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प्रकृति पर्व सरहुल की तैयारी में जुटे आदिवासी, धरती एवं सूर्य के विवाह का मनाते हैं उत्सव

प्रकृति के पर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। केद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने बताया कि इस वर्ष झारखंड में सरहूल का त्योहार 15 अप्रैल को मनाया जाना है। प्रकृति पूजक आदिवासी इस त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

By Vikram GiriEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 04:33 PM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 04:33 PM (IST)
प्रकृति पर्व सरहुल की तैयारी में जुटे आदिवासी, धरती एवं सूर्य के विवाह का मनाते हैं उत्सव
प्रकृति पर्व सरहुल की तैयारी में जुटे आदिवासी, धरती एवं सूर्य के विवाह का मनाते हैं उत्सव। जागरण

रांची, जासं । प्रकृति के पर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। केद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने बताया कि इस वर्ष झारखंड में सरहूल का त्योहार 15 अप्रैल को मनाया जाना है। प्रकृति पूजक आदिवासी इस त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। सुखवा वृक्ष में फूल लगते ही आदिवासी समाज सरहुल मनाने की तैयारी में जुट जाते हैं। सरहुल पर्व को हम आदिवासी सूर्य और धरती के विवाह के रूप में मनाते हैं। इस बीच आदिवासी नए-नए फल फूल को सेवन नहीं करते हैं- जैसे कटहल जोकी डहु पुटकल आदी क्योंकि धरती को आदिवासी कुंवारी समान मानते हैं। धरती अपनी विवाह की तैयारी में पूरी श्रृंगार करती है। नए-नए फल फूल पत्ते  आदि से पूरी धरती सुहाना हो उठती है।

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उन्होंने बताया कि प्राकृतिक पूजक आदिवासी धरती मां एवं सूर्य देव के विवाह की तैयारी में जुट जाते हैं। गांव के युवक जंगल में सखुआ फुल लाने जंगल जाते हैं एवं नदी तालाबों में मछली केकड़ा पकड़ते है। घर की महिलाएं घर आंगन की साफ सफाई करते हैं। दीवारों में चित्र बनाती हैं। पहान सरना स्थलों की साफ-सफाई कर ग्रामीणों के साथ सरना स्थल में रूढ़िवादी परंपरा के अनुसार पूजा पाठ करते हैं। इस बीच ग्रामीण पहान को अपने कंधे पर उठाकर ढोल नगाड़े के साथ नाचते गाते सरना स्थल जाते हैं जिसमें पहान सखुआ पेड़ की पूजा करते हैं। मुर्गा मुर्गी की बलि  देकर एवं हडिया का तपावन देकर गांव घर में महामारी, रोग दूख न हो एवं गांव मौजा के सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

पहान के सरना स्थल में पूजा करने के बाद गांव के लोग अपने अपने घरों में पूजा पाठ करते हैं। सात से नौ प्रकार की सब्जियां बनाई जाती है। वह अपने इष्ट देव अपने पूर्वजों को पकावन अर्पित करते है। इसके बाद सरना आदिवासी अन्न ग्रहण करते हैं। शाम को पहान पुजार  सरना स्थल में दो घड़े में पानी रखते हैं एवं दुसरे दिन सुबह घड़े में पानी देखकर पहान मौसम की भविष्यवाणी करते है कि इस साल बारिश कैसी होगी। इस पर्व में नए शादीशुदा बेटी दामाद भी ससुराल आते हैं एवं हर्षोल्लास के साथ में अपने गांव परिवार के साथ नाचते गाते सरहुल उत्सव मनाते हैं। इस तरह आदिवासी सरहुल में धरती एवं सूर्य की विवाह का उत्सव मनाते हैं।


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