खुद हीमोफिलिया पीड़ित, पर दूसरों को दे रहे जिंदगी
उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए हीमोफिलिया से पीड़ित लोगों की सहायता की ठानी।
जागरण संवाददाता, रांची। वह स्वयं हीमोफिलिया से पीड़ित हैं। लेकिन हीमोफिलिया पीड़ित की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उन्हें फैक्टर (दवा) उपलब्ध कराने के लिए हर संभव मदद करने को तैयार रहते हैं। बात हो रही है राज्य हीमोफिलिया सोसाइटी के सचिव संतोष कुमार जायसवाल की। रिम्स के अंडर ग्राउंड तल्ला में ही सोसाइटी का कार्यालय चल रहा है। यहां हीमोफिलीक मरीज सहायता मांगने पहुंचते हैं।
साहेबगंज निवासी संतोष ने बताया कि छह साल की आयु में खेलते समय वे गिर गए थे। होठ से खून निकलने लगा। खून बंद ही नहीं हो रहा था। उनके घर से कुछ दूर मिशन का अस्पताल चलता था। यूएसए एवं यूके के चिकित्सक इलाज करते थे। चिकित्सकों ने बताया कि उन्हें हीमोफिलिया की बीमारी है। यह लाइलाज है। उनके दादा संपन्न व्यक्ति थे। उन्हें इलाज के लिए भागलपुर ले गए। महीनों तक इलाज चलता था। थोड़ा बड़ा होने पर स्कूल में पढ़ाई शुरू की। लेकिन परेशानी होने पर उनके दादाजी ने स्कूल (पढ़ाई) छोड़ देने की बात कही। लेकिन संतोष ने हिम्मत नहीं हारी।
बाद में लगभग डेढ़ किमी दूर स्थित हाई स्कूल में नामांकन कराया। आने-जाने में घुटनों में कापी दर्द होता था। उनके दादाजी ने परेशानी देखते हुए घर के बगल में ही हाई स्कूल खोल दिया। यहां से उन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई की। इसी दौरान हीमोफिलिया पीड़ित उनके भाई की मौत हो गई। एक भाई की मौत पहले ही इसी बीमारी से हो गई थी। यह सब घटनाओं ने संतोष को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए इस बीमारी से पीड़ित लोगों की सहायता की ठानी। जब वे एमए की पढ़ाई कर रहे थे तो झारखंड के प्रथम राज्यपाल डॉ. प्रभात कुमार की से झारखंड बाल कल्याण परिषद राजभवन में काम शुरू किया।
बाल शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की उनकी प्रबल इच्छा थी। इस बीच, रांची में हीमोफिलिया सोसाइटी खोली गई। यहां उन्हें कार्यकारी सदस्य बनाया गया। 1998-2000 में उन्हें यूथ को-ऑर्डिनेटर बनाया गया। उनके कार्यों से प्रभावित होकर 2001 में उन्हें सोसाइटी का सचिव बनाया गया। इसके बाद से उन्होंने स्वयं को सोसाइटी के काम में समर्पित कर दिया। उस समय यहां जीवनरक्षक दवाएं नहीं मिलती थीं। उन्होंने सरकार से मांग की। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा सोसाइटी के संरक्षक थे। इस गंभीर बीमारी के प्रचार- प्रसार के लिए कई कार्यक्रम कराए। रांची में राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार कराया।
उन्होंने बताया कि चार लोगों से सोसाइटी की शुरुआत की गई थी। लेकिन जागरूकता के कारण ही आज राज्य में 550 हीमोफिलिक मरीजों की पहचान की जा चुकी है। मरीजों को दवा (फैक्टर) दिलाने के लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं।