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Coronavirus Lockdown: जनजाति-आदिम जनजाति की मदद में जुटा RSS का वनवासी कल्याण केंद्र

Coronavirus Lockdown कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ-साथ उससे संबद्ध सभी संगठन जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने में जुटा है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 02 May 2020 09:09 PM (IST)Updated: Sun, 03 May 2020 07:21 AM (IST)
Coronavirus Lockdown: जनजाति-आदिम जनजाति की मदद में जुटा RSS का वनवासी कल्याण केंद्र
Coronavirus Lockdown: जनजाति-आदिम जनजाति की मदद में जुटा RSS का वनवासी कल्याण केंद्र

रांची, [संजय कुमार]। Lockdown Extension 3 कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ-साथ उससे संबद्ध सभी संगठन जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने में जुटे हैं। वनवासी कल्याण केंद्र भी इसमें शामिल है, जो संकट की इस घड़ी में देश के विभिन्न राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के 163 जिलों के जनजातीय बहुल 1900 गांवों में सेवा कार्य कर रहा है। संगठन अबतक 42 हजार से अधिक जनजातीय तथा आदिम जनजातीय  परिवारों तक भोजन सामग्री पहुंचा चुका है। अंडमान निकोबार के 75 गांव समेत नेपाल के भी पांच जिले इनमें शामिल हैं।

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जहां तक झारखंड की बात है, ग्रामीण इलाकों में संगठन की ओर से संचालित 25 उच्च विद्यालयों में अध्ययनरत नौवीं एवं 10वीं के बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था शुरू की गई है। इससे इतर छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश में आदिवासी बच्चों के लिए संचालित कोचिंग संस्थानों के माध्यम से ऑनलाइन तैयारी कराई जा रही है। वनवासी कल्याण केंद्र के केंद्रीय संगठन मंत्री अतुल जोग ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि केंद्र के चार हजार से अधिक पुरुष एवं 450 महिला कार्यकर्ता दिन-रात जरूरतमंद आदिवासियों व आदिम जनजातियों की सेवा में लगे हैं। चावल, दाल, सब्जी, तेल, प्याज आदि के साथ-साथ उनके बीच मास्क भी बांटे जा रहे हैं।

थर्मल स्क्रीनिंग के साथ-साथ प्रवासी मजदूरों को करा रहे भोजन

संगठन मंत्री ने कहा कि संगठन के कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के कई गांवों में थर्मल स्क्रीनिंग में जुटे हैं। इससे इतर मुंबई, पुणे, नासिक, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद, चेन्नई आदि में प्रवासी मजदूरों को भोजन करा रहे हैं। झारखंड के शहरी इलाकों में भी राशन सामग्री बांटने का कार्य जारी है।

गरीबी के बावजूद जिंदा है इंसानियत

अतुल जोग ने कहा कि आज भी आदिवासी समाज में गरीबी के बावजूद इंसानियत जिंदा है। कर्नाटक के मनीवाला गांव का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि जब राहत सामग्री के साथ कार्यकर्ता एक परिवार तक पहुंचे, उन्होंने यह कहकर राशन लेने से इन्कार कर दिया कि उनके पास एक माह का राशन मौजूद है। दूसरी कहानी कर्नाटक के वसुन्नापुरी गांव की है। यहां छह सदस्यों का एक परिवार रहता है। जब कार्यकर्ता वहां पहुंचे, एक बुजुर्ग महिला घर से निकली। कार्यकर्ताओं ने राशन का दो पैकेट उसे देना चाहा जो उसने साफगोई से कहा बेटा अपने परिवार के साथ दूसरी जगह पर है, ऐसे में उन्हें एक पैकेट ही दिया जाए।


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