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Ranchi News: झारखंड नियुक्ति नियमावली में संशोधन के खिलाफ सुनवाई के लिए हाईकोर्ट तैयार

Ranchi News झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातक संचालन संशोधन नियमवाली)-2021 को चुनौती देने वाली याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। इस मामले में एक दिसंबर को सुनवाई होगी। इससे पहले प्रार्थी की ओर से विशेष सुनवाई का आग्रह किया गया।

By Madhukar KumarEdited By: Published: Fri, 26 Nov 2021 05:32 PM (IST)Updated: Fri, 26 Nov 2021 05:32 PM (IST)
Ranchi News: झारखंड नियुक्ति नियमावली में संशोधन के खिलाफ सुनवाई के लिए हाईकोर्ट तैयार

रांच, जासं: झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातक संचालन संशोधन नियमवाली)-2021 को चुनौती देने वाली याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। इस मामले में एक दिसंबर को सुनवाई होगी। इससे पहले प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार की ओर से अदालत से विशेष सुनवाई का आग्रह किया गया। जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई एक दिसंबर को निर्धारित की है।

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प्रार्थी कुशल कुमार व रमेश हांसदा की ओर से इसको लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इसमें राज्य के संस्थानों से दसवीं और प्लस टू योग्यता वाले अभ्यर्थियों को ही परीक्षा में शामिल होने की अनिवार्यता रखी गई है। इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को रखा गया है।

याचिका में कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। नई नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।

उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना सरकार की राजनीतिक मंशा का परिणाम है। ऐसा सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग ही मदरसे में करते हैं। ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रविधानों को निरस्त किया जाए।


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