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Pulwama Terror Attack: वीर सपूत सोरेंग की शहादत पर फख्र कर रहा फरसामा

Pulwama Terror Attack. पुलवामा में आतंकी हमले में झारखंड के गुमला जिले के फरसामा गांव का बेटा और सीआरपीएफ की 82 वीं बटालियन हेड कांस्टेबल विजय सोरेंगे शहीद हो गए हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 01:29 PM (IST)Updated: Sun, 17 Feb 2019 06:57 PM (IST)
Pulwama Terror Attack: वीर सपूत सोरेंग की शहादत पर फख्र कर रहा फरसामा
Pulwama Terror Attack: वीर सपूत सोरेंग की शहादत पर फख्र कर रहा फरसामा

रांची, जेएनएन। झारखंड के गुमला जिले के बसिया प्रखंड के फरसामा गांव में लोगों का तांता लगा हुआ है। प्रखंड से लेकर बड़े स्‍तर के प्रशासनिक अधिकारी व कर्मी सुबह से सुरक्षा बलों के साथ कैंप किए हुए है।  जम्मू के पुलवामा में आतंकी हमले में फरसामा का बेटा और सीआरपीएफ की 82 वीं बटालियन हेड कांस्टेबल विजय सोरेंगे शहीद हो गए हैं। यहां आने वालों के चेहरे गमगीन, हर आंखें नम हैं, सांत्वना के शब्द हैं लेकिन मुंह से स्‍वर नहीं फूट रहे। लोगों के चेहरे पर यहां गम और गुस्‍से की झलक साफ देखी जा रही है।

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आस-पड़ोस, गांव का हर आदमी आकर अपनी भावना जाहिर कर जाना चाहता है। वहीं पाकिस्तान और आतंकियों के खिलाफ गुस्से का इजहार भी लोग कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव भी आए थे। सांत्वना देने के दौरान बार-बार अपनी आंखें पोछते रहे। शहीद विजय के गुरुजी भी आए थे। अब लोगों को शहीद के पार्थिव शरीर आने का इंतजार है।

बेटे की शहादत पर मां-बाप को है गर्व
घर में मातम का माहौल है। शहीद विजय के पिता वृष भी सेना के जवान थे। विजय उनके बड़े पुत्र थे। शहादत से पिता और मां लक्ष्मी देवी का मन चीत्कार कर रहा है। बेटे के गंवाने का दर्द नहीं दबा पा रहे हैं। मगर नम आंखों से बेटे की शहादत पर गर्व करते हैं। कहा कि देश की सेवा के दौरान शहीद हुआ। मां अपने बेटे की याद में रह रहकर पछाड़ मार रही है। आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा।

रात में फोन के बाद उड़ गई नींद
गुरुवार की देर रात जैसे ही फोन से वृष सोरेंग को उनके पुत्र की शहीद होने की सूचना किसी ने दी गई उसके बाद से उनके और पड़ोसियों के आंखों की नींद उड़ गई। टीवी पर भी खबरें आ रही थीं। हर पल बेचैनी भरा था मगर इंतजार था तो पुष्टि का। बाप-मां का कलेजा कह रहा था यह सूचना सच नहीं हो सूचना। रात पलकों में ही कटी।

निभाया पिता होने और देश का सपूत होने का धर्म
शहीद विजय सोरेंग का पुत्र अरुण सोरेंग पिता के शहीद होने से आहत है। मन में आतंकियों के खिलाफ गुस्सा भी। फफकते हुए कहा कि एक माह पहले पिताजी अवकाश में आए थे। उनसे मिला था। 24 जनवरी को फोन पर उनसे बातचीत हुई थी। उन्होंने ठीक से पढऩे की सलाह दी थी। उन्होंने अपने पिता का धर्म तो निभाया ही। देश के सपूत होने का धर्म भी पूरा किया।

अरुण आक्रोश व्यक्त करते हुए कहता है कि सरकार खून का बदला खून से ले। वह भी देश सेवा के लिए सेना में जाने को तैयार है। पिता के कार्यों को आगे बढ़ाने का प्रण लेता है। शहीद विजय की बेटी रेखा सोरेंग सिमडेगा में आठवी कक्षा की छात्रा है। उसका भी वही हाल है। गर्व, गुस्से और नफरत और पिता के गंवाने का दुख रह-कर कर चेहरे का रंग बदलता है। आतंकी और पड़ोसी देश के प्रति नफरत और गुस्से का भाव साफ नजर आता है। कहती है कि उसके पिता ने देश के लिए शहादत दी है। इसकी खुशी तो है लेकिन उनके नहीं रहने का गम भी है। सेना में शामिल हो वह भी अपने पिता की देश की सेवा करना चाहती है।

मौत के कुछ घंटे पहले हुई थी पत्नी से बात
पति को गंवाने का गम विमला के चेहरे पर साफ दिख रहा है। दूसरी पत्नी विमला देवी कहती है कि गुरुवार को बारह बजे के करीब दिन में उनसे  मोबाइल से बात हुई थी। क्या पता था अंतिम बात होगी। कहा था कि तुम हमेशा बीमार रहती हो। ज्यादा काम मत करना। बच्चों की देखभाल करना। दो माह बाद छुट्टी लेकर आऊंगा कुरडेग के अधूरे घर को पूरा कराउंगा।

पिता जिस दिन सेवानिवृत्त हुआ बेटा सेना में आ गया
विजय सोरेंग की शहादत के बाद परिजनों के लिए उनकी स्मृति शेष बच गई है। उनके पिता वृष सोरेंग कहते हैं कि मैं सेना का जवान था। बेटा भी सैनिक बनना चाहता था। बचपन से ही उसमें देशभक्ति का भाव था। उसकी शहादत पर मुझे गर्व है। मैं जब तक ङ्क्षजदा रहूंगा अपने बेटा के व्यवहार और संस्कार को भूल नहीं पाउंगा। उसकी देशभक्ति के भाव को हमेशा दिल में संजोकर रखूंगा।  जिस साल मैं सेना से सेवानिवृत्त हुआ,  संयोग की बात है कि उसी साल उनका बेटा देश की सेवा के लिए चला गया।

विजय 1993 में आए सेना में, राष्ट्रपति के परिवार की सुरक्षा में रहे
विजय सोरेंग हॉकी के अच्छे खिलाड़ी थे, उसी के बूते उन्हें सेना में नौकरी मिली थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के आरसी मिशन प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। कुम्हारी से हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। 1990 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। इंटर की पढ़ाई रांची के गोस्सनर कॉलेज से की।

1993 में विजय सेना में बहाल हुए। 1995 में एसपीजी में कमांडो दस्ता में शामिल हुए। कमांडो के रूप में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा की बेटी दामाद के अंग रक्षक के रुप में सेवा देना आरंभ किया।  16 वर्षों तक झारखंड में तैनात रहे। वर्ष 2018 में उनका पदस्थापन जम्मू में कर दिया गया था। 14 फरवरी को वे शहीद हुए।


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