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झारखंड समेत देश में अपना धर्म छोड़ देने वालों को नहीं म‍िले आदिवासी या जनजाति की सुविधा

झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति ने बुधवार को बाबा कार्तिक उरांव की 40वीं पुण्यतिथि मनाई। इस अवसर पर सम‍ित‍ि के नेताओं ने कहा क‍ि आद‍िवास‍ियों को ईसाई बनाने की साज‍िश चल रही है। इसल‍िए सरना धर्म कोड की मांग की जा रही है। यह गलत है।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 05:48 PM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 05:48 PM (IST)
झारखंड समेत देश में अपना धर्म छोड़ देने वालों को नहीं म‍िले आदिवासी या जनजाति की सुविधा
धुर्वा, रांची में बाबा कार्तिक उरांव की 40वीं पुण्यतिथि आयोज‍ित की गई।

रांची, (जागरण संवाददाता) : बुधवार को झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति धुर्वा, रांची की ओर से बाबा कार्तिक उरांव की 40वीं पुण्यतिथि सरहुल पूजा स्थल के समीप मनाई गई। इस अवसर पर समाज के प्रति कार्तिक उरांव की सोच और पहल पर चर्चा करते हुए जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक संदीप उरांव ने कहा कि कार्तिक उरांव ने 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 33 लोकसभा और राज्यसभा सांसदों द्वारा संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट बनाकर सौंपा था, जिसमें जो आदिवासी अपने मूल धर्म और संस्कृति को छोड़ दिए हों उन्‍हें आदिवासी या जनजाति की सुविधा से वंचित करने की बात कही गई थी। यह भी कहा गया था क‍ि एसे लोग कभी भी आदिवासी या जनजाति समुदाय के सदस्य नहीं हो सकते हैं। कार्तिक उराव की वह रिपोर्ट आज भी प्रासंग‍िक है। उसको लागू कराने के लिए पूरे देश में अपने धर्म, समाज, हक, अधिकार के लिए उलगुलान शुरू हो चुका है।

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सरना धर्म कोड मुख्य रूप से कैथोलिक ईसाई चर्च की मांग

उन्‍होंने कहा क‍ि हम कार्तिक उरांव के सिद्धांतों पर चलते हुए अपने धर्म समाज और अधिकार की रक्षा कर सकते हैं। समिति के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा कि आदिवासी या जनजातियों के लिए अलग सरना धर्म कोड की मांग मुख्य रूप से कैथोलिक ईसाई चर्च की मांग है। इन्होंने झारखंड सरकार को प्रेषित पत्र में संविधान के अनुच्छेद 25, 29, और 342 का उल्लेख करते हुए आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड की मांग किया है, जो संविधान के अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक कोड है, इससे स्पष्ट हो जाता है कि आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड दिला कर उनको भी ईसाई और इस्लाम की तरह अल्पसंख्यक बनाना चाहता हैं, ताकि जनजातियों को मिलने वाली सारी सुविधा प्राप्त कर सकें।

आदिवासियों को भी अल्पसंख्यक बनाने की साज‍िश

मेघा उरांव ने कहा कि हम सभी को मालूम होना चाहिए कि पेसा एट और पंचायती राज अधिनियम में जो जनजातिति या आदिवासी अपने जातिगत रुढ़ि प्रथा, व्यवस्था, परंपरा इत्यादि को त्यागकर धर्म परिवर्तित कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं, वैसे लोग गांव के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते हैं। इन सारी चीजों को देखते हुए ईसाईयों ने आदिवासियों के लिए भी अलग धर्म कोड दिलाने के लिए जोर-शोर से लगे हुए हैं, ताकि आदिवासियों को भी एक अल्पसंख्यक के श्रेणी में आ जाएं और उनका जो भी रुकावट है वाह खत्म हो जाए।


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