ना कोई उमंग है, ना कोई तरंग है... गुनगुनाते हुए निकल लिए 'हाथ' वाले साहब; पढ़ें सत्ता के गलियारे की खरी-खरी
Political Gossip in Jharkhand झारखंड में बड़ी उमंगों के साथ आए थे। अपनों ने इस कदर पलीता लगाया कि तत्काल का रिटर्न टिकट ले वे वापस हो लिए। किसी ने भी भाव नहीं दिया।
रांची, [आनंद मिश्र]। मध्य प्रदेश में हाथ वालों के हाथ से सत्ता क्या गई, बाजार में इज्जत का भाव भी देश की अर्थव्यवस्था सा हो लिया है। औंधे मुंह पड़ा है जमीन पर और बस शून्य को ताके जाता है। सारी सियासी हनक अब प्रभु श्रीराम के चरणों में पड़ी हैं। कुछ ईंट इन्होंने भी भिजवाई है दरबार में, सब ठीक होने की उम्मीद भी है। लेकिन, तब तक का क्या कहें। जतरा कुछ इस कदर बिगड़ा है कि अपने भी भाव देने को राजी नहीं हैं। झारखंड में बड़ी उमंगों के साथ आए थे अपने सिंघार साहब। बंदर बन बिल्लियों की लड़ाई निपटाने की मंशा थी, लेकिन खुद निपट गए। तराजू को हाथ लगाने तक का मौका न मिला। अपनों ने इस कदर पलीता लगाया कि तत्काल का रिटर्न टिकट ले वे वापस हो लिए। वापसी में प्रत्यक्षदर्शियों ने उन्हें गुनगुनाते सुना था... ना कोई उमंग है, ना कोई तरंग है, मेरी जिंदगी तो बस कटी पतंग है।
आत्मनिर्भर झारखंड
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर लानत न बरसाओ, बल्कि सम्मान करो सरकार के इस फैसले का। अपनी जेब भले ही ढीली हो रही है, लेकिन सरकार की झोली भर रही है। आर्थिक मामलों में कुछ सोमालिया-सी हो गई थी हमारे गरीब राज्य की हालत। दिल्ली वालों के सामने कटोरा लिए खड़े थे। टुकड़ों पर पलने से तो इज्जत मिलने से रही। ऊपर से कमल दल वाले भी चार बातें सुनाते ही रहते हैं, जैसे दिल्ली का कोषागार हरमू रोड कार्यालय में खुला हो। अब चार महीने बाद खजाने के हालात कुछ संभलते नजर आ रहे हैं। पैसे में बड़ी ताकत होती है। दो पैसा होगा तो पड़ोसी ही नहीं, दिल्ली वाले भी सम्मान की नजर से देखेंगे। विपक्ष को भी आंख दिखाने का मौका हाथ लगेगा। तो तैयार रहिए झारखंड को आत्मनिर्भर बनाने के लिए और आगे भी जेब ढीली करने के लिए। आखिर झारखंड के मान-सम्मान का सवाल है।
रुपया से डॉलर हुए जाते हैं जनाब
नजर न लगे छोटे नवाब को। कोई गंभीरता से ले या ना ले, फिर भी रुपया से डॉलर हुए जाते हैं। अब तो दिल्ली तक चर्चें हैं इनके नाम के। लोकप्रियता के साथ महत्वाकांक्षा का ग्राफ मंदी के दौर में भी तेजी से बढ़ रहा है। डॉक्टर वाली कुर्सी पर निगाहें लगीं हैं, लेकिन कोई गंभीरता से ले ही नहीं रहा। दिल्ली तक अपनी चिकित्सीय विधा की जानकारी देकर लौटे हैं, सुना है वहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई। अब फिर उभरा है दर्द। कहते हैं, जनता के सिस्टम में उतीर्ण हो गया, लेकिन पॉलिटिकल सिस्टम में हार गया। यहां काबिलियत कुछ मायने नहीं रखती। मायने रखता है तो बस...। आगे के शब्द खाली छोड़ दिए हैं और लग गए हैं उस बम्बू को हिलाने में, जिस पर सरकार का तंबू खड़ा है। तमाशा जारी है, क्लाइमेक्स पर निगाहें कमल क्लब की भी लगी हैं।
क्रिया-प्रतिक्रिया
न्यूटन कह गए थे, हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। क्रिया का वेग जितना अधिक होगा, प्रतिक्रिया भी उसी वेग से होगी। सामने वाले पर निशाना साधोगे, तो झटका खुद को भी लगेगा। लेकिन, अपने बाबा को साइंस का बचपन का यह सबक कभी याद ही नहीं रहता। पॉलिटिकल साइंस में यह अध्याय है भी नहीं। पंगा लेना आदत में शुमार है। कमल दल के दर्जन भर सांसद हैं, लेकिन बालीवुड से झालीवुड तक चर्चा इन्हीं की रहती है। हमला सीधे हुकुम पर किया, तो मौनी बाबा ने भी प्रतिक्रिया दी। नतीजा, रजिस्ट्री-डिग्री की लिखा-पढ़त से बात मान-सम्मान पर आ गई है। लेकिन, बाबा अब भी डटे हैं मुस्तैदी से मोर्चे पर। पुराने मित्र से प्रेरणा लेकर हाकिम की कुर्सी को हिलाने पर आमादा हैं। पूछ रहे हैं कि बता दीजिए कितने पैसे का जुगाड़ करना है, बड़ा कंफ्यूज हूं।