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आनलाइन खाड़ी देशों में बेच रहे झारखंड की सब्‍जी, टर्न ओवर 1 करोड़ 30 लाख

Success Story कोरोना ने रोजी-रोजगार छीना तो युवा किसानों ने खेती को बनाया स्टार्टअप। रांची ज‍िले के नगड़ी के युवा किसान 600 एकड़ में कर रहे खेती। एफपीओ बनाकर किसानों को किया संगठित। 400 किसान इससे जुड़े। दो साल से कम अवधि में इनका शापदार टर्नओवर रहा।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 06:10 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 06:10 PM (IST)
आनलाइन खाड़ी देशों में बेच रहे झारखंड की सब्‍जी, टर्न ओवर 1 करोड़ 30 लाख
झारखंड के 400 क‍िसान एफपीओ बनाकर आनलाइन सब्‍जी बेच रहे हैं।

रांची, जागरण संवाददाता। कोविड के कारण बेरोजगार हो गए। व्यापार में घाटा लगा। इसे बंद करना पड़ा। जब कोई राह नहीं सूझी तब खेती ही एकमात्र विकल्प दिखा। हालांकि, परंपरागत तरीके को छोड़कर आधुनिक तकनीक से खेती करना शुरू किया तो तस्वीर बदल गई। दो साल से भी कम अवधि में 1 करोड़ 30 लाख का टर्नओवर हुआ। यह कहना है रांची ज‍िले के नगड़ी में एफपीओ से जुड़े किसानों का।

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400 क‍िसान इस समय इस एफपीओ से जुड़े हैं

फार्मर प्रोड्यूर्स आर्गेनाइजेशन (FPO) से अधिकतर युवा किसान जुड़े हैं। इन किसानों ने वैज्ञानिक विधि से खेती करके दूसरे किसानों को प्रेरणा दी है। एफपीओ से 400 किसान संबंद्ध हैं। इनकी नेचुरल फार्मिलो नामक कंपनी है जिसके बोर्ड आफ डायेरक्टर्स में नगड़ी के ही किसान नीतू केशरी, गणेश पाहन, सूरज कच्छप, कंचन देवी और अमन कुमार डायरेक्टर हैं।

सात एकड़ में की सहजन की खेती से शुरुआत

युवा किसान गणेश पाहन कहते हैं क‍ि जुलाई 2020 में हमने शुरुआत की थी। पहले सात एकड़ में सहजन की खेती शुरू की। इसमें डीप इरीगेशन का इस्तेमाल किया गया। करीब दस हजार सहजन के पौधे लगाए गए। एक बार शुरुआत होने के बाद किसान एफपीओ से जुड़ते चले गए। आज सहजन की खेती के साथ-साथ कई अन्य सब्जियों की खेती हो रही है। मटर, टमाटर, कच्चू, कद्दू, अदरख, तरबूज, बीन्स आदि की खेती व्यापक स्तर पर हो रही है।

इससे किसानों की आय कई गुना बढ़ गई है

एफपीओ से ही जुड़े विनोद केशरी बताते हैं करीब 600 एकड़ में खेती हो रही है। इससे किसानों की आय कई गुना बढ़ गई है। उनके खेतों से निकली सब्जियां राज्य ही नहीं, दूसरे शहरों में भी भेजी जा रहीं हैं। 2020 में कच्चू, कद्दू, धनिया आदि सब्जियों का निर्यात खाड़ी देशों में किया था। विनोद कहते हैं कोविड के पहले चरण के दौरान बड़ी कठिनाई आई। कपड़ा का बिजनेस ठप पड़ गया। दो माह बैठा रहा। फिर हमने खेती की ओर रुख किया। युवा किसानों का मागदर्शन कर रहे और मैनेजमेंट से जुड़े श्‍वेतक कहते हैं पूरी तरह से आर्गेनिक खेती हो रही है। अपने प्रोडक्ट की मार्केट‍िंंग करने, सप्लाई चेन बनाने में हम आगे बढ़े हैं।

