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रेणु एकमात्र कथाकार जिन्होंने खुद को कथागायक माना: डा. रवि भूषण

प्रख्यात कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की 100वीं वर्षगांठ पर गुरुवार को प्रगति लेखक संघ ने कार्यक्रम आयोजित किया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 07:40 AM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 07:40 AM (IST)
रेणु एकमात्र कथाकार जिन्होंने खुद को कथागायक माना: डा. रवि भूषण
रेणु एकमात्र कथाकार जिन्होंने खुद को कथागायक माना: डा. रवि भूषण

जासं, रांची: प्रख्यात कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की 100वीं वर्षगांठ पर गुरुवार को प्रगति लेखक संघ और डा. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मोरहाबादी स्थित टीआरआइ सभागार में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डा. रवि भूषण ने कहा कि फणीश्वर नाथ रेणु दुनिया के ऐसे पहले कथाकार हैं जिन्होंने अपने उपन्यास को श्रेणीबद्ध किया। वे हिदी और भारत के ही नहीं, विश्व के अकेले कथाकार हैं जिन्होंने स्वयं को कथा गायक कहा। ऐसा वही कथाकार कह सकता है जो हिदी अंचल की समग्रता में खुद को डुबा देता है। डा. अशोक प्रियदर्शी ने याद करते हुए कहा कि रेणु अपनी कथाओं में सबसे ज्यादा विश्वसनीयता लेकर आते हैं। वे बगैर बोल्ड हुए भी सभी कुछ कह जाते हैं। ऐसा वही कर सकता है जिन्होंने समाज को करीब से देखा हो। डा. पंकज मिश्र ने कहा कि रेणु अंचल को केंद्र में रखने के कारण आलोचकों के निशाने पर आ जाते हैं। वे उन विडंबनाओं के कथाकार रहे जिसके भार से हमारा देश कराह रहा है। डा. पीके झा ने कहा कि रेणु के लिए आंचलिकता को उनकी सीमा बताई गई जबकि विश्व की अन्य भाषाओं में यह एक बड़ा गुण है। कथाकार रणेंद्र ने कहा कि रेणु ने अंचल के माध्यम से सारे देश को कथा फलक में समेटा है। संगोष्ठी को डा. किरण, प्रज्ञा गुप्ता, कुमारी उर्वशी, किरण तिवारी, सावित्री बड़ाइक ने संबोधित किया। मौके पर डा. भारती, अजय, विजय, ममता, ललित, निशि ठाकुर, शहनवाज आदि मौजूद थे।

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फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशताब्दी पर हुई परिचर्चा

जागरण संवाददाता, रांची : राम लखन सिंह यादव महाविद्यालय, रांची में फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशताब्दी के अवसर पर एक परिचर्चा आयोजित की गयी। रेणु के साहित्यिक विचारों को विद्यार्थियों के साथ साझा किया गया। विभागाध्यक्ष डा. मृदुला प्रसाद ने फणीश्वरनाथ रेणु का जीवन परिचय प्रस्तुत किया। डा. पारुल ने रेणु की भाषा और उनकी आंचलिकता पर अपनी बातों को रखा। यह परिचर्चा ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों रुप में आयोजित थी इसलिए कक्षा में उपस्थित अभिनव पाठक ने भी रेणु के उपन्यासों की चर्चा की और आनलाइन जुड़ी हुई यशोदा और हीरालाल ने भी रेणु की जन्मशताब्दी के अवसर पर आलेख पढ़ा। धन्यवाद ज्ञापन अनुराधा ने किया।


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