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परंपरागत व्यवस्था को करना होगा मजबूत

राची : विकास भारती बिशुनपुर के राची कार्यालय परिसर आरोग्य भवन-1, बरियातू में शुक्रवार को ट्राइबल स्

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 09:06 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 09:06 AM (IST)
परंपरागत व्यवस्था को करना होगा मजबूत
परंपरागत व्यवस्था को करना होगा मजबूत

राची : विकास भारती बिशुनपुर के राची कार्यालय परिसर आरोग्य भवन-1, बरियातू में शुक्रवार को ट्राइबल स्टडी सेंटर द्वारा छोटानागपुर के प्रथम शासक महाराजा मदरा मुंडा के सम्मान में व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस श्रृंखला का पहला विषय परंपरागत शासन व्यवस्था और इसकी आज के दौर में प्रासंगिकता था। पद्मश्री अशोक भगत ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि झारखंड में आदिवासियों के लिए एक नए चिंतन की आवश्यकता है। राजनीतिक तौर पर बहुत सारी बातें की जाती हैं, लेकिन उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाता। किसी भी क्षेत्र में सरकारी पदाधिकारी जनजातीय व्यवस्था को नहीं समझ पाते। सरकार भी बहुत सूक्ष्मता से जनजातीय व्यवस्था को नहीं समझ पाती। इसलिए आदिवासियों के बीच की परंपरागत व्यवस्था को मजबूत करना होगा। अपने इतिहास को पहचानना होगा और जनजातियों को इसमें प्रासंगिकता ढूंढनी होगी। आदिवासियों को अपने समाज के प्रशासन एवं नियंत्रण के साथ-साथ उनकी मौलिक आवश्यकताओं के साथ ही इतिहास की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए। इतिहास के नहीं होने के कारण बाहरी ताकतें आदिवासियों के इतिहास एवं संस्कृति का नकारात्मक तरीके से प्रचार प्रसार कर रही हैं। जरूरी है कि एक नया सृजनात्मक सामाजिक चिंतन शुरू किया जाए और इसमें सबकी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए क्रियात्मक रूप में समाज को आगे की दिशा दी जाए। युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि सकारात्मक सोच विकसित करनी होगी, जिसमें विकास को लक्ष्य बनाया जाए। उन्होंने कहा कि आज की नई पीढ़ी परंपरागत व्यवस्थाओं को नकार रही है। यह उचित नहीं है।

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मुख्य वक्ता डॉ. गिरिधारी राम गौंझू ने झारखंड के इतिहास, झारखंड में मुंडाओं के आगमन तथा अन्य जनजातियों यथा उरांव, खड़िया, हो, असुर आदि के समूह से बनी हुई व्यवस्था पर बहुत सूक्ष्म रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज का विकास बाहरी सभ्यता की छाव में नहीं हो सकता है। जनजाति समाज को अपनी भाषा, संस्कृति और अपने गीतों के साथ आगे बढ़ना होगा। इसके लिए सरकारों को भी प्रयास करना चाहिए कि यहा की संस्कृति और भाषा को प्राथमिकता मिले, मान्यता मिले, जिससे विकास की प्रक्रिया को आदिवासी बाधा के रूप में नहीं देखें। समाज की और विशेषकर जनजातीय समाज में पढ़े-लिखे वर्ग का यह कर्तव्य बनता है कि बाकी के समाज को दिशा दें, मदद करें और खास तौर पर छोटे-छोटे रूप में भी कार्यक्रम करने की आवश्यकता है।

ट्राइबल स्टडी सेंटर के निदेशक डॉक्टर प्रदीप मुंडा ने कहा कि जनजातीय समाज को नए तरीके से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। हर समस्या का समाधान राजनीति और सरकार का विरोध करने से नहीं हो सकता। आदिवासियों को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि विश्व की पहली जनतात्रिक व्यवस्था की शुरुआत महाराजा मदरा मुंडा ने की थी। यह पहली ऐसी व्यवस्था थी, जहा समाज में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए गावों को स्वावलंबन की अवस्था में लाया गया था। अब यह व्यवस्था टूट रही है और आदिवासी विकास की प्रक्रिया में पीछे हो रहे हैं। इसलिए ट्राइबल स्टडी सेंटर का उद्देश्य है कि जनजातियों से संबंधित इतिहास, संस्कृति और भाषा को लेखन के रूप में समाज को अवगत कराएं। डॉ. प्रदीप मुंडा ने कहा कि आठवीं अनुसूची में हमारी भाषाओं को स्थान नहीं मिलता, जबकि पूर्वोत्तर भारत की जनजातिया जिनकी आबादी बमुश्किल 10 लाख होगी यथा नागा मिजो, आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या डेढ़ करोड़ से ऊपर है, तब भी यहा की भाषाओं को मान्यता नहीं मिलती।

इस अवसर पर बीणा मुंडा,जेठा नाग, रवींद्र भगत, डॉ. नीतीश प्रियदर्शी, नामटहल नायक, सुकरा दास तिर्की, जलेश्वर भगत के सहित काफी लोग उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन विकास भारती के संयुक्त सचिव कमलाकात पाडेय ने किया।


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