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Sawan 2021: भोलेनाथ को भा रही भक्तों की श्रद्धा, सन्नाटे में गूंज रहा कोरोना को हराने का संकल्प

Sawan 2021 Deoghar News देवघर का प्रसिद्ध श्रावणी मेला नहीं लगने से कांवरिया पथ पर सन्नाटा पसरा है। मंदिर परिसर और पूरा मेला क्षेत्र पूरे सावन महीने बोल बम और हर-हर महादेव के नारे से गूंजता रहता है। लेकिन इस बार ऐसा नजारा नहीं दिख रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 04:06 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 06:40 PM (IST)
Sawan 2021: भोलेनाथ को भा रही भक्तों की श्रद्धा, सन्नाटे में गूंज रहा कोरोना को हराने का संकल्प
Sawan 2021, Deoghar News देवघर का प्रसिद्ध श्रावणी मेला नहीं लगने से कांवरिया पथ पर सन्नाटा पसरा है।

रांची, [आरपीएन मिश्र]। भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन शुरू हो गया है। ऐसे में हर ओर श्रद्धा की बयार बह रही है, लेकिन इस बार अंदाज थोड़ा अलग है। कोरोना से बचाव की पाबंदियों के कारण पिछले साल की तरह इस बार भी देवघर में लगने वाला प्रसिद्ध श्रावणी मेला नहीं लगा है। बिहार के सुल्तानगंज से लेकर बैद्यनाथ धाम देवघर तक के 105 किलोमीटर लंबे कांवरिया पथ पर सन्नाटा है।

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हर साल सावन के महीने में यह मार्ग गेरुआ वस्त्र पहने और कांधे पर सुंदर-सजावटी कांवर लेकर चलते कांवरिया भक्तों और बोल बम के नारों से गुलजार रहता था। सावन में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ से पटे रहनेवाले बाबा बैद्यनाथ के दरबार में भी लोगों के जाने पर प्रतिबंध है। स्थानीय पंडे भगवान भोलेनाथ की नियमित पूजा कर रहे हैं। इसकी सिर्फ ऑनलाइन दर्शन की सुविधा उपलब्ध है। इस सन्नाटे में एक बात खास है और वह है- महामारी से लड़ने का संकल्प।

यही है उपासना का श्रेष्‍ठ तरीका

शिव के भक्त जानते हैं कि महामारी पर विजय पाने के लिए अगर हमें थोड़ा संयम का भी परिचय देना पड़े तो जरूर देना चाहिए। इसलिए अभी भीड़ किसी भी कारण से जमा नहीं होने देंगे। भगवान से मन ही मन की जा रही प्रार्थना में कोरोना से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना का भाव सबसे ऊपर है। भक्ति का मार्ग त्याग और संयम के सर्वोच्च शिखर से होकर गुजरता है। उपासना के दौरान भक्त कठिन मार्ग की साधना के दौर से भी गुजरते रहते हैं।

देवघर जिला में प्रवेश वर्जित होने के कारण सड़क किनारे होटल में जमे कांवरिया।

ऐसे में पूरे समाज को रोग व महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए अपने प्रिय आराध्य भोलेनाथ के दर्शन, अभिषेक व सान्निध्य का त्याग भी उपासना की श्रेष्ठ श्रेणी में आता है। भगवान के भक्त जानते हैं कि ईश्वर का निवास कण-कण में है। जहां श्रद्धा है, वहीं शंकर है। जो जहां हैं, वहीं से भगवान की पूजा कर सकते हैं। सावन में जगह-जगह इस अलौकिक साधना के उदाहरण भी देखने को मिल रहे हैं। कुछ भक्त अलग-अलग मार्ग से बिहार व आसपास के इलाकों से भोलेनाथ को जलार्पण करने देवघर आती हुई सीमाओं पर रोके जा रहे हैं।

