Weekly News Roundup: साहबों का हाकिम बनने का सपना टूट रहा, कोरोना को कोस रहे...
Weekly News Roundup Ranchi. संटिंग जगहों पर काम करनेवाले कई साहबों के दिन कटते नहीं कट रहे। कोरोना को कोस रहे हैं।
रांची, [नीरज अंबष्ठ]। कई साहबों के जिलों में हाकिम बनने के मंसूबे पर लगातार पानी फिर रहा है। कई साहबों ने तिकड़म और जुगाड़ लगाकर अपना रास्ता साफ किया था। बजट सत्र के बाद चिट्ठी ही निकलेवाली थी कि वायरस आ गया। अब इस वायरस ने उनके सपने चकनाचूर कर दिए हैं। जिलों में इस वायरस से निपटने की पूरी जिम्मेदारी हाकिमों की है, सो जो काबिज हैं उनके हटाने की हिम्मत नहीं पड़ रही। यह सही भी नहीं है। इधर, संटिंग जगहों पर काम करनेवाले कई साहबों के दिन कटते नहीं कट रहे। कोरोना को कोस रहे हैं। दूसरी तरफ, जिन साहबों का पत्ता कटनेवाला था, वे सुकून में हैं। वरना उनमें से तो कई रांची पहुंचने की तैयारी कर चुके थे। जो भी हो, अभी तो वैसे ही चलेगा जैसा चल रहा है। जिलों में हाकिम बनने के प्रयास में लगे साहबों को फिलहाल इंतजार ही करना होगा।
छोटे सरकार का गुणगान
माननीय को जैसे ही बड़ी कुर्सी मिली, छोटे सरकार का गुणगान करने में लगे हैं। पहले बात-बात में मैडम का नाम लेते थे। अब माननीय छोटे सरकार को जप रहे हैं। कामकाज के रेस में सबसे अधिक आगे रहनेवाले माननीय इसमें भी सबसे आगे हैं। सरकार की उपलब्धियों का सारा श्रेय उन्हें दे रहे हैं। चर्चा है कि माननीय अच्छी तरह समझते हैं कि छोटे सरकार की बदौलत ही वे कुर्सी पर हैं। खुश कर रखो तो कुर्सी छिनने का कोई खतरा नहीं है। माननीय को छोटे सरकार के पिछले कार्यकाल का अनुभव भी याद है। उस समय छोटे सरकार के विरुद्ध जानेवालों में कई माननीय को किनारा मिल गया था। पार्टी के वरिष्ठ और तेज तर्रार नेताजी भी अपनी कुर्सी नहीं बचा सके थे। सो, माननीय छोटे सरकार को खुश में पीछे नहीं रह रहे हैं। कुछ पाने के लिए तो कुछ करना ही पड़ता है।
उपवास एट होम
राजनीति में फूलवाले नेता जी से पार पाना मुश्किल है। लॉक डाउन में भी पूरी तरह सक्रिय हैं। सरकार के कार्यों पर पूरी नजर है। जरूरत के अनुसार ढलकर मौके को भुनाने में पीछे नहीं रहते। सो, विरोधियों को पछाडऩे का कोई न कोई बहाना भी निकाल ही लेते हैं। अभी घरों से निकलना बंद है इसलिए उपवास एट होम हैं। अब कोई देखने थोड़े ही जाता है कि उपवास पर हैं या... कुछ दिनों पहले पूरी टीम हाथी उड़ाने के मामले में घिरी थी, अब प्रवासियों के बहाने खुद हावी हैं। इधर, राज्य का खजाना संभालने वाले नेताजी भी कम नहीं हैं। अकेले मोर्चा संभालते हुए उपवास करनेवालों को नौटंकीबाज बता रहे हैं। श्रेय लेने की होड़ पर भी वे एक-एक हिसाब मांग रहे हैं। आसानी से वे भी किसी फूलवाले को हावी होने देनेवाले नहीं हैं। जो भी हो, दोनों की राजनीति अभी चलती रहेगी।
ये मंत्री-मंत्री की बात है
सरकार के दो मंत्री आमने-सामने आते दिख रहे हैं। एक ने दावा कर दिया है कि काम के नाम पर गड़बड़ी अधिक हो रही है तो दूसरे ने सबूत मांग दिए है। दोनों की अपनी-अपनी हैसियत है और दोनों अभी चुप भी नहीं रहनेवाले। पंचायत सजेगी और दूर तक जाएगी। दोनों दलों के शीर्ष नेता भी इसकी सुनवाई करेंगे। फिलहाल आरोपों का दौर शुरू हुआ है। आगे-आगे कई काम होने हैं। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि इनकी लड़ाई के पीछे कहीं न कहीं मंत्रालय बंटवारा भी बड़ा कारण है। दोनों ने एक ही विभाग के लिए दावा किया था लेकिन मिलना तो किसी एक को था। अब हाथ ने जैसे ही विभाग थामा दूसरे ने तीर-धनुष निकाल लिया। अब कहते हैं ना कि मुंह से निकली बात और धनुष से छूटा वाण कभी वापस नहीं होता, सो देखें क्या होता है, क्या वापस होता है।