बाबूलाल को मनाने उनके आवास पहुंचे रामेश्वर उरांव, महागठबंधन में हो सकते हैं शामिल
Jharkhand Assembly Election 2019. बाबूलाल मरांडी को जितनी सीटें चाहिए उतनी देने के लिए झामुमो तैयार नहीं है। दोनों को साथ बैठाकर बात कराई जाएगी।
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Assembly Election 2019 - पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के आवास पर सुबह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव पहुंचे। मरांडी महागठबंधन से नाराज चल रहे हैं और कई बार उन्होंने अकेले चुनाव लडऩे की बात कही है। कांग्रेस चाहती है कि बाबूलाल मरांडी को विपक्ष में शामिल किया जाए और उन्हें सम्मानजनक सीटों पर प्रतिनिधित्व का मौका भी मिले। दूसरी ओर, मरांडी को अधिक सीटें देने के पक्ष में झामुमो नहीं है। इस बीच, सूचना है कि दोनों नेताओं में सकारात्मक बातचीत हुई है और मरांडी के संदेश को महागठबंधन के सहयोगी दलों के बीच रखा जाएगा।
प्रेशर पॉलीटिक्स या लालू का निर्देश
मरांडी और रामेश्वर उरांव के बीच मुलाकात के पीछे दो तरह की बातें आ रही हैं। पहली बात है महागठबंधन दलों में प्रेशर पॉलीटिक्स की। हेमंत ने लालू से मिलकर पहला दांव खेला तो कांग्रेस भी पीछे क्यों रहती और बाबूलाल को अपने साथ लेकर चलने की कवायद में जुट गई है। अनुमान लगाया जा रहा है कि महागठबंधन के दोनों बड़े सहयोगी एक-दूसरे पर अपनी बात थोपने के लिए दूसरे दलों का सहारा ले रहे हैं।
दूसरी ओर, यह बात भी चर्चा में है कि तमाम राजनीतिक गतिविधियां लालू प्रसाद और हेमंत की मुलाकात के बाद तेजी से बढ़ी हैं। हेमंत सोरेन भी झाविमो के प्रति साफ्ट दिख रहे हैं वहीं कांग्रेस तो शुरू से ही झाविमो को महागठबंधन में शामिल करने की वकालत करती रही है। ऐसे में इस बात से इन्कार भी नहीं किया जा सकता कि देर-सबेर महागठबंधन में शामिल होने के लिए मरांडी को मना ही लिया जाए।
मान्यता और सिंबल बचाने के लिए झाविमो को अधिक सीटें जरूरी
झारखंड विकास मोर्चा के सामने अपना सिंबल बचाने की बड़ी चुनौती है। पार्टी से जीतकर विधानसभा पहुंचे अधिसंख्य विधायक (8 में से 7) दूसरे दलों में जा चुके हैं। ऐसे में पार्टी के अधिक विश्वसनीय उम्मीदवारों की फिलहाल कमी है जिन्हें जिताऊ उम्मीदवार माना जा सकता है। दूसरी ओर, राज्य स्तरीय दल की मान्यता और सिंबल बचाने के लिए पार्टी को विधानसभा चुनावों में कम से कम दरे सीटें जीतनी होगी या फिर वैध मतों के लिहाज से कम से कम 8 फीसद वोट की दरकार होगी।
ऐसे में अगर पार्टी कम सीटों (लगभग 10 सीटें, जैसा कि झाविमो को शुरू में ऑफर किया गया था) पर चुनाव लड़ती है तो सीटों पर आफत और मत प्रतिशत कम होने का खतरा बना रहेगा। इसीलिए पार्टी अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है ताकि सिंबल और राज्य स्तरीय दल की हैसियत पर कोई खतरा नहीं आए।
राज्य स्तरीय दल की मान्यता के लिए शर्तें
1. यदि कोई दल राज्य की विधान सभाके आम चुनावों में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का 6 फीसद प्राप्त करता है तथा इसके अतिरिक्त उसने सम्बंधित राज्य में 2 सीटें जीती हों।
2. यदि राज्य की लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का 6 फीसद प्राप्त करता है तथा इसके अतिरिक्त उसने सम्बंधित राज्य में लोक सभा की कम से कम 1 सीट जीती हो।
3. यदि उस दल ने राज्य की विधान सभा के कुल स्थानों का 3 प्रतिशत या 3 सीटें, जो भी ज्यादा हो प्राप्त की हों।
4. यदि प्रत्येक 25 सीटों में से उस दल ने लोकसभा की कम से कम 1 सीट जीती हो या लोकसभा के चुनाव में उस संबंधित राज्य में उसे विभाजन से कम से कम इतनी सीटें प्राप्त की हों।
5. यदि वह राज्य में लोक सभा के लिए हुए आम चुनाव में अथवा विधान सभा चुनाव में कुल वैध मतों का 8 फीसद प्राप्त कर लेता है। यह शर्त वर्ष 2011 में जोड़ी गई थी।