कोरोना मरीज के भर्ती होते ही पता चल जाएगी संक्रमण की गंभीरता, रिम्स के चिकित्सकों के रिसर्च पेपर में दावा
कोरोना के खिलाफ जंग जारी है। संभावित तीसरी लहर आने से पहले चिकित्सकों के समक्ष चुनौती मौत के आंकडों को कम करने की है। ऐसे में झारखंड के रिम्स में कार्यरत कुछ चिकित्सकों की टीम ने इस पर काम प्रारंभ कर दिया है।
रांची,अनुज तिवारी।कोरोना काल में झारखंड में अब तक पांच हजार से अधिक संक्रमितों की मौत हो चुकी है। इनमें से करीब 65 फीसदी से अधिक मौत दूसरी लहर में हुई। इस दौरान सबसे अधिक मौत का कारण ऑक्सीजन लेवल का कम होना देखा गया। कोरोना की संभावित तीसरी लहर के दौरान अब मौत के आंकडे को कम करने की तैयारी है। रांची स्थित रिम्स के साथ आर्मड फोर्स मेडिकल कॉलेज पुणे ने एक नया शोध किया है, जिसमें कोरोना के गंभीर मरीजों के संक्रमण की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकेगा। गंभीर मरीजों को अस्पताल लाते ही पता लगा लिया जाएगा कि उस मरीज को वेंटिलेटर स्पोर्ट में भेजा जाए या हाइफ्लो ऑक्सीजन (एचएफएनसी) में रखा जाए। इस शोध कार्य को रॉक्स इंडेक्स तकनीक से पूरा किया गया है। इस पूरे शोध को विश्व के टॉप फाइव जर्नल में भी प्रकाशित किया गया है। यूएसए के इस जर्नल का नाम जनरल ऑफ क्रिटिकल केयर है। जिसपर प्रकाशित इस शोध के बारे में रिम्स के डाक्टरों व उनकी तकनीक का पूरा जिक्र किया गया है।
शोधकर्ता डा जयप्रकाश ने बताया कि क्रिटिकल केयर में इस तरह का शोध पहली बार हुआ है। कोविड मरीजों पर प्रकाशित विभिन्न आठ स्टडी पर मेटा एनालिसिस कर यह शोध को पूरा किया गया है। सभी स्टडी को मिलाकर इसके जो परिणाम निकले उसे दुनिया के सामने लाया गया। इसके अलावा चीन, इटली, बेल्जियम जैसे देशों से डाटा भी मंगवाया गया, जिसे शोध का हिस्सा बनाया गया। उन्होंने बताया कि इस पूरे शोध में रॉक्स इंडेक्स महत्वपूर्ण रहा, यह इंडेक्स तीन चीजों से बना है, इसमें ऑक्सीजन सेचुरेशन, रेसपीरेटरी रेट और एफआईओटू शामिल है।
कैसे किया गया शोध : कोविड मरीज को जब अस्पताल लाया गया तो सबसे पहले उसका ऑक्सीजन देखा गया , जिसमें ऑक्सीजन लेवल 90 से अधिक होना चाहिए। दूसरे शोधकर्ता डा अमित बताते हैं कि इसके बाद रेसपीरेटरी रेट मापा गया, जिसमें देखा जाता है कि मरीज एक मिनट में कितने बार सांस लेता है। सामान्य स्थिति में एक मिनट में 20 बार सांस लेना स्वस्थ होने का संकेत है। तीसरे चरण में फ्रेक्शिनेटेट ऑक्सीजन देखा जाता है जो 21 प्रतिशत के आसपास होने को बेहतर कहा जाता है। इन सारे पहलुओं को जोड़ते हुए व अन्य मेडिकल जांच के बाद मरीज का स्कोर तय किया जाता है। इसमें अगर मरीज को पांच से कम स्कोर आता है तो उसे काफी गंभीर माना जाता है और उसका वेंटिलेटर में इलाज किया जाएगा। गंभीर स्थिति में यह देखा गया है कि मरीज को प्रति मिनट 60 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और यह एनएफएनसी से नहीं, बल्कि वेंटिलेटर की मदद से मिल सकता है। जबकि जिन मरीजों का स्कोर अधिक होगा उन्हें हाई फ्लो ऑक्सीजन में रखा जाएगा।
यह पूरा शोधकार्य रिम्स निदेशक डा कामेश्वर प्रसाद की निगरानी में पूरी की गई। उन्होंने बताया कि रिम्स में लगातार शोधकार्य हो रहे हैं, जिससे इसके रैंकिंग में भी असर दिखेगा। संस्थान लगातार इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और अभी तक पांच शोध पत्र जारी किए जा चुके हैं। इस शोध से यहां के डाक्टरों को तो फायदा मिलेगा ही, साथ ही नई बीमारियों से लड़ने के लिए नई तकनीक भी सामने आएगी। इस टीम में डा जयप्रकाश, डा अमित, डा अरूण कुमार यादव (पुणे),डा प्रदीप भट्टाचार्य और डा लालचंद टूडु शामिल हैं।