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पोस्‍टमार्टम करने वाले डॉक्‍टर ने जब सुनी लाश की धड़कन, मार्चरी में मच गई अफरातफरी; जानें इसके पीछे की पूरी कहानी

लोहरदगा के कैरो के युवक को बिजली का करंट लगा था जिसे सीएचसी के डॉक्टरों ने मृत घोषित करते हुए पोस्टमार्टम के लिए रिम्स भेज दिया। यहां धड़कन मिलने के बाद डॉक्‍टर अवाक रह गए।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 05:03 AM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 04:53 PM (IST)
पोस्‍टमार्टम करने वाले डॉक्‍टर ने जब सुनी लाश की धड़कन, मार्चरी में मच गई अफरातफरी; जानें इसके पीछे की पूरी कहानी
पोस्‍टमार्टम करने वाले डॉक्‍टर ने जब सुनी लाश की धड़कन, मार्चरी में मच गई अफरातफरी; जानें इसके पीछे की पूरी कहानी

रांची/लोहरदगा, जेएनएन। लोहरदगा जिले के कैरो थाना के खरता गांव में मंगलवार की सुबह बिजली का करंट लगने से गांव के 26 वर्षीय जितेंद्र की हालत गंभीर हो गई। उसे इलाज के लिए चान्हो के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में भर्ती कराया गया। यहां डॉक्टरों ने उसे जिंदा रहते ही मृत घोषित कर पोस्टमॉर्टम के लिए रांची के राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) भेज दिया। रिम्स पहुंचने में लगभग पांच घंटे लगे। इधर, रिम्स में पोस्टमार्टम शुरू होने से पूर्व डॉक्टरों ने युवक को जिंदा पाया। उसके दिल की घड़कन चल रही थी। उसे तुरंत पोस्टमार्टम विभाग के डॉक्टरों ने ट्रॉली के सहारे सेंट्रल इमरजेंसी भिजवाया, जहां इलाज के दौरान कुछ देर बाद ही उसकी मौत हो गई।

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दरअसल, पूरे मामले में चान्हो सीएचसी व वहां के डॉक्टरों की लापरवाही की बात सामने आ रही है। जितेंद्र के छोटे भाई सिकंदर उरांव ने बताया कि मंगलवार सुबह करीब छह बजे जितेंद्र गांव में ही लगे एक तंबू का ढांचा (टेंट) हटाने गया था। वहां उसे बिजली का करंट लगा और वह बेहोश हो गया। बेहोशी की हालत में उसे तुरंत चान्हो सीएचसी ले जाया गया, जहां प्रारंभिक जांच के दौरान ही डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद अन्य कागजी प्रक्रिया पूरी करते हुए पोस्टमार्टम के लिए उसे रिम्स भेज दिया गया। 

धड़कन मिलते ही पोस्टमार्टम से इन्कार

जितेंद्र की धड़कन देख तुरंत डॉक्टर और टेक्नीशियन अलर्ट हो गए। युवक को तत्काल इमरजेंसी में शिफ्ट कर दिया। रिम्स के डॉक्टरों ने कहा कि युवक को अगर समय रहते रिम्स लाया जाता, तो उसकी जान बच सकती थी। उन्होंने कहा कि कई बार बिजली के झटके या शॉक लगने से धड़कन बंद हो जाती है। कुछ देर के बाद वह फिर से चलने लगती है। अगर सीएचसी में ही उसे सीपीआर दिया जाता तो धड़कन लौट सकती थी। 

परिजन बोले, चार-पांच घंटे कागजी प्रक्रिया में बर्बाद कर दिए

परिजनों ने कहा कि मौत की पुष्टि करने के बाद चान्हो में ही कागजी प्रक्रियाओं में करीब चार से पांच घंटे बर्बाद कर दिए। जबकि, जितेंद्र मौत की पुष्टि होने के बाद भी पांच घंटे तक जीवित था। इधर, चान्हो पुलिस ने उसे मृत घोषित करने के बाद डॉक्टरों की रिपोर्ट के आधार पर लगभग 11:45 पर शव परीक्षण के लिए रिम्स भेजा। 

मरीज को अचेत अवस्था में हमारे पास लाया गया था और उसकी पुतली, नाड़ी और दिल की धड़कन का पता नहीं चल रहा था। परिवार के लोग हमें इलाज के लिए मरीज को रिम्स रेफर करने के लिए दबाव बना रहे थे। लेकिन अगर मरीज की मृत्यु पहले ही हो चुकी तो उसे कैसे रेफर किया जा सकता है। जब पुलिस के अधिकारी रिपोर्ट को आगे बढ़ाने के लिए पहुंचे तब भी मरीज के शरीर की दो बार जांच की गई थी। जीवित होने के कोई संकेत नहीं मिलने पर पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था।  डॉ. नमिता टोप्पो, चिकित्सा अधिकारी, सीएचसी, चान्हो ,रांची। 

शव को पोस्टमार्टम में लाने के बाद परिजनों का कहना था कि मरीज जीवित है। जब डॉक्टरों ने देखा तब उसमें जीवित रहने के कुछ लक्षण देखे गए। इसके बाद उसे इमरजेंसी भेजा गया।  डॉ. तुलसी महतो, एचओडी, एफएमटी विभाग, रिम्स, रांची।


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