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जनजातीय समुदाय अछूता है जानलेवा कोरोना से

रांची झारखंड में जनजातीय समुदाय के लोग कोरोना के असर से अप्रभावित हैं। इसका मुख्य कारण् उक ानासंयमित जीवन है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 May 2020 01:25 AM (IST)Updated: Wed, 06 May 2020 01:25 AM (IST)
जनजातीय समुदाय अछूता है जानलेवा कोरोना से
जनजातीय समुदाय अछूता है जानलेवा कोरोना से

प्रदीप सिंह, रांची :

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सूना पाहन झारखंड के खूंटी जिले के बिरहू पंचायत के रेवा गांव में रहते हैं। उम्र 76 वर्ष से अधिक, लेकिन अनुशासित और संयमित जीवनशैली की वजह से वे पूरी तरह फिट हैं। नोवेल कोराना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद से वे कुछ ज्यादा ही सजग हैं और तमाम हिदायतों का सख्ती से पालन करते हैं। यहां से तकरीबन 200 किलोमीटर दूर महुआडांड के परहा टोली में दोपहर का भोजन करने दीदी किचन पहुंचे ग्रामीण शारीरिक दूरी का सख्ती से पालन करते हैं। लॉकडाउन की वजह से इनके लिए राज्य सरकार ने दो वक्त के भोजन की व्यवस्था की है, लेकिन इन आदिवासी बहुल ग्रामीण केंद्रों पर कोई आपाधापी नहीं दिखती। सबकुछ निर्देश के मुताबिक होता है। भोजन बनाने से लेकर वितरण तक में अनुशासन। एक साथ भोजन करने में शारीरिक दूरी का भी सख्ती से अनुपालन।

ऐसा केवल झारखंड के जनजातीय समुदाय में ही नहीं है, बल्कि पूरे देशभर में है। कोविड-19 वैश्विक महामारी का प्रभाव भारत के जनजातीय समुदाय में नगण्य है। इसका कारण है आत्म-अनुशासन, संयम और पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली। और, इस जीवनशैली के दम पर ही जनजातीय समुदाय नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण से होने वाले कोविड-19 महामारी से दो-दो हाथ कर रहा है। इस बीमारी के प्रभाव से अछूता भी है। महानगरों में शराब खरीदने को लेकर आपाधापी के उलट देशभर में जनजातीय समुदाय कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव को लेकर सरकार द्वारा जारी निर्देश पर पूरी सख्ती से अमल कर रहा है। यह एक सबक भी देती है।

झारखंड की कुल आबादी की लगभग 27 फीसद जनजातीय आबादी है। सुदूर इलाकों से इतर राजधानी रांची में भी आदिवासियों की अच्छी-खासी आबादी है। इनकी बस्तियों में लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही वहां रहने वाले लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई है। बस्ती की एंट्री प्वाइंट पर नो एंट्री का बोर्ड बांस घेरकर लटका दिया गया। यह अबतक जारी है। रांची के टुनकी टोली के एतवा मुंडा कहते हैं- बाहर आने-जाने की पूरी तरह पाबंदी है। बकरी-मुर्गी तक को नहीं निकलने दे रहे हम। मांसाहार पर भी रोक है। पहले भी गांव या बस्ती में किसी प्रकार की बीमारी फैलने पर हम सख्ती से नियमों का पालन करते थे। युवक यह निगरानी रखते हैं कि बस्ती में कोई नहीं आए और यहां से कोई बाहर भी नहीं निकले।

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इन उपायों पर सख्ती से काम :

- शहरी व्यापारियों का साप्ताहिक हाट (बाजार) में आवागमन पूरी तरह बंद।

- बाहरी लोगों पर सतत निगरानी, पालतू जानवरों को भी बांधकर रख रहे हैं।

- आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कार्यरत सखी मंडल, एएनएम और स्वास्थ्य कार्यकर्ता लगातार चला रहे जागरूकता अभियान।

- शारीरिक दूरी बनाए रखने, पौष्टिक आहार लेने, मास्क पहनने और कुछ अंतराल पर साबुन से हाथ धोने संबंधित जानकारी सभी को दी गई है।

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वैश्विक महामारी कोविड-19 का प्रभाव जनजातीय समुदाय में नगण्य है। जनजातीय मामलों का केंद्रीय मंत्रालय लगातार राज्यों में जनजाति मामलों के अधिकारियों के संपर्क में है। समुचित रूप से हम लगातार हालात का जायजा भी ले रहे हैं। मंत्रालय अपनी प्रमुख स्कीमों का 20 प्रतिशत अनुदान तदर्थ तौर पर राज्यों को देने के प्रस्ताव पर भी विचार कर रहा है। इस अनुदान का उपयोग कोरोना संक्रमण से निपटने, स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी और आजीविका से साधन उपलब्ध कराने पर खर्च किया जाएगा।

- अर्जुन मुंडा, जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री।

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