Jharkhand: कैसे पूरा हो घर का सपना, जब लाभुक ही बने अपने मकान का रोड़ा
अपना आवास सबका सपना होता है। सरकार ने इसी सोच के साथ पीएम आवास योजना की शुरुआत की। लेकिन बड़ी संख्या में अधूरे पड़े आवास इस योजना पर ब्रेक लगा रहे हैं।
रांची, जेएनएन। अपना आवास सबका सपना होता है। पूरे कुनबे के साथ अपनी खुद की छत के नीचे जिंदगी बसर करने की सबकी हसरत पूरी हो सके, इसी सोच के साथ सरकार ने पहले प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत की। शहरों और गांवों के लिए अलग-अलग स्तरों पर चल रही इस योजना के तहत जहां व्यापक स्तर पर लाभुकों का चयन कर उन्हें आवास उपलब्ध कराने की कोशिश हुई, वहीं बड़ी संख्या में अधूरे पड़े आवास इस योजना पर ब्रेक लगा रहे हैं।
खास बात यह है कि ज्यादातर मामलों में खुद लाभुक ही अपने सपनों का घर बनाने की राह में बाधक बने हैं। घर बनाने के लिए मिली राशि को या तो ये लाभुक गटक गए या अपने अन्य निजी मामलों में खर्च कर आवास को अधूरा छोड़ दिया। पूरे प्रदेश में ऐसे 20 हजार से अधिक मामले हैं। बार-बार की नोटिस के बाद भी जब लाभुकों ने आवास निर्माण का काम पूरा नहीं किया तो प्रशासन ने अब उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की है।
प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद काम पूरे करने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय कर थाने में इनसे बांड भी भरवाया जा रहा है। चतरा में 165, जमशेदपुर में 20, हजारीबाग में 24, साहिगंज में 15 और कोडरमा में 28 लाभुकों पर प्राथमिकी दर्ज भी कर ली गई है। सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं जिनपर नोटिसों का असर नहीं हुआ तो राशि वसूली करने के लिए प्रशासन ने उनके खिलाफ नीलाम पत्र में मामला दर्ज किया है। हर जिले में हजारों की संख्या में पीएम आवास के डिफॉल्टर हैं, जो इस योजना के लक्ष्य को पूरा करने में बाधक बने हैं।
पूरे राज्य में लगभग एक तिहाई लाभुक हर साल किसी न किसी कारण से आवासों का काम या तो अधूरा छोड़ रहे हैं या काम ही शुरू नहीं करा रहे हैं। राजधानी रांची में केवल शहरी क्षेत्र में 2000 से अधिक आवासों के लाभुकों ने पैसे लेने के बाद भी मकान बनाने का काम शुरू नहीं किया, जबकि ग्रामीण इलाकों में भी करीब इतनी ही संख्या है। इसी तरह चतरा में 4153 आवास अधूरे हैं, जबकि गढ़वा में ऐसे 4718 मामले हैं।
बड़ा सवाल
कई लाभुक ऐसे हैं जिन्हें मकान की वह किश्त भी मिल गई जो उन्हें आंशिक निर्माण के बाद मिलनी थी। प्रक्रिया के अनुसार सरकारी प्रतिनिधि जांच के बाद मकान की फोटो खींचकर जीईओ टैगिंग करते हैं। इसके बाद पैसा रिलीज करना है लेकिन यहां फर्जीवाड़ा हुआ है। लाभुकों से सेटिंग कर फर्जीवाड़ा किया गया है।
कहां कितने आवास अधूरे
जिला - कितने अधूरे आवास
चतरा - 4153
रांची - 4000
गढ़वा - 4718
पूर्वी सिंहभूम - 2651
जमशेदपुर - 100
देवघर - 2000
दुमका - 1644
गिरिडीह - 1500
सरायकेला-खरसावां- 1000
लोहरदगा - 900
जामताड़ा - 400
साहेबगंज - 400
हजारीबाग - 200
धनबाद - 200
बोकारो - 100
कोडरमा - 156
पाकुड़ - 300
पलामू - 400
सिमडेगा - 400
इन कारणों से अधूरे हैं आवास
- राशि लेने के बाद भी लाभुकों ने काम शुरू ही नहीं किया या बीच में छोड़ा
- काम शुरू करने के बाद प्रस्तावित स्थल पर कोई जमीन विवाद शुरू हो गया
- लाभुकों की मृत्यु हो जाने की स्थिति में भी कई आवास अधूरे पड़े हैं, इन्हें चिन्हित कर योजना को लॉक किया जा रहा है
- मकान का आकार बड़ा करने के चक्कर में निर्धारित और अनुमानित राशि से अधिक खर्च हो जाने पर
- सरकार से मिली राशि के अलावा अपनी ओर से लगाई जाने वाली रकम का इंतजाम न हो पाने के कारण
क्या है प्रक्रिया
- लाभुकों को नोटिस देकर उन्हें अधूरे आवास पूरे करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
- तीन बार की नोटिस के बाद भी असर न हुआ तो प्राथमिकी दर्ज कराने और लाभुकों से थाने में बांड भराया जाता है।
- इन सबके बाद भी असर न होने पर नीलाम पत्र में मामला दर्ज करवा कर लाभुक से राशि वसूली की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
क्या है योजना
प्रधानमंत्री आवास योजना के वर्टिकल-4 के तहत गरीबों को आवास के लिए राशि दिए जाने की व्यवस्था है। शहरी क्षेत्र के लोगों को अपनी जमीन पर आवास बनाने के लिए 2 लाख 25 हजार रुपये सरकार की ओर से दिए जाते हैं, जबकि लगभग एक लाख रुपये या चाहें तो उससे अधिक लाभुक को खर्च करने हैं। इसी तरह ग्रामीण इलाकों में आवास के लिए एक लाख 20 हजार और नक्सल प्रभावित इलाकों में एक लाख 30 हजार रुपये लाभुकों को दिए जाने का प्रावधान है।
सरकार की ओर से दी जाने वाली रकम का 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है। इसमें पहली किस्त के रूप में लाभुक को 45 हजार और 25 हजार रुपये दिए जाते हैं। बाकी किस्तें काम के आगे बढऩे के निर्धारित क्रम में दिए जाने का प्रावधान है। योजना में जीईओ टैगिंग भी अनिवार्य है।
प्रधानमंत्री आवास योजना में किसी तरह की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं कीजाएगी। विभागीय सचिव को ऐसी किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका मात्र को भी गंभीरता से लेने को कहा है। जिलों से योजना की अद्यतन रिपोर्ट तलब की गई है। योजना की निगरानी के लिए जिला से लेकर राज्य स्तर तक पर कई चेक प्वाइंट बनाए गए हैं। इसकी भी समीक्षा होगी। जीईओ टैगिंग में अगर कहीं कोई लीकेज है तो प्रोपरली जांच होगी। -नीलकंठ सिंह मुंडा, मंत्री, ग्रामीण विकास विभाग।
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