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Jharkhand: निजी क्षेत्र की 75% नौकरियां सिर्फ झारखंड‍ियों के लिए, हेमंत सरकार जल्‍द ला सकती है प्रस्‍ताव

Reservation in Private Sector झारखंड में निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए सरकार बजट सत्र में प्रस्ताव ला सकती है। प्रस्ताव पारित होने के बाद स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित हाेगा। कार्मिक विभाग और श्रम विभाग प्रस्ताव तैयार कर रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2021 07:01 PM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2021 07:03 PM (IST)
Jharkhand: निजी क्षेत्र की 75% नौकरियां सिर्फ झारखंड‍ियों के लिए, हेमंत सरकार जल्‍द ला सकती है प्रस्‍ताव
सरकार बजट सत्र में आरक्षण पर प्रस्‍ताव ला सकती है।

रांची, [प्रदीप सिंह]। झारखंड सरकार ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की दिशा में कवायद तेज कर दी है। इस सिलसिले में निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसद पद झारखंडियों के लिए सुनिश्चित करने के लिए विधानसभा के बजट सत्र में प्रस्ताव लाया जा सकता है। जानकारी के मुताबिक प्रस्ताव को अंतिम रूप देने में अधिकारी लगे हैं। कार्मिक विभाग और श्रम विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप से इस प्रस्ताव को तैयार करने की दिशा में जुटे हुए हैं। इसके अलावा विशेषज्ञों से भी सलाह ली जा रही है। निजी क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था के दायरे में नई कंपनियां आएंगी।

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आरक्षण के प्रविधान इनपर लागू होंगे। पुरानी कंपनियों में यह चरणबद्ध तरीके से प्रभावी होगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसे लेकर गंभीर हैं। वे झारखंड के स्थानीय लोगों को निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रबल पक्षधर हैं। गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्होंने उपराजधानी दुमका में इसका ऐलान भी किया था। गौरतलब है कि 26 फरवरी से झारखंड विधानसभा का बजट सत्र आरंभ हो रहा है। विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद यह लागू हो सकेगा। इससे सत्तारूढ़ झामुमोनीत गठबंधन का जनाधार और मजबूत होगा।

सरना धर्मकोड के लिए आहूत हुआ था विशेष सत्र

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अहम राजनीतिक फैसलों से विरोधियों को चौंकाते हैं। आदिवासी सरना धर्मकोड को जनगणना में शामिल कराने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना इसकी बानगी है। आनन-फानन में आहूत हुए सत्र में बगैर किसी विरोध के आदिवासी सरना धर्मकोड जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

यह हेमंत सोरेन की सटीक रणनीति का ही परिणाम था कि मुख्य विरोधी दल भाजपा के रणनीतिकारों को इस प्रस्ताव के खिलाफ बोलने का मौका ही नहीं मिला। दरअसल भाजपा को इसका बखूबी अहसास था कि इससे आदिवासी समुदाय में गलत संदेश जाएगा। पिछले विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है जब आदिवासियों के लिए सुरक्षित अधिकांश विधानसभा सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा।


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