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Corona Death: तड़प-तड़पकर मरते इस महिला को जिसने देखा फट गया उसका कलेजा...

Jharkhand News Corona Death रिम्स के डायरेक्टर साहब। आपके अस्पताल में इलाज के अभाव में लगातार हो रही मौत में एक नाम और जुड़ गया। समावती देवी। गुरुवार रात यह महिला तड़प-तड़प कर मर गई। यह कोई वीआइपी मरीज नहीं थी। जिसके लिए आपको अपना बंगला छोड़ने की जरूरत थी।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 30 Apr 2021 04:35 AM (IST)Updated: Fri, 30 Apr 2021 09:18 AM (IST)
Jharkhand News, Corona Death: समावती देवी, यह महिला गुरुवार की रात तड़प-तड़प कर मर गई।

रांची, [ब्रजेश मिश्र]। Jharkhand News, Corona Death रिम्स के डायरेक्टर साहब। आपके अस्पताल में इलाज के अभाव में लगातार हो रही मौत में एक नाम और जुड़ गया। समावती देवी। गुरुवार की रात यह महिला तड़प-तड़प कर मर गई। यह कोई वीआइपी मरीज नहीं थी। जिसके लिए आपको अपना बंगला छोड़ने की जरूरत थी। हाथ बांधकर पीछे खड़े रहने की मजबूरी थी। यह महिला नामकुम के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थी।

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तबीयत बिगड़ने पर बेटे ने बड़ी उम्मीद लेकर मां को आपके बड़े संस्थान की चौखट तक पहुंचा था। इलाज के लिए मिन्नतें कर गत 27 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती कराया। धीरे-धीरे हालत बिगड़ने लगी। जान बचाने के लिए आक्सीजन और वेंटिलेटर की जरूर थी। बेटा मदद मांगने आपके सभी बड़े-छोटे अधिकारियों की दरवाजे पर गया। स्वास्थ्य सचिव के कार्यालय से लेकर रांची एसडीओ आफिस तक के चक्कर लगाए। इसके बावजूद वह अपनी मां को जरूरी जीवन रक्षक गैस और चिकित्सकीय उपकरण नहीं दिया सका।

गुरुवार की देर रात महिला मर गई। यह बीमारी से मौत नहीं सरासर व्यवस्था के हाथों किया गया कत्ल है। रात ग्यारह बजे इमरजेंसी के बाहर परिवार का रो-रो कर बुरा हाल था। अपनी पीड़ा बताने के लिए वह आपके मोबाइल नंबर पर लगातार फोन करता रहा। आपने एक काॅल रिसीव करने की जहमत नहीं उठाई। 55 वर्ष की आयु में सही इलाज नहीं मिलने के कारण महिला की मौत हो गई।

यह एक महिला की मौत नहीं व्यवस्था की मौत है। जिसके आप मुखिया बने बैठे हैं। इस महिला की मौत आपकी नाकामी और लापरवाही का परिणाम है। आपके माथे पर कलंक है। राज्य के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान का पदभार संभालने पर आपने बड़े लंबे-चौड़े वादे किए थे। अपने पुरस्कारों, अनुभवों और डिग्रियों को सामने रखकर पद हासिल कर लिया।

जब संकट का समय आया तब आप नाकाबिल प्रशासक साबित हुए। लौटा दीजिए अपना सम्मान। फाड़कर फेंक दीजिए अपनी डिग्री। छोड़ दीजिए नौकरी। अगर थोड़ी भी आत्मसम्मान बता हो तो चले जाइए छोड़कर कहीं और। जहां आप आराम से आराम कर सकें। जहां किसी का फोन आपके आराम में खलल न डाल सके। मजबूर नागरिक तो व्यवस्था की नाकामी का दंश झेलने के लिए ही हमेशा से अभिशप्त रहा हैं। आगे भी रहेगा। रोएगा। चिल्लाएगा। शव उठाएगा। श्मशान जाएगा। यही नीयती है आम लोगों की।


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