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गांव की पगडंडियों से निकल रहे चैंपियन, अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़‍ियों की जन्मस्थली रहा है सिमडेगा

National Sports Day 2021 Jharkhand News Hindi Samachar माइकिल सिल्वानुस व सलीमा ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं। भारतीय महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान असुंता लकड़ा की बात करें तो वह भी केरसई प्रखंड अंतर्गत नोगनगढ़ा गांव से आती हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 29 Aug 2021 02:34 PM (IST)Updated: Sun, 29 Aug 2021 03:19 PM (IST)
गांव की पगडंडियों से निकल रहे चैंपियन, अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़‍ियों की जन्मस्थली रहा है सिमडेगा
National Sports Day 2021, Jharkhand News, Hindi Samachar खिलाड़‍ियों संग हॉकी खेलतीं सलीमा टेटे, सबसे बाएं। जागरण

सिमडेगा, [वाचस्पति मिश्र]। म्यूनिख में माइकिल किंडो, मास्को में सिल्बानुस ड़ुंगडुंग के बाद टोक्यो में सलीमा टेटे जैसे हाकी के दिग्गज ओलिंपियन खिलाड़ी देने वाला झारखंड का सिमडेगा जिला तीन दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं सैकड़ों राष्ट्रीय खिलाड़‍ियों की जन्मस्थली रहा है। इन सबमें एक बात जो कामन है, वह यह कि ये सभी हाकी खिलाड़ी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। सिमडेगा जिला अंतर्गत केरसई प्रखंड का करंगागुड़ी गांव हाकी का सिरमौर माना जाता है। गांव के उबड़-खाबड़ मैदान से हाकी सीखकर संगीता कुमारी, सुषमा, ब्यूटी समेत कई खिलाड़ी भारतीय टीम तक पहुंचे हैं।

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भारतीय महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान असुंता लकड़ा की बात करें, तो वह भी केरसई प्रखंड अंतर्गत नोगनगढ़ा गांव से आती हैं। उनके भाई विमल लकड़ा एवं बीरेंद्र लकड़ा व भाभी कांति भी अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी रही हैं। बोलबा से तारणी कुमारी, सिरिल बिलुंग, मेजर ध्यानचंद अवार्डी सुमराय टेटे भी श्रेष्ठ हाकी खिलाड़‍ियों में शामिल रही हैं। पिछले दिनों टोक्यो ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन करने वाली सलीमा टेटे भी सदर प्रखंड के बड़कीछापर गांव की रहने वाली हैं। उनके पिता सुलक्शन टेटे व बहन महिमा टेटे भी हाकी खिलाड़ी हैं।

सिमडेगा में हाकी का है बोलबाला

शहर में भले ही क्रिकेट एवं अन्य आधुनिक खेलों का प्रचलन रहा हो। लेकिन सिमडेगा के गांवों में तो हाकी का ही बोलबाला है। यहां के खिलाड़‍ियों के रग-रग में हाकी रचता-बसता है। अभाव व मुश्किलें भी उनकी राह में रोड़ा नहीं बनती है। खिलाड़ी मांड-भात खाकर भी अपनी क्षमता बरकरार रखते हैं। सूखे शरीफे से बाॅल तो बांस से हस्तनिर्मित हाकी स्टिक बनाकर खिलाड़ी अपना अभ्यास जारी रखते हैं। इसका प्रतिफल है कि सिमडेगा आज हाकी के गढ़ के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।

गांव से निकले ओलिंपियन

वर्ष 1972 में कांस्य पदक एवं 1980 में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारतीय टीम में शामिल क्रमश: दिवंगत माइकिल किंडो व सिल्बानुस डुंगडुंग ने भी गांव के मैदान में ही हाकी की स्टिक पकड़ी थी। तब जिले में एस्ट्रोटर्फ मैदान भी नहीं था। दोनों दिग्गज खिलाड़‍ियों ने साबित किया था कि मेहनत व जज्बे से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है।

सिमडेगा में हाकी की अपार संभावनाएं : सिल्बानुस

पूर्व ओलिंपियन सिल्बानुस डुंगडुंग ने कहा कि सिमडेगा के ग्रामीण क्षेत्रों में आरंभ से ही हाकी के प्रति रुझान रहा है। स्कूल एवं ग्राम स्तर पर भी हाकी प्रतियोगिता आयोजित होती रही है। गांवों से हाकी की कई प्रतिभाएं निकली हैं। वर्तमान में इन्हें और बढ़ावा देने के लिए ग्राउंड, कोच, तकनीकी सपोर्ट, प्रोत्साहन आदि का समुचित प्रबंध होना चाहिए। इससे सिमडेगा हाकी में और कीर्तिमान बना सकता है।


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