ली थी, ठीक उसी तरह झारखंड के गरीब आदिवासियों को बदहाली से उबारने के लिए जीवन समर्पित कर देने वाले पद्मश्री अशोक भगत का उदाहरण है। भगत ने 32 साल पहले प्रण लिया था कि जब तक आदिवासियों के तन पर कपड़ा नहीं होगा, जब तक उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार उपलब्ध नहीं होगा और जब तक वनवासी मुख्य धारा से नहीं जुड़ जाएंगे, वे सिला वस्त्र नहीं पहनेंगे, सिर्फ धोती व गमछा ही धारण करेंगे।

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पद्मश्री से सम्मानित और विकास भारती संस्था, बिशुनपुर के सचिव अशोक भगत को सभी अब बाबा के नाम से ही पुकारते हैं। जनजातीय समाज के समेकित विकास के लिए प्रतिबद्ध भगत ने आदिवासियों के बीच काम करने के लिए वेश ही नहीं नाम तक बदल डाला। उत्तर प्रदेश के आजगमढ़ के किशुनदासपुर निवासी अशोक राय जब आरएसएस के वरिष्ठ अधिकारियों भाऊराव देवरस एवं राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया की प्रेरणा से झारखंड के गुमला जिले के बिशुनपुर (उस समय के बिहार) में अपने तीन आइआइटीयन साथियों डॉ. महेश शर्मा, रजनीश अरोड़ा और स्व. राकेश पोपली के साथ काम करने आए तो कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि जतरा ताना भगत की इस धरती पर यदि काम करना है तो उन्हीं के अनुसार रहना और जीना पड़ेगा। उन्होंने वर्ष 1983 में अपना नाम बदल कर अशोक राय से अशोक भगत रख लिया, जो आज बाबा के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं।

इनके प्रयास से इलाके की स्थिति काफी बदल गई है। क्षेत्र में पलायन रुक गया। हजारों लोगों को रोजगार मिला। आदिवासियों के जल, जंगल एवं जमीन बचाने के लिए जो आंदोलन उन्होंने शुरू किया, वह आज सफलता हासिल कर रहा है। हजारों महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ चुके हैं। उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लगभग 2000 बच्चों को विकास भारती द्वारा संचालित स्कूल-छात्रावास में शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। विकास भारती संस्था भगत के मार्गदर्शन में स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास, कृषि, बागवानी, स्वच्छता एवं पोषण से संबंधित परियोजनाओं पर पूरे झारखंड में काम कर रही है। राज्य के 150 प्रखंडों में स्वच्छता, पर्यावरण एवं जनस्वास्थ्य पर सघन अभियान चला रही है।

बोरा बांध के प्रयोग को कई राज्यों ने अपनाया है। ऐसे अन्य सफल प्रयोगों को देखने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार अधिकारियों को समय-समय पर यहां भेजती रहती है। केंद्र सरकार के कई मंत्री भी इन कामों को नजदीक से देख चुके हैं।

कभी उत्तर प्रदेश में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश संगठन मंत्री रहे अशोक भगत आज भारत सरकार में खादी ग्रामोद्योग आयोग, मिडडे मील, स्किल डेवलपमेंट, कपार्ट आदि कार्यक्रमों के सदस्य हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनाने के लिए बनी कोर टीम के भी वे सदस्य हैं।

अपने परिवार का त्याग कर पूरा जीवन आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। जब तक शरीर में प्राण है आदिवासियों के बीच में रहकर उनकी जरूरत एवं स्वीकार्यता के अनुसार काम करता रहूंगा।

- पद्मश्री अशोक भगत, सचिव, विकास भारती बिशुनपुर।


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