Pravasi LIVE: प्रवासी मजदूर बोले- सरकार गांव में दे काम, दूसरे प्रदेश भूल कर भी नहीं जाएंगे
Pravasi LIVE News. दैनिक जागरण ने गांव पहुंच कर दूसरे प्रदेश से लौटे मजदूरों से बात की। उनकी समस्या जानी। उन्होंने कहा कि हाथों में हुनर है बस काम की तलाश है।
सेन्हा (लोहरदगा), जासं। हाथों में हुनर की कहां कमी है। हुनर न होता तो प्रदेश में भी रोजगार कहां मिल पाता। हुनर है तभी तो प्रदेश में उनकी पूछ है। यदि सरकार गांव में ही रोजगार दे तो भूलकर भी दूसरे प्रदेश में कदम नहीं रखेंगे। सरकार उनके लिए गांव-घर में रोजगार उपलब्ध कराए। वह अपने परिवार और गांव-घर के लोगों के साथ रहना चाहते हैं। दैनिक जागरण ने गांव में पहुंचकर दूसरे प्रदेश से लौटे मजदूरों के हालात की ऑन स्पॉट पड़ताल की है।
इसके लिए सेन्हा प्रखंड के कल्हेपाट गांव में पहुंच कर मजदूरों से बात की। यहां के 11 मजदूर महाराष्ट्र के नागपुर से लौटे हैं और फिलहाल होम क्वारंटाइन हैं। मजदूरों से जानने की कोशिश हुई कि भविष्य में रोजगार को लेकर उनकी क्या योजनाएं हैं। क्या वह वापस दूसरे प्रदेश में लौटेंगे या फिर यहीं पर रह कर अपने परिवार के साथ भरण-पोषण करेंगे। मजदूरों ने साफ कहा कि उनके हाथों में हुनर है। बस काम की तलाश है। सरकार काम दे तो उन्हें प्रदेश जाने का कोई शौक नहीं है।
'अपने राज्य, गांव में काम मिला तो बाहर जाने का शौक नहीं है। काम नहीं मिला तो मजबूरी में लोग बाहर जाते हैं। उन राज्यों में अलग-अलग कंपनी है, जिसमें रोजगार और बेहतर मजदूरी भी मिलती है। निराशा होती है कि यहां कुछ नहीं है। सरकार छोटे उद्योग लगाए और यहीं के लोगों को काम दे तो बाहर नहीं जाएंगे।' -कमल उरांव, मजदूर।
'बचपन के दोस्तों को छोड़ कर कोई गांव से क्यों जाएगा। मजबूरी ने घर छोड़ने पर विवश कर दिया है। यहां पर काम नहीं है और मजदूरी भी नहीं है। वहां 475 रुपया से 6 सौ रुपये एक दिन में कमा लेते हैं। परिवार को छोड़ना अच्छा नहीं लगता है। सरकार सालों भर काम दे तो बाहर नहीं जाएंगे।' -वीरेंद्र उरांव, मजदूर।
'दूसरे राज्य में जाने पर अपने यहां के मजदूरों से मुलाकात होने पर अपने घर जैसा लगता है। झारखंड के मजदूर की उनके काम के कारण दूसरे प्रदेश में काफी मांग है। वहां के लोग कहते हैं कि वे मेहनती होते हैं। लेकिन संक्रमण के समय परेशानी का सामना करना पड़ा। यहां पर मजदूर को उसके काम के हिसाब से मजदूरी नहीं मिलती है। सरकार काम और बेहतर मजदूरी उपलब्ध कराए।' -महादेव उरांव, मजदूर।
'हम महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला के गांव में एक फैक्ट्री में काम करते थे। जहां पर कोरोना का कोई मरीज नहीं था। लेकिन डर बन गया कि हमको अब घर जाना चाहिए। सरकार काम दे तो वे दूसरे प्रदेश में जाना नहीं चाहते हैं। बस काम नियमित रूप से मिलना चाहिए। अपने परिवार को छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगता है। यहां मजदूरी को बढ़ाने की जरूरत है। सरकार कोशिश करे तो समस्या नहीं रहेगी।' -विनय उरांव, मजदूर।