मायामृदंग में उभरा विलुप्त होती लोककला का दर्द
नौ फरवरी से आर्यभट्ट सभागार में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली की ओर से आयोजिक कार्यक्रम का समापन हो गया।
जागरण संवाददाता, रांची
नौ फरवरी से आर्यभट्ट सभागार में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली की ओर से चल रहा भारत रंग महोत्सव का समापन शुक्रवार को हो गया। अंतिम दिन मायामृदंग का मंचन किया गया। प्रसिद्ध नाटककार और निर्देशक राकेश घोष का यह नाटक था। भाषा बांग्ला थी। दम दम शब्दोमुग्धो नाट्य केंद्र के कलाकारों ने इसे पेश किया। बंगाल की एक लुप्तप्राय लोककला अल्काप पर यह नाटक आधारित था। अल्काप के कलाकार गायन, नर्तन और अभिनय तीनों विधा में पारंगत होते हैं। यह पुरुष प्रधान कला है। महिलाओं के लिए यह कला वर्जित मानी जाती है। इस कला के एक पहलू को नाटक का केंद्र बनाया गया था, जिसके केंद्र में एक लड़का था। गाव के एक छोटे बच्चे को अल्काप सिखाया जाता है। उसे हर तरह से लड़कियों के हाव-भाव सिखाए जाते हैं। अल्काप के छोटे कलाकारों को छोकरा के नाम से पुकारा जाता है।
कहानी इस तरह आगे बढ़ती है। एक नगर है धनपत नगर, जहां कहानी घटित होती है। यहीं पर अल्काप का उस्ताद झाक्सु रहता है। झाक्सु काफी प्रसिद्ध है। वह एक छोकरे शाति से प्यार करने लगता है, जबकि उसकी छोटी पत्नी शाति से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करता है। झाक्सु को कुछ गतलफहमी होती है। इसबीच शाति कहीं भाग जाती है। उधर दूसरे अल्काप समूह में छोकरा सुबर्णो रहता है। सभी उसकी कला के मुरीद होते हैं और समूह के सभी लोग उसे चाहते हैं। सुबर्णो अपने उस्ताद सनातन को प्रेम करता है, जबकि सनातन सुधा से प्रेम करता है और उससे शादी करना चाहता है। झाक्सु और सुबर्णो की मुलाकात हुई
संयोग से रंगामाटी में एक प्रदर्शन के दौरान झाक्सु और सुबर्णो की मुलाकात होती है। दोनों की परिस्थिति एक जैसी है। झाक्सु तय करता है कि वह सुबर्णो के साथ नई शुरुआत करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। विलुप्त होती लोक कला का दर्द यहां बयां होता है। महोत्सव के आखिरी दिन कला-संस्कृति विभाग के सचिव राहुल शर्मा, राची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश पांडेय, प्रदीप मोहंती, अजय मलकानी, शंकर पाठक, दीपक लोहरा सहित काफी संख्या में रंगप्रेमी मौजूद थे।