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RPF: माई सहेली, नन्‍हे फरिश्‍ते की जय-जय... घर से भागे हुए बच्चों का रक्षक बना आरपीएफ

RPF Railway Protection Force रेलवे सुरक्षा बल आरपीएफ घर से भागे हुए बच्चों का तारणहार बन गया है। खासकर घर से भागकर रेलवे स्‍टेशन पहुंचने वाले या फिर ट्रेन में सफर करने वाले बच्‍चों को बचाकर सुरक्षित उन्‍हें घर पहुंचाना आरपीएफ की सामाजिक जिम्‍मेवारी को दर्शाता है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 29 May 2022 04:46 AM (IST)Updated: Sun, 29 May 2022 07:18 PM (IST)
RPF: माई सहेली, नन्‍हे फरिश्‍ते की जय-जय... घर से भागे हुए बच्चों का रक्षक बना आरपीएफ
RPF: घर से भागे हुए बच्चों का तारणहार बन गया आरपीएफ।

रांची, जेएनएन। RPF, Railway Protection Force: रेलवे सुरक्षा बल, आरपीएफ घर से भागे हुए बच्चों का तारणहार बन गया है। खासकर घर से भागकर रेलवे स्‍टेशन पहुंचने वाले या फिर ट्रेन में सफर करने वाले बच्‍चों को बचाकर सुरक्षित उन्‍हें घर पहुंचाना आरपीएफ की सामाजिक जिम्‍मेवारी को दर्शाता है। रांची रेलवे स्टेशन पर नियमित जांच कर रही रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की टीम ने दो दिन पहले ही स्‍टेशन के मुख्य प्रवेश द्वार के पास बैठी एक छोटी लड़की को देखा। पूछने पर लड़की ने अपनी पहचान पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट की मुनिया (बदला हुआ नाम) उम्र 7 साल के रूप में बताया। वह अपने माता-पिता से नाराज होकर घर से भाग गई थी। तब आरपीएफ टीम ने बच्चे को सुरक्षित गैर-सरकारी संगठन चाइल्डलाइन के पास पहुंचाया। जिसने उसे उसके माता-पिता को सौंप दिया।

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आरपीएफ अधिकारियों ने बीते दिन लोहरदगा रेलवे स्टेशन के दो नंबर प्लेटफॉर्म पर दो घबराए हुए बच्चों को देखा और उनसे उनकी पहचान के बारे में पूछा। बच्चों ने अपनी पहचान लोहरदगा के एक गांव का बताया। कहा कि वे अपने माता-पिता द्वारा डांटे जाने के बाद घर से भाग गए। आरपीएफ ने दोनों बच्चों को चाइल्डलाइन को सौंप दिया, जिन्होंने उन्हें उनके अभिभावकों के पास पहुंचाया। जानकारी के मुताबिक आरपीएफ रांची मंडल ने अप्रैल 2021 से मई 2022 तक करीब 300 बच्चों को इस तरह बचाया है। मई महीने में ही दो दर्जन से अधिक बच्चों को आरपीएफ की माई सहेली और नन्‍हे फरिश्‍ते टीम ने बचाया है।

बताया गया है कि रेलवे स्टेशनों से नाबालिगों बच्‍चों और लड़कियों को बचाने के लिए नहे फरिश्ते नाम से एक ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इसके अलावा रेलवे की माई सहेली टीम स्‍टेशनों पर परेशान हाल टीन एजर्स पर नजर रखती है। कई मामलों में आरपीएफ को स्थानीय पुलिस से भी लापता व्यक्तियों के बारे में सूचना मिलती है और स्टेशनों पर चौकसी बढ़ाकर ऐसे बच्‍चों का रेस्‍क्‍यू किया जाता है।

आरपीएफ कमांडेंट प्रशांत यादव ने बताया कि नाबालिग आमतौर पर अपने गंतव्य के बारे में जाने बिना ही घर से भाग जाते हैं। इस कंफ्यूजन में वे किसी भी ट्रेन में कहीं भी जाने के लिए चढ़ जाते हैं। इनमें से कई तो अपने घर से भागने के बाद अपना नाम और पूरा पता तक नहीं बता पाते। ऐसे में आरपीएफ चाइल्डलाइन और पुलिस के साथ मिलकर इन बच्‍चों के परिवारों की तलाश करती है।

जो भी सुराग मिलते हैं, उनका इस्तेमाल कर बच्‍चों की सुरक्षित घर वापसी सुनिश्चित करते हैं। उन्‍होंने बताया कि आरपीएफ के जवान रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाले बच्चों के प्रति संवेदनशील होते हैं। क्योंकि अगर उनकी ठीक से देखभाल नहीं की गई तो वे आसानी से गलत हाथों में पड़ सकते हैं। ऐसे में रेलवे स्टेशनों पर ऐसे बच्‍चों की खोज डेली रुटीन के आधार पर शिद्दत से की जाती है।


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