Jharkhand Politics: ये हैं झारखंड के बादल...न गरजते हैं, न बरसते हैं; पढ़ें सियासत की खरी-खरी
यहां न गरजने वाले बादल हैं और न बरसने वाले। तबीयत ही ऐसी नरम दिल पाई है। सख्ती तो पास से भी कभी न गुजरी माननीय के। वजन भले न गिरा हो लेकिन अन्नदाताओं की चिंता में दुबले हुए जाते है
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Politics कोरोना वायरस के संक्रमण काल में झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार भी थोड़ा-बहुत संक्रमित हो गई है। झामुमो, कांग्रेस और राजद के मेलजोल से बनी इस सरकार में अंदरुनी खींचतान चरम पर है। कभी 35 आइपीएस के तबादले, तो कभी सूबे के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के निदेशक को हटाने के फैसले से सबको पता चल गया है कि सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। इधर कोरोना वायरस से निपटने में जुटे स्वास्थ्य महकमे के मंत्री और सचिव में भी ठन गई है। सबको पीछे छोड़कर आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा में मंत्री जी को न उगलते बन रहा, न निगलते। झारखंड के बढ़े राजनीतिक तापमान को मापने की कोशिश करते हुए राज्य ब्यूरो के प्रधान संवाददाता आनंद मिश्र के साथ पढ़ें सियासत की खरी-खरी....
सिंगल इंजन का दम
पिछली सरकार में डबल इंजन का जुमला खूब चला। लेकिन फिर भी ट्रेन पटरी से उतर गई। इधर नए हाकिम सिंगल इंजन में कमाल किए जाते हैं। बंदी में भी लाचार-बेसहारों, बच्चों को साथ लिए इनकी ट्रेन दौड़ी जाती है। मजदूर दिवस पर सिर्फ कामगारों को वापस ही नहीं लाए, गांधीगीरी भी खूब दिखाई, हर आने वाले को गुलाब का फूल, अनाज थमाया। कृपा भले ऊपर वालों की ही हो, लेकिन ये तो मानना पड़ेगा कि मैनेजमेंट तगड़ा है। किसी को हवा न लगी और रेलगाड़ी पहुंच गई। पूरे प्रकरण को लेकर कमल क्लब में खलबली है, ट्रेन ऊपर वालों ने भेजी लेकिन कम्युनिकेशन का ट्रैक गड़बड़ा गया। हवा ही न लगी और जब लगी तब तक बाजार बनाने का मौका निकल चुका था। अखबार भी बंद थे, सो भड़ास तक नहीं निकाल सके। अब पूरे कुनबे को लग रही है फटकार। कहने वाले कह रहे हैं, इंजन नहीं, चाल देखो।
नहीं गल रही दाल
छाती पर मूंग दलना, पुरानी कहावत है। लेकिन यहां मूंग समेत तमाम दालों का समेकित मिश्रण दला जा रहा है वो भी जनता की भावनाओं की छाती पर बैठकर। हाथ वाले प्रदेश शिरोमणि नित नई घोषणायें कर रहें हैं, लेकिन जनता की उम्मीदें खाक छान रहीं हैं। घर के बुजुर्ग हैं, सो अनाज की कोठरी की चाबी इन्हीं के पास है। अनाज मुहैया कराने में भले ही दिक्कत हो लेकिन जज्बातों में बहकर कर दी घोषणा, दाल भी देंगे। लेकिन खुद की दाल गलती नहीं दिख रही है। अब कहां से दें दाल, आगे भी आसार नहीं दिख रहे। दलहन की दलदल में उलझकर रह गए हैं। पहले से ही दाल-भात को ले अपनों के निशाने पर हैं, अब नया पेंच अलग उलझ गया है। इसीलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं पहले तोलो, फिर बोलो।
न बरसते हैं, न गरजते
यहां न गरजने वाले बादल हैं और न बरसने वाले। तबीयत ही ऐसी नरम दिल पाई है। सख्ती तो पास से भी कभी न गुजरी माननीय के। खाता नहीं लेकिन खलिहान का रुतबा जरूर रखते हैं। वजन भले न गिरा हो लेकिन अन्नदाताओं की चिंता में दुबले हुए जाते हैं। फिर भी पुकार सुनने वाला कोई नहीं है। पिछले साल के सुखाड़ तक का हिसाब-किताब अब तक दुरुस्त न कर सके हैं। ऊपर वालों से विशेष पैकेज की विनती की थी, वहां भी कोई सुनवाई न हुई। जिन्होंने यह सुझाव दिया उन्हें भी चलता कर दिया गया। अब अकेले बैठे सिर धुन रहे हैं, तमाम योजनाओं को अमल में लाने के बोझ तले दबे जाते हैं। मैडम के टास्क भी सिर माथे पर हैं। लोकप्रियता का ग्राफ शेयर बाजार को भी मात देने पर जुट गया है इन दिनों।
सेहत का सवाल
कोरोना काल में इनकी तेजी कुछ ऐसी है कि कहीं लालबत्ती न बुझ जाए। वैसे इसके लक्षण भी दिख रहे हैैं। सबको पीछे छोड़कर आगे भागने की लत जो है। ऐसे सचिव से पंगा लिया है कि न उगलते बन रहा है न निगलते। कहां पहले सोचा था कि संक्रमण काल में नाम भी होगा और परलोक भी सुधरेगा, लेकिन सारे किए-कराए पर पानी फिरता दिख रहा है। ऊपर से परेशानी है सो अलग। चेतावनी भी दी गई है कि ऐसा नहीं जलेगी लालबत्ती ज्यादा दिन। अब बेचारे यहां-वहां सफाई देते फिर रहे हैैं। मामला जल्द नहीं सुलझा तो निपटने में देर नहीं लगेगी इन्हें। हाथ वाले भी इसी फेर में बैठे हैैं। कब मौका मिले कि बढ़ा दें अपना बायोडाटा। दिल्ली से भी डलवा रहे हैैं प्रेशर। इसी हड़बड़ी में प्रभारी ने भी तेजी दिखाते हुए क्लास ली है। अब सांसें थाम सभी नतीजे का इंतजार कर रहे हैं।