एफपीओ के तहत किसानों को पॉली हाउस मिला

एफपीओ के तहत किसानों को पॉली हाउस मिला है। इसके तहत 10 लाख रुपये की राशि मिली, जिसमें 75 प्रतिशत सरकार की ओर से अनुदान दिया गया है। पॉली हाउस में अब सैपल‍िंंग तैयार की जा रही है। साथ ही यहां तैयार पौधों को झारखंड के अलग-अलग इलाकों में भेजा जा रहा है।

नारियल के बुरादे से तैयार कर रहे जैव‍िक खाद भी

आर्गेनिक खाद तैयार कर रहे सुकरा लोहरा कहते हैं कोकोपिट (नारियल के बुरादे से बना) से खाद तैयार किया जाता है। एक बार में सौ ट्रे खाद तैयार होता है। पॉली हाउस में सैकड़ों ट्रे में सैपङ्क्षलग लगाए गए हैं। सुकरा बताते हैं कि करेला, कच्चू, ब्रोकली, धनिया, मिर्च, तरबूज (कावेरी वेराइटी), खरबूज, कोहड़ा, बीन्स आदि के सैपल‍िंंग तैयार है।

सैपल‍िंंग बेचकर भी किसानों को हो रही लाखों की आमदनी

सोनाहातू, तमाड़, अनगड़ा आदि आसपास के इलाकों से किसानों के आर्डर पर इन्हें तैयार किया जाता है। साथ ही हजारीबाग, चतरा, कोडरमा आदि जिलों के भी किसान आर्डर पर सैपल‍िंंग को भेजा जाता है। तरबूज के एक ट्रे में लगे सैपल‍िंंग की कीमत 300 रुपये तक आती है। वहीं मिर्च, फूलगोभी आदि के सैपल‍िंंग का ट्रे 80 से 90 रुपये में आता है। अभी हाल में गुमला के बसिया में भी सैपल‍िंंग को भेजा गया है। सैपल‍िंंग बेचकर भी एफपीओ से जुड़े किसानों को लाखों की आमदनी हो रही है।

पूर्व जिला कृषि पदाधिकारी ने दिखायी थी राह

रांची के पूर्व जिला कृषि पदाधिकारी अशोक कुमार (वर्तमान में गुमला के कृषि पदाधिकारी) कहते हैं नगड़ी के कुछ युवा किसान शुरू में सोलर के लिए मिले। तब मैंने बताया कि कैसे वो संगठित होकर एफपीओ बनाएं। फिर सरकार की योजनाओं का लाभ लें। पहले इन्होंने सहजन की खेती से शुरुआत की। इसके लिए सारे जरूरी संसाधन मुहैया कराए। बाद में बीज उत्पादन से भी इन्हें जोड़ा गया। अशोक कुमार कहते हैं अभी नगड़ी के इस एफपीओ को पॉली हाउस मिला है। इसका फायदा यह है कि सैपङ्क्षलग को किसी भी मौसम में तैयार किया जा सकता है। दरअसल, पॉली हाउस के जरिए क्लाइमेट कंट्रोल होता है। यानी तापमान को नियंत्रित किया जाता है। इससे फसल की क्वालिटी बेहतर होती है। साथ ही बाहर से किसी बीमारी का खतरा नहीं होता है।

ई-नाम पोर्टल से भी कर रहे ट्रेड

नगड़ी के किसान ई-नाम पोर्टल से भी सब्जियां बेच रहे हैं। रवि किस्पोट्टा कहते हैं हमारी 25 एकड़ जमीन है। नई तकनीक से खेती कर रहे हैं। पहले के मुकाबले 3 गुना अधिक कमाई हो रही है। नगड़ी के ही किसान दशा उरांव कहते हैं 14 साल की उम्र से खेती कर रहा हूं। अभी काफी उम्र हो गई है। लेकिन खेती से ऐसा बदलाव आएगा, कभी सोचा नहीं था। गरीबी के कारण पढ़ नहीं पाया लेकिन खेती में अब बढ़कर अच्छा लग रहा है। उनकी दो बेटियां सुमति केरकेट्टा रिम्स में और पुष्पा केरकेट्टा सदर अस्पताल में नर्स हैं।


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