Pranab Mukherjee Death: मोहन भागवत बोले, प्रणब मुखर्जी का आत्मीय व्यवहार भुला नहीं सकता
Pranab Mukherjee Death आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमने एक विद्वान देशहित के लिए सदैव चिंतित रहने वाले देशभक्त को खोया है।
रांची, [संजय कुमार]। Pranab Mukherjee Death राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाॅक्टर मोहन भागवत ने नागपुर से शोक संदेश जारी करते हुए कहा है कि भारत वर्ष के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी का अपनी पार्थिव देह को छोड़कर जाना, उनके संपर्क में आए हुए हम सभी स्वयंसेवकों के लिए एक बहुत बड़ी कमी का सामना करने की घड़ी है। जब वे राष्ट्रपति थे तब दो बार, और उसके बाद भी तीन-चार बार, मैं उनसे मिला हूं।
पहली भेंट में ही उनके आत्मीय और उदार स्वाभाविक व्यवहार ने मुझे यह भुला दिया कि मैं भारत के राष्ट्रपति से बात कर रहा हूं। मुझे ऐसा लगा कि मैं अपने घर के किसी बुजुर्ग से बात कर रहा हूं। उनका यह व्यवहार सदा, सर्वदा, सर्वत्र, जितना मैंने देखा, सबके साथ देखा। जून 2018 में यहां (नागपुर) वह संघ के वर्ग को देखने आए थे, यहां अन्य 10-12 अतिथि भी थे। यहां उनके परिचय का कार्यक्रम था।
सब आकर बैठ गए, प्रणब दा भी आकर बैठ गए और कार्यक्रम का संचालन करने वाले खड़े होकर प्रस्तावना शुरू करने ही वाले थे, उतने में डॉ. प्रणब मुखर्जी खड़े हो गए और कहा कि देखो, हम यहां परिचय के लिए एकत्रित हुए हैं और मैं स्वयं से प्रारंभ करता हूं। उन्होंने खड़े होकर अपना परिचय सबको दिया- मैं प्रणब मुखर्जी भारत का राष्ट्रपति रहा हूं। यह इतनी अनापेक्षित बात थी कि सब लोग अवाक रह गए और सब लोग मन ही मन उनकी सादगी, मिलनसारिता के कायल हो गए।
सबके साथ वे सामान्य होकर घुलने-मिलने लगे। वे बहुत अनुभवी, परिपक्व चिंतक भी थे। उनके पास जानकारी भी थी। दीर्घ जीवन में अनुभव के कारण उस जानकारी को पचाकर सद-दिशा में उसका उपयोग करने वाला विवेक भी उनके पास था। इसलिए वे हम जैसे लोगों के लिए मार्गदर्शक बुजुर्ग थे। उनके साथ जितना देर बैठे, लगता था और बैठें, वे और बोलें। हम उनके सान्निध्य में अपने व्यक्तित्व को समृद्ध होता हुआ अनुभव कर रहे थे।
उनका लंबा राजनीतिक जीवन एक कुशल राजनीतिज्ञ के जैसा सफल रहा। सब प्रकार की चालें भी वह जानते थे। परंतु इस राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सबको अपना मानकर चलने की और राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सबको अपना बनाने की उनकी वृत्ति, सदैव उनके व्यवहार में हमने देखी है। हमने एक विद्वान को खोया है। देशहित के लिए सदैव चिंतित रहने वाले एक देशभक्त को खोया है। हमारे, आपके सामाजिक और व्यक्तिगत व्यवहार में विवेक के मार्गदर्शन को देने वाले एक बुजुर्ग को खोया है।
उनके जाने से जो हमारी क्षति हुई है, वह कभी पूरी नहीं हो सकती। मेरे जैसे कई लोगों के जीवन में प्रणब दा बहुत थोड़े समय के लिए आए, परंतु वे सदैव याद रहेंगे। सदैव लगेगा कि उनका होना हमारे लिए कितना आवश्यक था। नियति की इच्छा है, उसको हम कुछ नहीं कर सकते हैं। उनके परिवारजनों के शोक में हम सब समान संवेदना रखते हुए सहभागी हो रहे हैं, और उनकी आत्मा की सद्गति के लिए ईश्वर के चरणों में प्रार्थना करते हैं।