Jharkhand: कल है विश्व एड्स दिवस... पढ़ें ये स्टोरी...कैसे कोविड के भयावह दौर में भी एचआइवी पीड़ितों को उनके घरों पर पहुंचाई गई दवा
Jharkhand एआरटी सेंटरों ने मुस्तैदी न दिखाई होती तो बड़ी संख्या में एचआइवी पीड़ित भी कोविड के शिकार हो गए होते। जब लॉकडाउन के समय लोग घरों में बंद थे कहीं बाहर निकलना भी मुश्किल था तब भी एआरटी सेंटर खुले हुए थे।
रांची {संजय कुमार सिन्हा} । एआरटी सेंटरों ने मुस्तैदी न दिखाई होती तो बड़ी संख्या में एचआइवी पीड़ित भी कोविड के शिकार हो गए होते। जब लॉकडाउन के समय लोग घरों में बंद थे, कहीं बाहर निकलना भी मुश्किल था तब भी एआरटी सेंटर खुले हुए थे। रिम्स का एआरटी सेंटर भी एचआइवी पीड़ितों के लिए खुला रहा। सेंटर पर दवा का भी पर्याप्त स्टॉक रहा। जो भी मरीज पहुंचे, उन्हें दवा दी गई। ये कहना है रिम्स एआरटी सेंटर के चिकित्सक डा. रेहान अहमद का। डा. रेहान कहते हैं नियमित रूप से दवाएं लेने और कोविड गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करने के कारण एचआइवी पीड़ितों पर कोरोना का प्रभाव काफी कम रहा। एआरटी सेंटर पर कुछ ही मरीज ऐसे पहुंचे जिनमें कोरोना के हल्के लक्षण थे। दो से तीन एचआइवी पीड़ित होंगे जिन्हें कोरोना हुआ और उनकी मौत हुई।
दरअसल, एआरटी सेंटर से एचआइवी पीड़ितों को वैसी दवाएं दी जाती हैं जो उनकी इम्युनिटी को बढ़ाती है। साथ ही इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को कई गाइडलाइन का पालन करना पड़ता है। कोविड के दौरान ऐसे मरीजों ने कोरोना की वैक्सीन भी ली। यही कारण रहा कि उन पर कोरोना का प्रभाव कम पड़ा। रिम्स एआरटी सेंटर के डाटा मैनेजर दिलीप कुमार कहते हैं कोविड जब चरम पर था तब रिम्स 45 दिन बंद रहा था। लेकिन एआरटी सेंटर बंद नहीं हुआ। इस सेंटर के नौ स्टाफ में से चार स्टाफ भी कोविड पीड़ित हुए। बावजूद कभी भी सेंटर बंद नहीं हुआ।
झारखंड स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी रांची के सीएसटी डिवीजन के ज्वाइंट डायरेक्टर डा. बीसी भकत कहते हैं, लाकडाउन में मरीजों का सेंटर पर पहुंचना मुश्किल था। ऐसे में मरीजों के घर पर पहुंचकर उन्हें दवा दी गई। डा. रेहान कहते हैं एआरटी सेंटरों ने अपनी पूरी ताकत से काम किया। फिर भी एचआइवी पीड़ितों के इलाज में थोड़ी बहुत परेशानी जरूर हुई। तब रिम्स में नियमित जांच नहीं हो पा रही थी। ऐसे में इलाज में कठिनाई आई।
चार एआरटी सेंटरों में चल रहा पायलट प्रोजेक्ट : डा. बीसी भकत ने बताया कि एचआइवी पीड़ितों की दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए भी पहल की गई है। चार एआरटी सेंंटरों जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद और गिरिडीह में पायल ट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। इसके तहत मरीजों की काउंसिलिंग के साथ-साथ जांच भी की जाएगी। एचआइवी पीड़ित जो एआरटी पर हैं और उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, हृदय की बीमारियां और मानसिक बीमारियों से ग्रसित हैं उनका इलाज किया जाएगा।
रिम्स में आ गई है वायरल लोड टेस्टिंग मशीन : रिम्स में वायरल लोड टेस्टिंग मशीन लगा दी गई है। डा. भकत ने बताया कि जो लोग एचआइवी के साथ रह रहे हैं उनकी नियमित अंतराल पर जांच की जाती है। पहले सैंपल को मुंबई भेजा जाता था। लेकिन अब रिम्स में ही जांच की सुविधा उपलब्ध हो गई है। अभी केवल रिम्स एआरटी के मरीजों के ही सैंपल यहां जांच को आते हैं। राज्य के अन्य एआरटी सेंटरों के सैंपल अभी बाहर भेजे जाते हैं। इन्हें भी बाद में रिम्स ही भेजा जाएगा।
डाक्टरों की है कमी : पूरे राज्य में 13 एआरटी सेंटर हैं। इनमें पांच में ही चिकित्सक हैं। अन्य में नहीं हैं। डा. भकत बताते हैं कि हजारीबाग, जमशेदपुर, रांची, गिरिडीह और दुमका में एआरटी में एक-एक चिकित्सक हैं।
एआरटी में पंजीकृत हैं 500 से अधिक बच्चे : रिम्स एआरटी में पांच सौ से अधिक बच्चे पंजीकृत हैं। हालांकि 150 ही बच्चे एआरटी पर हैं। वहीं एआरटी सेंटरों में पहुंचने वालों में सबसे अधिक संख्या पुरुषों की है। रिम्स सहित सभी एआरटी में पीड़ितों को निश्शुल्क दवाएं मिलती हैं।
हजारीबाग में हैं सबसे अधिक एचआइवी पीड़ित
जिला मरीज
हजारीबाग 3126
जमशेदपुर 1822
रांची 1522
एआरटी पर जीवित एचआइवी पीड़ितों की कुल संख्या : 12671
राज्य में ये हैं 13 एआरटी सेंटर
रिम्स रांची
एमजीएमएमसीएच जमशेदुपर
सदर अस्पताल हजारीबाग
पीएमसीएच धनबाद
गिरिडीह
कोडरमा
डाल्टेनगंज
सदर अस्पताल देवघर
सदर अस्पताल साहिबगंज
सदर अस्पताल बोकारो
सदर अस्पताल चाईबासा
सदर अस्पताल दुमका
सदर अस्पताल गुमला (इस साल 13 अगस्त को खोला गया)