भाजपा को मिलकर रोकेगी माकपाः प्रकाश विप्लव
माकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य प्रकाश विप्लव के मुताबिक, भाजपा को रोकने के लिए सबको एकजुट होना पड़ेगा।
रांची, जेएनएन। पश्चिम बंगाल के बाद त्रिपुरा की सत्ता माकपा के हाथ से निकल गई। इसे वामदलों के लगातार राजनीतिक हाशिये पर जाने की घटना के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा का लगातार बढ़ता दायरा इनके समक्ष अस्तित्व का संकट पैदा कर रहा है। झारखंड में भी वामदलों का राजनीतिक हस्तक्षेप लगातार सिकुड़ रहा है। माकपा के राज्य सचिव मंडल सदस्य प्रकाश विप्लव भी इस सच्चाई से वाकिफ हैं। हालांकि उनका दावा है कि भाजपा का फैलाव और वामदलों की चुनावी मोर्चे पर हार के कई कारण हैं। झारखंड में वामदलों के समक्ष अस्तित्व की लड़ाई का संकट है। आने वाले दिनों में इससे उबरने के लिए तमाम गैर-भाजपा दलों के एक मंच पर आना होगा। प्रकाश विप्लव से वामदलों की चुनौती और भविष्य की तैयारियों पर प्रदीप सिंह ने विस्तृत बातचीत की।
पश्चिम बंगाल में माकपा सत्ता गंवा चुकी। त्रिपुरा का परिणाम सामने है। क्या माना जाए, वामपंथ का सूर्य अस्त होने को है?
ऐसी बात कतई नहीं है। वामपंथ को अस्त होता देखने की कल्पना करने वाले मुगालते में हैं। हां, चुनावी मोर्चे पर हमें जोर का झटका जरूर लगा है। चुनाव भी वर्ग संघर्ष का एक मोर्चा है। इस मोर्चे पर हम कमजोर हुए हैं। इसका मतलब यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि हमारा जनाधार खत्म हो चुका है। त्रिपुरा में जो परिणाम आया है उसका पार्टी गहन विश्लेषण करेगी। हमारा स्पष्ट मानना है कि वहां धनबल का जबरदस्त इस्तेमाल हुआ। भाजपा ने इसके दम पर वाम विरोधी मतों को गोलबंद किया। खुद को राष्ट्रवादी बताने वाली भाजपा ने वहां अलगाववादी संगठन के साथ चुनावी गठजोड़ किया। कांग्रेस एक बड़ी ताकत थी, वह सिमट गई। माकपा का वोट प्रतिशत 46 फीसद रहा, जबकि गठबंधन दल के साथ भाजपा लगभग 48 प्रतिशत वोट लाने में सफल रही। ऐसे में यह कहना ठीक नहीं है कि हमारे पांव उखड़ चुके हैं। यह सही है कि हमारी सीटें कम हुई है। भाजपा का अगला निशाना केरल होगा। हम इनके सांप्रदायिक एजेंडे के खिलाफ संघर्ष करेंगे।
वामदलों के लिए झारखंड की परिस्थितियां चुनौतियों से भरी हैं। आपको नहीं लगता कि अस्तित्व के संकट से वामपंथी दल जूझ रहे हैं?
आप सही कह रहे हैं। झारखंड की परिस्थितियां अलग हैं। माकपा के पास विधानसभा में एक भी सीट नहीं है। दो सीटें वाम विचारधारा वाले दलों के पास अवश्य हैं। यहां क्षेत्रीय दलों का बोलबाला है। लड़ाई सीधे भाजपा में है। ऐसे में हम क्षेत्रीय ताकतों के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरे तो फायदेमंद होगा। माकपा का आधार भी ज्यादा नहीं है लेकिन भाजपा को रोकने के लिए सबको एकजुट होना पड़ेगा। एकजुटता में हमें कामयाबी मिली तो हम चुनावी मोर्चे पर भाजपा को परास्त कर सकते हैं।
राजनीतिक दलों की गोलबंदी से इतर झारखंड में सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर वामपंथी दल लोगों को एकजुट करेंगे?
मुद्दों की कोई कमी नहीं है। संघर्ष के सवाल भी ढेर सारे हैं। जनमुद्दों पर हर कोने से आवाज उठ रही है। मजदूर, किसानों के सवाल हों या बेरोजगारी का बढ़ता संकट, भाजपा सरकार सिर्फ कारपोरेट घरानों को संतुष्ट करना चाहती है। जमीन कौड़ियों के मोल दिए जा रहे हैं। हम तमाम समान विचारधारा वाली शक्तियों को एक मंच पर लाकर संघर्ष को तेज करेंगे।