Jharkhand: आदिवासियों की मूल संस्कृति पर सरना धर्म कोड के बहाने आघात, ईसाई मिशनरियां लागू करने के पक्ष में
Sarna Dharam Code सांसद का सवाल है कि धर्म कोड लागू हुआ तो क्या मिशनरी आदिवासियों को ईसाई मानना छोड़ सरना मानेंगे। मिशनरियां धर्मकोड के पक्ष में हैं लेकिन आदिवासी समुदाय के धर्मांतरण पर चुप्पी साध लेते हैं।
रांची, रांची ब्यूरो। झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। झारखंड विधानसभा के हालिया मानसून सत्र के दौरान सड़क से सदन तक इसके पक्ष में आवाज उठी और राज्य सरकार ने इस दिशा में पहल का भरोसा दिलाया। जाहिर है यह आवाज दिल्ली की दहलीज तक भी पहुंचेगी। सरना धर्म कोड जनजातीय समाज की भावनाओं से जुड़ा एक संवेदनशील विषय है और भावनाओं को कुरेद सियासी हित साधना राजनीतिक दलों का सियासी एजेंडा।
सो चिंगारी को हवा देने की कोशिशें तेज हो गई है। इसमें ईसाई मिशनरियां भी कूद पड़ी हैं। सरना धर्म कोड और इसकी मांग से जुड़े पहलुओं को जरा करीब से देखने और टटोलने में बहुत कुछ सामने आता है। सांस्कृतिक और परंपरागत तौर पर जनजातीय समुदाय के लोग हिंदू धर्म के करीब रहे हैं। यह उनकी पूजा पद्धति और सामान्य संस्कार में दिखता है। अधिकांश हिंदू देवी-देवताओं की अराधना करते हैं और त्योहारों में भी पूरे उत्साह से भागीदारी करते हैं।
यह नजदीकी आजादी के पहले से कुछ खास लोगों को अखरती रही है। यही वजह रही कि सरना धर्म कोड के बहाने जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान पर आघात भी हुआ। बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ, जिससे जनजातीय समाज कुछ सतर्क हुआ। आम आदिवासी अपनी संस्कृति को लेकर चिंतित है और उसकी चिंता को उभार समाज को बांटने की कोशिशें तेज हो गई हैं। धर्म कोड की मांग के पीछे छिपी मंशा और यह प्रचारित करना कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं, कुछ ऐसा ही संकेत दे रही हैं। सरना धर्म कोड के पक्ष में सत्ताधारी दल भी हैं और विपक्ष भी लेकिन दलीलें और राजनीतिक एजेंडे अलग-अलग।
भाजपा ने उठाए कुछ सवाल
सरना धर्म कोड पर मिशनरियों की अति सक्रियता भाजपा को अखरी है। भाजपा के प्रदेश महामंत्री एवं राज्यसभा सदस्य समीर उरांव ने इस संदर्भ में पिछले दिनों आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो और थियोडोर मसकेरहंस को पत्र भी लिखा था। जिसमें उन्होंने मसीही समाज के अगुआ से आग्रह किया था कि सरना समाज के प्रति अपने प्रेम का विस्तार करते हुए अपनी पहचान छोड़ मसीही समाज में शामिल भाई-बहनों को पुन: सरना धर्म में शामिल कराने की घोषणा करें ताकि यह समाज सांस्कृतिक रूप से और मजबूत हो सके। हम सब अपने हक की लड़ाई लड़ सकें। सवाल यह भी उठाया है कि क्या सरना धर्म कोड लागू होने के बाद ईसाई मिशनरियां आदिवासियों को ईसाई मानने की बजाय सरना मानने लगेंगी।
धर्मांतरण करने वाले सरना नहीं ईसाई माने जाएंगे
ईसाई मिशनरियां भले ही सरना धर्मकोड के बहाने सांस्कृतिक विभेद को हवा दे रही हैं, लेकिन उनके रुख में कोई नरमी नहीं दिखाई देती है। अलग धर्म कोड मिलने के बाद धर्मांतरित ईसाईयों को सरना की मान्यता पर ये पक्ष में नहीं दिखाई पड़ते। चर्च आफ इंडिया, छोटानागपुर डायोसिस के बिशप नोएल हेम्ब्रम का कहना है कि सरना धर्मकोड लागू होने के बाद भी अगर कोई आदिवासी समाज के लोग ईसाई धर्म को स्वीकार करते हैं तो उसे ईसाई ही माना जाएगा। इसमें कहीं कोई विवाद अथवा विभेद नहीं है।