देवघर शहर में प्रवेश के लिए दुम्मा द्वार पर खड़े आरक्षी से विनती करता डाक बम।

उन्हें शायद कोरोना से बचाव के लिए मंदिर जाने पर लगाई गई तात्कालिक रोक की जानकारी नहीं है। जानकारी होते ही वह सीमा से वापस लौट रहे हैं, लेकिन सीमा पर ही अपने साथ लाया गया जल भगवान शिव के नाम समर्पित कर वह भी आस्था का अनुपम उदाहरण पेश कर रहे हैं। इतना जरूर है कि सावन मेला नहीं लगने से करोड़ों का व्यापार प्रभावित हुआ है, लेकिन यह लोगों की जान बचाने से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं। इसलिए सभी धैर्य और संयम का परिचय दे रहे हैं, क्योंकि ऐसा करने से ही सबकुछ सामान्य हो सकेगा।

सामान्‍य दिनों में शिवालयों में उमड़ता है भक्‍तों का सैलाब

सबकुछ ठीक रहा तो अगले साल शायद किसी तरह की रोक और पाबंदी लगाने की जरूरत नहीं पड़े। रांची के पहाड़ी मंदिर, गुमला के टांगीनाथ धाम, लोहरदगा के अखिलेश्वर धाम, खूंटी के आम्रेश्वर धाम, गिरिडीह के हरिहर धाम, रामगढ़ के टूटी झरना समेत राज्य के विभिन्न मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्त सावन में जल चढ़ाने जाते हैं। खासकर सावन के सोमवार के मौके पर तमाम शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। आसपास की नदियों और पवित्र जलाशयों से लोग जल उठाकर पैदल चलते हुए भगवान का जलाभिषेक करते हैं।

यजमान को ऑनलाइन रुद्राभिषेक कराते बाबा मंदिर प्रांगण में तीर्थ पुरोहित।

पिछले साल की तरह इस बार भी सभी जगह यह दृश्य देखने को नहीं मिल रहा है, लेकिन भक्तों की श्रद्धा में कहीं कोई कमी नहीं है। तमाम स्थानों पर श्रद्धा के साथ आत्मसंयम देखने को मिल रहा है। श्रद्धालुओं की यह भक्ति प्रणम्य है। भगवान शंकर को भी यह भा रहा होगा। देवघर की बात करें तो कांवरिया पथ पर बाबा धाम की ओर श्रद्धा, उत्साह और जोश से कदम बढ़ाते कावरियों के दर्शन का भी अनुभव खास रहता है। कांवर के दोनों ओर लोटा और कलशनुमा पात्र में सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से भगवान शिव को चढ़ाने के लिए उठाया गया जल बंधा रहता था।

भक्‍तों में रहता है जोश

वहीं बोल बम के नारे के साथ हर कदम बैद्यनाथ धाम की ओर बढ़ते नजर आते थे। शिव की भक्ति में रमे कांवरिया न रुकते हैं न थकते हैं। नंगे पांव चलने वाले इन भक्तों को पांव के फफोलों  की भी फिक्र नहीं रहती। बोल बम और हर-हर महादेव का नारा पूरे रास्ते उनकी श्रद्धा का स्तर लगातार बढ़ाते हुए उनमें जोश का संचार  करता रहता है। कांवर में बांधे गए घुंघरुओं का मधुर संगीत उनके कदमों की चाल को और तेज करता रहता है। कुछ कांवरिया दौड़ते हुए भी श्रद्धा के मार्ग की दूरी को तय करते हैं। 

झारखंड-बिहार की सीमा दुम्मा पर सुल्तानगंज से आने वाले कांवरियों को रोकते पुलिस के जवान।

भोलेनाथ पर जल चढ़ाने के लिए देवघर पहुंचने के बाद भी उन्हें घंटों कतार में खड़े रहना पड़ता है, लेकिन अपार आस्था के आगे ये मुश्किलें कुछ भी नहीं। देवघर का बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे रावणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। लंकापति रावण ने यहां शिवलिंग और मंदिर की स्थापना की थी। यहां का शिवलिंग मनकामेश्वर महादेव के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान बैद्यनाथ बैद्य की तरह बीमारियों से भी मुक्ति दिलाते हैं।


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